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आगम विषय कोश-२
२७१
जीवनिकाय
सूक्ष्म जीव आठ प्रकार के हैं-प्राणसूक्ष्म, पनकसूक्ष्म, लेणे भिंगुलेणे उज्जुए तालमूलए संवुक्कावट्टे..। बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, अण्डसूक्ष्म, लयनसूक्ष्म और सिणेहसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उस्सा हिमए स्नेहसूक्ष्म।
महिया करए हरतणुए णामं पंचमे। ० प्राणसूक्ष्म यावत् पुष्पसूक्ष्म
(दशा ८ परि सू २६८-२७०) ...."पाणसुहमे पंचविहे पण्णते, तं जहा-किण्हे ० अंडसूक्ष्म के पांच प्रकार हैं-मधुमक्खी, मकड़ी, चींटी, नीले लोहिए हालिद्दे सुक्किले।अस्थि कंथअणंधरी नामंजा ब्राह्मणी और गिरगिट के अंडे।। ठिया अचलमाणा छउमस्थाणं नो चक्खफासं हव्व- ० लयनसूक्ष्म के पांच प्रकार हैं-कीटिकानगर, भगलयन, मागच्छइ, जा अद्विया चलमाणा छउमस्थाणं चक्खफासं ऋजुकलयन, तालमूललयन और शम्बूकावर्त्तलयन-इन हव्वमागच्छइ पणगसुहमे पंचविहेपण्णत्ते, तंजहा-किण्हे आश्रयस्थानों में रहने वाले जीव। नीले लोहिए हालिहे सक्किले। अस्थि पणगसहमे तहव- ० स्नेहसूक्ष्म के पांच प्रकार हैं-ओस, हिम, कहासा. ओला समाणवण्णए बीयसुहमे पंचविहेपण्णत्ते, तंजहा-किण्हे और उद्भिद् जलबिंदु । जाव सुक्किले। अस्थि बीयसुहमे कणियासमाणवण्णए २०. त्रस के चार प्रकार “हरियसुहमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे जाव सुक्किले। चउव्विहा तसा-बेंदिया तेइंदिया चतुपंचिंदिया। अस्थि हरियसुहुमे पुढवीसमाणवण्णए"पुष्फसुहुमे पंचविहे
__ (निभा ४२४१ की चू) पण्णत्ते, तंजहा-किण्हे जाव सुक्किले।अत्थि पुप्फसुहुमे ।
__ त्रसकाय के चार प्रकार हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय रुक्खसमाणवण्णए"जे छउमत्थेणं अभिक्खणं-अभिक्खणं और पंचेन्द्रिय। जाणियब्वे पासियव्वे"भवति।(दशा ८ परि सू २६३-२६७) * पंचेन्द्रिय-देवों के प्रकार
द्र देव • प्राणसूक्ष्म-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शुक्ल वर्ण वाले * द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीवों का विवरण द्र श्रीआको १ त्रस सूक्ष्म। कुंथु, जो चलने पर जाना जाता है, स्थिर अवस्था में (पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव स्पर्शन छद्मस्थ की आंख का विषय नहीं बनता।
इन्द्रिय की अपेक्षा से भोगी हैं। द्वीन्द्रिय जीव जिह्वा और ० पनकसूक्ष्म-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शुक्ल वर्ण वाली स्पर्शन-इन दो इन्द्रियों की अपेक्षा तथा त्रीन्द्रिय जीव घ्राण, काई, जो वर्षा में भूमि, काठ, उपकरण आदि पर उस द्रव्य के जिह्वा और स्पर्शन-इन तीन इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं। समान वर्ण वाली उत्पन्न होती है।
चतुरिन्द्रिय जीव चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा से कामी और घ्राण० बीजसूक्ष्म-कृष्ण यावत् शुक्ल वर्ण वाले, कणिका के जिह्य-स्पर्शन-इन तीन इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं। पंचेन्द्रिय समान वर्ण वाले।
जीव श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा से कामी तथा शेष ० हरितसूक्ष्म-कृष्ण यावत् शुक्ल वर्ण वाले। तत्काल उत्पन्न, तीन इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं।-भ७/१३९-१४४) पृथ्वी के समान वर्ण वाले अंकुर।
२१. छहकायसंयम और तीर्थ • पुष्पसूक्ष्म-कृष्ण यावत् शुक्ल वर्ण वाले । वृक्ष के समान न विणा तित्थं नियंठेहिं, नियंठा व अतित्थगा। वर्ण वाले दुर्विभाव्य फूल। (द्र द ८/१५ का टि) छक्कायसंजमो जाव, तावऽणुसज्जणा दोण्हं॥ ० अण्डसूक्ष्म-लयनसूक्ष्म-स्नेहसूक्ष्म
(व्यभा ४२१७) __ ."अंडसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-उइंसंडे निग्रंथों के बिना तीर्थ नहीं होता। तीर्थ के बिना निग्रंथ उक्कलियंडे पिपीलियंडे हलियंडे हल्लोहलियंडे। नहीं होते। जब तक छहजीवनिकाय-संयम है, तब तक
लेणसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-उत्तिंग- निग्रंथ और तीर्थ-दोनों रहेंगे।
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