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आगम विषय कोश-२
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नौका
से नहीं जाना चाहिये, क्योंकि जल में वनस्पति नियमत: ...."परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय णावाओ होती है। अत: वनस्पति मार्ग से जाना चाहिये। उसमें भी उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं णो सुमणे सिया, णो दुम्मणे प्रत्येक वनस्पति पथ से जाए, साधारण वनस्पति से नहीं। सिया, णो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसिं प्रत्येक वनस्पति का अपेक्षाकृत स्थिर संहनन होता है। बालाणं घाताए वहाए समुद्रुज्जा"॥
दो मार्ग हों-जलजीवयुक्त पथ और त्रसजीवयुक्त उदगंसि पवमाणे णो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, पथ । जलपथ से नहीं, साकुल पथ से जाए। पहले स्थिरशरीरी काएण कायं आसाएज्जा"|| जीवयुक्त, क्षुण्ण और निर्बाध पथ से जाए।
."णो उम्मग्ग-णिमग्गियं करेज्जा। मामेयं उदगं अग्निपथ और वायुपथ पर गमन असंभव है।
कण्णेसु वा, अच्छीसु वा. णक्कंसि वा, मुहंसि वा दो पथ हों-वनस्पति और त्रस। त्रस स्थिरसंहननी
परियावज्जेज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा। होते हैं, अतः विरल त्रसपथ से जाए, क्योंकि वनस्पति में
(आचूला ३/१४-१६, २६-२८) नियमतः त्रस होते हैं। चार पथ हों-पृथ्वी, जल, वनस्पति और त्रस. तो किस पथ से जाए? इनका क्रम इस प्रकार है-पहले
__ वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी एक गांव से दूसरे गांव अचित्त पृथ्वी, फिर विरल त्रसमार्ग, फिर वनस्पति-ये सब न
परिव्रजन करे, बीच में नौका से तैरने जितना जल (जलमार्ग) हों तो जलमार्ग से जाए।
आ जाये। वह भिक्षु नौका को जाने-कोई गृहस्थ भिक्षु के ४ मुनि की नौका-विहार-विधि
उद्देश्य से नौका को खरीदता है, उधार लेता है, नौका से नौका से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्ज
का परिवर्तन करता है, स्थल से नौका को जल में अवगाहित
करता है, जल में से नौका को स्थल की ओर खींचता है, जल माणे अंतरा से णावासंतारिमे उदए सिया। सेज्जं पुण णावं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु-पडियाए किणेज वा,
में भरी हुई नौका को खाली करता है, जल में निमग्न नौका को पामिच्चेज्ज वा, णावाए वा णाव-परिणाम कट्ट थलाओवा
ऊपर उठाता है (बाहर निकालता है)। इस प्रकार की
ऊर्ध्वगामिनी, अधोगामिनी अथवा तिर्यगगामिनी नौका, जो उत्कृष्ट णावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलाओ वा णावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुण्णं वा णावं उस्सिचेज्जा, सण्णं वाणावं
एक योजन अथवा अर्धयोजन की सीमा में चलती है, पार जाने उप्पीलावेज्जा। तहप्पगारंणावं उड्वगामिणिं वा, अहेगा
के लिए उस नौका में एक बार या बार-बार न बैठे। मिणिं वा, तिरियगामिणिं वा, परं जोयणमेराए अद्ध
(यदि नौका से पार जाना हो तो)वह सर्वप्रथम तिर्यगजायणमेराए वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा णो दरुहेज्ज गाामना नौका को जाने, जानकर गृहस्थ से उसकी आज्ञा लेकर गमणाए।
एकांत में चला जाये, भाण्ड-उपकरणों की प्रतिलेखना करे. ..पुवामेव तिरिच्छ-संपातिम णावं जाणेज्जा, उपकरणों को इकट्ठा करे (बांध ले), सिर से पैर तक शरीर जाणेत्ता सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा"भंडगं पडिले- का प्रमार्जन करे, प्रमार्जन कर साकार भक्तप्रत्याख्यान हेज्जा,"""एगाभोयं भंडगं करेज्जा..."ससीसोवरियं कायं (सविकल्प अनशन) करे, प्रत्याख्यान कर एक पैर जल में पाए य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता सागारं भत्तं पच्चक्खा- कर, एक पैर स्थल में रखे, संयमपूर्वक नौका में चढ़े। एत्ता एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, तओ न नौका के अग्रभाग में बैठे, न नौका के पृष्ठभाग में संजयामेवणावं दुरुहेज्जा॥
बैठे, न नौका के मध्य भाग में बैठे, भुजाओं से (नौका के ___ णो णावाए पुरओ दुरुहेज्जा, णो णावाए मग्गओ छोर को) पकड़-पकड़कर, अंगुलि से संकेत कर, नीचे दुरुहेज्जा, णो णावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, णो बाहाओ झुक-झुककर, ऊपर उठ-उठकर (जल आदि को) पगिल्झिय-पगिज्झिय, अंगुलिए उवदंसिय-उवदंसिय, अवधानपूर्वक न देखे। ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा॥
(यदि) गृहस्थ सहसा बलपूर्वक भुजा से पकड़कर
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