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आगम विषय कोश-२
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परिमंथ
नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा दगतीरंसि चिट्ठित्तए वा होने पर, ३. किसी के द्वारा व्यथित या प्रवाहित किए जाने पर, ४. बाढ़ निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निदाइत्तए वा पयलाइत्तए आ जाने पर, ५. अनार्यों द्वारा उपद्रुत किए जाने पर।-स्था ५/९८) वा आहारेत्तए, उच्चारं वा पासवणं वा. परिद्ववेत्तए, * महीने में तीन उदकलेप लगाने वाला शबल। द्र चारित्र सज्झायं वा करेत्तए धम्मजागरियं वा जागरित्तए काउस्सग्गंवा
परिणामक-आगमोक्त विषय में श्रद्धावान्। उत्सर्ग विधि ठाणं ठाइत्तए॥
(क १/१९)
और अपवाद विधि का ज्ञाता। द्र अंतेवासी निग्रंथ और निर्ग्रथी नदी आदि के तट पर खड़े रहना, बैठना, सोना, निद्रा लेना, खड़े-खड़े नींद लेना, आहार करना, मल
परिमंथ-अवश्यकरणीय कार्य में व्याघात पैदा करने वाला। मूत्र-श्लेष्म-सिंघाण का परिष्ठापन आदि क्रियाएं तथा स्वाध्याय,
१. परिमंथु का निर्वचन और पर्याय धर्मजागरिका-ध्यान और कायोत्सर्ग नहीं कर सकते।
२. द्रव्य-भाव परिमंथ ५. महानदी-संतरण की सीमा
३. परिमंथ के प्रकार ____नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ पंच
| ४. कौकुचिक आदि परिमंथुओं का स्वरूप महण्णवाओ महानईओ"अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो १. परिमंथु का निर्वचन और पर्याय वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा, तं जहा-गंगा जउणा सरयू
साधुसमाचारस्य परि:-सर्वतो मनन्ति -विलोडकोसिया मही॥""एरावई कुणालाए जत्थ चक्किया एगं पायं यन्तीति परिमन्थवः, उणादित्वादप्रत्ययः। पाठान्तरेण परिमन्था जले किच्चा एग पाय थले किच्चा एवण्ह कप्पइ अतो मासस्स वा, व्याघातका इत्यर्थः।
(क ६/१९ को व) दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा।....
जो साधु-सामाचारी का परि-सर्वतः मंथन-विलोडन ___."उत्तरीतुं वा बाहु-जंघादिना सन्तरीतुं वा नावादिना" 'स्थले' आकाशे' उत्तरीतुं' लंघयितुं 'सन्तरीतुं' भूयः
(विनाश) करते हैं, वे परिमंथु-व्याघातक हैं। परिमंथु में उणादि प्रत्यागन्तुम्।"
से उ प्रत्यय हुआ है। पाठांतर में परिमंथ शब्द भी है।
(क ४/२९, ३० वृ) एरवइ कुणालाए, वित्थिण्णा अद्धजोअणं वहति।
....... पलिमंथो मंथिजति संजमो जेण॥ कप्पति तत्थ अपुण्णे, गंतुं जा वेरिसी अण्णा॥
(व्यभा ३३९३) जो संयम को क्षति पहुंचाता है, वह परिमंथ है। (बृभा ५६३९)
पलिमंथे.....",णामा एगट्ठिया इमे पंच। निग्रंथ और निर्ग्रथियों को इन पांच महार्णव (बहुउदक वाली
पलिमंथो वक्खेवो, वक्खोड विणास विग्यो य॥ अथवा समुद्रपर्यंतगामिनी) महानदियों का महीने में दो बार या
(बृभा ६३१४) तीन बार बाहु-जंघा आदि से उत्तरण तथा नौका आदि से संतरण
परिमंथ के पांच पर्यायवाची नाम हैं-परिमंथ. व्याक्षेप, नहीं करना चाहिए, जैसे-गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका, मही।
___व्याखोट, विनाश और विघ्न। कुणाला नगरी के निकट बहने वाली अर्ध योजन विस्तीर्ण. जंघार्ध प्रमाण जल वाली ऐरावती अथवा वैसी अन्य नदी में २. द्रव्य-भाव परिमंथ ऋतुबद्धकाल में मासकल्प पूर्ण हुए बिना ही दो बार या तीन बार, करणे अधिकरणम्मि य, कारग कम्मे य दव्वपलिमंथो। एक पैर जल में रखकर, एक पैर स्थल-आकाश में रखकर एमेव य भावम्मि वि, चउसु वि ठाणेसु जीवे तु॥ गमनागमन किया जा सकता है।
दव्वम्मि मंथितो खलु, तेणं मंथिज्जए जहा दधियं। _(पांच कारणों से महानदी-संतरण किया जा सकता है- दधितुल्लो खलु कप्पो, मंथिज्जति कोकुआदीहिं । १. शरीर, उपकरण आदि के अपहरण का भय होने पर, २. दुर्भिक्ष
(बृभा ६३१५, ६३१६)
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