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आगम विषय कोश-२
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परिहारतप
० श्रमणविरोधी कहे---ब्राह्मणों का अभिवादन करो, वंदना करो। मानस्तिष्ठति न च क्वचिदन्याये प्रवृत्तिं करोति। मनियों को बंधन में बांधे, पीटे, देश से निष्कासित करे अथवा
__ (बृभा २०५८ की वृ) राजा प्रद्विष्ट हो जाए। इन गनादित कार्यों में जो मुनि संघ की
जिससे परिषद् डरती है-परिवार में जिस व्यक्ति की आज्ञा सुरक्षाविधि का अनुभूत ज्ञाता है, वह मंत्री परिषद् का सदस्य है।
की अखंड परिपालना होती है, जिसकी भृकुटी मात्र को देखकर राजा द्वारा असम्यक् व्यवहार किए जाने पर शास्त्रज्ञ मुनि
सारा ही परिवार भय से कांप उठता है और किसी भी अन्यायपूर्ण शास्त्रीय प्रमाणों से सरलता से उसे रोक देता है-राजन्! मुनि को
कार्य में प्रवृत्त नहीं होता, वह व्यक्ति भीतपरिषद् है। संघ द्वारा दंड दिया जाता है। राजा उसे दंडित नहीं कर सकता तथा दीक्षित को इस प्रकार का दंड नहीं दिया जा सकता।
परिहारतप-वह प्रायश्चित्त, जिसमें परस्पर आलाप-संलाप ५. राहस्यिकी परिषद्-माया, निदान तथा मिथ्यादर्शन-इन तीनों
आदि दस पदों का परिहार किया जाता है। शल्यों के उद्धरण अथवा अतिचारों की शुद्धि हेतु आचार्य के पास आलोचना करने वाले श्रमण के लिए राहस्यिकी परिषद् होती है।
१. परिहारतप और पारिहारिक
२. परिहारतप के स्थान साधु के लिए वह चतुष्कर्णा तथा साध्वी के लिए चतुष्कर्णा,
___* परिहारस्थान ही प्रायश्चित्त स्थान द्र प्रायश्चित्त षट्कर्णा और अष्टकर्णा परिषद् होती है।
३. परिहारतप के अयोग्य-योग्य ५. सिंह-वृषभ-मृग परिषद्
४. परिहारतप की योग्यता के परीक्षण बिन्दु कडजोगि सीहपरिसा, गीयत्थ थिरा य वसभपरिसा उ। ५. तपवहन का उचित समय सुत्तकडमगीयत्था, मिगपरिसा होइ नायव्वा॥
|६. परिहार-ग्रहणविधि : आलाप आदि पदों का वर्जन कतयोगिनो नाम गीतार्थाः परं न तथा समर्थाः..."स्थिराः
७. संभोज-वर्जन की अवधि और उसका हेतु
८. कल्पस्थिति और अनुपारिहारिक की सामाचारी बलवन्तः परमगीतार्थाः।
(बृभा २८९६ वृ)
९. परिहारी-अपरिहारी की पात्र-सामाचारी परिषद् के तीन प्रकार हैं
|१०. पारिहारिक के वैयावृत्त्य का विधान १. सिंह परिषद्-कृतयोगी-गीतार्थ परन्तु शरीर बल से न्यून। ११. परिहारी : आहारवितरण-विकृतिसेवन-अनुज्ञा २. वृषभ परिषद्-समर्थ गीतार्थ।।
१२. पारिहारिक द्वारा गच्छ की सेवा ३. मृग परिषद्-कृतसूत्र-सूत्रों को पढ़ने वाले किन्तु अगीतार्थ। * संघ-कार्य की प्रधानता ६. बाह्य-आभ्यन्तर परिषद्
१३. तपवहन काल में आचार्य द्वारा वैयावृत्त्य
|१४. पारिहारिक की क्षमताएं ___"बाहिरिया परिसा भवति, तंजहा-दासेति वा पेसेति वा
१५. परिहारतप का निक्षेप-झोष भतएति वा भाइल्लेति वा कम्मारएतिवा... अबिभंतरिया परिसा।
१६. पारिहारिक : मार्ग में रुकने के कारण भवति, तं जहा-माताति वा पिताति वा भायाति वा भगिणीति
१७. वादी पारिहारिक को अल्प प्रायश्चित्त वा भजाति वा धूयाति वा सुण्हाति वा (दशा ६/३) १८. शुद्धतप और परिहारतप में अन्तर बाह्य परिषद्-जैसे-दास, प्रेष्य, भृतक, भागीदार, कर्मकर आदि। १९. परिहार और छेद आभ्यन्तर परिषद्-माता-पिता, भाई-बहिन, पत्नी, पुत्री, पुत्रवधू।
* अनवस्थाप्य परिहारतपवहन
द्र पारांचित ६. भीतपरिषद्
१. परिहारतप और पारिहारिक भीता-चकिता पर्षद् यस्य स भीतपर्षद्, आज्ञैकसारतया पञ्चकादिषु भिन्नमासान्तेषु परिहारतपो न भवति, किन्तु यस्य भृकुटिमात्रमपि दृष्ट्वा परिवार: सर्वोऽपि भयेन कम्प- मासादिषु।
(व्यभा ५९८ की ४)
द्र संघ
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