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आगम विषय कोश-२
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पर्युषणाकल्प
* वर्षावास में उपधि-अग्रहण, तीन मात्रक द्र उपधि संखा-एत्तिया वरिसा मम उवद्रावियस्स" "सव्वलोगप४. प्रथम प्रावृट् और वर्षावास में विहार-निषेध
सिद्धेण पागताभिधाणेण पज्जोसवणा भण्णति । बहूण ० विहार से हानि, विहार के अपवाद
समवातोसमोसरणं।तेय दो समोसरणा-एर्गवासासु, बितियं ५. पर्युषणाकाल : जघन्य-उत्कृष्ट ज्येष्ठावग्रह
उबद्धे। जतो पज्जोसवणातो वरिसं आढप्पति अतो पढमं ६. वर्षावास के पश्चात् वहीं रहने का हेतु
समोसरणं भण्णति।"वासकप्पमेरा ठविज्जति"। ७. पर्युषणा में क्षेत्रगमन-सीमा, भिक्षाचरी-क्षेत्र ८. वर्षावास में करणीय कार्य
(निभा ३१३८-३१३९ की चू) ९. पर्युषणा (संवत्सरी) पर्व दिन
प्रथमसमवसरणं ज्येष्ठावग्रहो वर्षावास इति । द्वितीय० आर्यकालक : चतुर्थी को संवत्सरी
समवसरणम् ऋतुबद्ध इति चैकार्थम्। (बृभा ४२४२ की वृ) * पर्युषणा में क्षमायाचना अनिवार्य द्र अधिकरण
पर्युषणा के गुणनिष्पन्न पर्यायवाची नाम आठ हैं१०. पर्युषण तप की अनिवार्यता
१. पर्यायव्यवस्थापन–पर्युषणा के दिन प्रव्रज्यापर्याय की संख्या ० पूर्ण निराहार अथवा योगवृद्धि
का व्यपदेश किया जाता है-मुझे दीक्षित हुए इतने वर्ष हुए हैं। ० वर्षाकालीन तप से बलवृद्धि
२. पर्योसवना-इसमें ऋतुबद्धिक द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव-पर्यायों का * आज्ञापूर्वक विकृति-ग्रहण और तप
द्र आज्ञा ११. नित्यभोजी और तपस्वी : गोचरकाल
परित्याग तथा वर्षाकल्पप्रायोग्य द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है। १२. तप और पानक प्रमाण
३. परिवसना-पर्युषणा-मुनि चार मास तक सर्वथा एक स्थान पर ० विविध पानक : ग्रहणविधि
रहते हैं, सब दिशाओं में परिभ्रमण का निषेध होता है। १३. पर्युषणा में लोच की अनिवार्यता
४. पर्युपशमना- इसमें कषायों का उपशमन किया जाता है। पूर्व ० जिनकल्पी आदि और लोच
कलह का क्षमायाचना द्वारा सर्वथा उपशमन किया जाता है। इसकी केशलोच क्यों?
लोकप्रसिद्ध प्राकृत अभिधा है-पज्जोसवणा।
५. वर्षावास-वर्षा में चार मास एक स्थान में रहना होता है। १. पर्युषणा के पर्यायवाची नाम
६. प्रथम समवसरण-कोई व्याघात न हो तो प्रथम प्रावट (आषाढ) पज्जोसमणाए अक्खराइं होंति उ इमाइं गोण्णाई। जान
में ही वर्षावासप्रायोग्य क्षेत्र में प्रवेश किया जाता है। परियायववत्थवणा, पज्जोसमणा य पागइया॥
समवसरण का अर्थ है-बहुतों का समवाय। वे दो होते परिवसणा पज्जुसणा, पज्जोसमणा य वासवासो य।
हैं-वर्षाकाल में और ऋतुबद्धकाल में। पर्युषणाकाल से वर्ष का पढमसमोसरणं ति य, ठवणा जेट्ठोग्गहेगट्ठा॥
प्रारंभ होता है, इसलिए इसे प्रथम समवसरण कहा जाता है। ___ ......"उड़बद्धिया दव्वखेत्तकालभावपज्जाया एत्थ
__ प्रथम समवसरण, ज्येष्ठावग्रह और वर्षावास-ये एकार्थक पज्जोसविजंति, उज्झिज्जंतित्ति भणितं होइ, अण्णारिसा
हैं। द्वितीय समवसरण और ऋतुबद्ध-ये एकार्थक हैं। दव्वादिपज्जाया वासारत्ते आयरिजंति तम्हा पज्जोसमणा
७. स्थापना वर्षावास-सापाचारी की स्थापना की जाती है। भण्णति।"एगत्थ चत्तारि मासा परिवसंतीति परिवसणा।
८. ज्येष्ठावग्रह-ऋतुबद्धकाल में एक-एक मास का क्षेत्रावग्रह सव्वासु दिसासुण परिब्भमंतीति पज्जुसणा। वरिसासु चत्तारि ।
होता है, वर्षावास में चार मास का एक क्षेत्रावग्रह होता है। मासा एगत्थ अच्छंतीति वासावासो। निव्वाघातेणं पाउसे चेव
२. पर्युषणा की स्थापना कब? कैसे? वासपाउग्गं खित्तं पविसंतीति पढमसमोसरणं ।'उडुबद्धे
आसाढपुण्णिमाए, वासावासासु होति अतिगमणं। एक्केक्कं मासं खेत्तोग्गहो भवति, वरिसासु चत्तारि मासा एग
___मग्गसिरबहुलदसमी, उ जाव एक्कम्मि खेत्तम्मि॥ खेत्तोग्गहो भवति त्ति जेट्ठोग्गहो। (दशानि ५३, ५४ चू) बाहि ठिया वसभेहिं, खेत्तं गाहेत्त वासपाउग्गं। ."पज्जोसवणादिवसे पव्वज्जापरियागो व्यपदिश्यते कप्पं कधेत्तु ठवणा, सावणबहुलस्स पंचाहे॥
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