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आगम विषय कोश--२
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प्रतिसेवना
आद्यसंहननत्रयोऽन्यतमसंहननयुक्तो धृत्या च वज्रकुड्य- . सातवें सप्ताह में मधुर दही में थोड़ा सा उष्णोदक मिलाकर समानः।
(व्यभा 3/12
(व्यभा ३८०८, ३८०९ वृ) उसके साथ चावल। प्रतिमासाधक रोगी नहीं होता। अथवा बलवान ही इन्हें आठवें सप्ताह में मधुर दही अथवा अन्य जषों के साथ चावल। ग्रहण करता है। वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच अथवा नाराच संहनन
अन्य सात सप्ताह तक रोग के प्रतिकूल न हो, वैसा भोजन वाला और वज्रकुड्य के समान धुति वाला भिक्षु ही इन दोनों
दही के साथ किया जा सकता है। प्रस्रवणप्रतिमाओं को स्वीकार कर सकता है।
६. भद्रा-महाभद्रा-प्रतिमा ० मोयप्रतिमासिद्धि की निष्पत्ति
."पडिमा.."मासाई जा य सेसाओ। ..."सिद्धाए पडिमाए, कम्मविमुक्को हवति सिद्धो॥
'शेषाः' भद्र-महाभद्रादिकाः प्रतिमाः। (बृभा १३९८ वृ) देवो महिड्डिओ वावि, रोगातोऽहव मुच्चती। प्रतिमा के अनेक प्रकार हैं-भिक्षु की मासिकी आदि जायती कणगवण्णो उ, .......॥ प्रतिमा, भद्र-प्रतिमा, महाभद्र-प्रतिमा आदि। (व्यभा ३८०१, ३८०२) भिक्षुप्रातमा, उपासकप्रातमा
. द्र संबद्ध नाम मोयप्रतिमा सिद्ध होने पर वह कर्ममक्त होकर सिद्ध हो (भगवान् महावीर ने भद्रा, महाभद्रा और सर्वतोभद्रा प्रतिमा जाता है। अथवा मृत्यु के बाद महर्द्धिक देव बनता है। अथवा वह ।
की साधना की थी।-श्रीआको १ तीर्थंकर) रोग से मुक्त हो जाता है। उसका शरीर कनकवर्ण हो जाता है। प्रतिलेखना-वस्त्र, पात्र, स्थान आदि का यथासमय विधिपूर्वक • मोयप्रतिमा पूर्ण होने पर आहारविधि
अवलोकन करना। ओदणं उसिणोदेणं, दिणे सत्त उ भुंजिउं।
(शरीर, उपकरण, स्थण्डिल और मार्ग प्रतिलेखनीय हैं। जसमंडेण वा अन्ने, दिणे जावेति सत्त उ॥ वस्त्रप्रतिलेखना के पच्चीस प्रकार हैं, आठ विकल्प हैं, आरभटा मधरोल्लेण थोवेण, मीसे तइय सत्तए। आदि छह दोष हैं।- श्रीआको १ प्रतिलेखना) तिभागद्धजतं . चेव, तिभागो थोवमीसिय॥ * पतिलेखना काल
द्र स्थविरकल्प मधरेण य सत्तन्ने, भावेत्ता उल्लणादिणा। * कालप्रतिलेखना
द्र स्वाध्याय दधिगादीण भावेत्ता, ताहे वा सत्त सत्तए॥
द्र क्षेत्रप्रतिलेखना (व्यभा ३८०४-३८०६) भिक्षु मोयप्रतिमा पालन के पश्चात् उपाश्रय में आ जाता है। प्रतिसेवना-दोषाचरण, अकल्पनीय का समाचरण । उसकी आहार-ग्रहण की प्रक्रिया इस प्रकार निर्दिष्ट है
१. प्रतिसेवना का स्वरूप ० प्रथम सप्ताह में गर्म पानी के साथ चावल।
२. प्रतिसेवना के दो प्रकार, तीन रूप ० दूसरे सप्ताह में यूष-मांड।
३. मूलगुण-उत्तरगुण-प्रतिसेवना : अतिक्रम"संरंभ ० तीसरे सप्ताह में त्रिभाग उष्णोदक और थोड़े से मधुर दही के ४. प्रतिसेवना के चार प्रकार साथ चावल।
५. कल्प प्रतिसेवना के स्थान : अपवादपद ० चतुर्थ सप्ताह में दो भाग उष्णोदक और तीन भाग मधुर दही के
* अपवादसेवन का नियामक तत्त्व साथ चावल।
६. दर्प और कल्प प्रतिसेवना के प्रकार
७. परिग्रह दर्पिका-कल्पिका प्रतिसेवना ० पांचवें सप्ताह में अर्ध भाग उष्णोदक और अर्ध भाग मधुर दही
८. मिश्र प्रतिसेवना और उसके प्रकार के साथ चावल।
| ९. दर्पिका और कल्पिका में अन्तर ० छठे सप्ताह में त्रिभाग उष्णोदक और दो भाग मधर दही के
१०. आज्ञा व्यवहार : गूढ़पदों में प्रतिसेवना-प्रायश्चित्त-कथन साथ चावल।
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सूत्र
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