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आगम विषय कोश-२
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नौका
नौका-जलयान। जलसंतरण का साधन।
० विवेकपूर्वक वस्त्र-पात्र आदि को लेता और रखता है। ० आलोकित पानभोजनभोजी है। ० अनुवीचिभाषी-विचारपूर्वक बोलता है। ० क्रोधपरिज्ञा-क्रोधप्रत्याख्यान करता है। ० लोभपरिज्ञा-लोभप्रत्याख्यान करता है। ० भयपरिज्ञा-भयप्रत्याख्यान करता है। ० हास्यपरिज्ञा-हास्यप्रत्याख्यान करता है।
जैन श्रमण को निग्रंथ कहा जाता है।-द्र श्रमण
१. जलसंतरण के साधन : सामुद्रिक नौका आदि २. जलसंतरण के मार्ग : संक्रम, संघट्ट आदि ३. अन्य मार्ग के अभाव में जलमार्ग-गमन ४. मुनि की नौका-विहार-विधि ___ * महावीर और नौकाविहार ५. महानदी-संतरण की सीमा
द्र देव
निर्जरा-तप के द्वारा कर्मविलय से होने वाली आत्मा
की उज्ज्वलता। इसके बारह भेद हैं। द्र तप निर्यापक-अनशनकर्ता की समाधि में योगभूत मुनि।
द्र अनशन निशीथ-छेदसूत्रवर्ग का एक ग्रंथ, जिसमें प्रायश्चित्त
का विधान और प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया निर्दिष्ट है।
द्र छेदसूत्र निषद्या-अभिशय्या, स्वाध्याय भूमि। द्र स्वाध्याय नैरयिक-नरकगति में रहने वाले, स्वकृत प्रकृष्ट पापजन्य दुःखों का वेदन करने वाले जीव। नैरयिक सुख का वेदन भी करते हैं ।(द्र सम्यक्त्व) * नरकायुबंध के हेतु
द्र कर्म * नैरयिक की आयुस्थिति द्र श्रीआको १ नरक नैषधिका-निषद्या, बैठकर किए जाने वाले आसन।
द्र कायक्लेश
१. जलसंतरण के साधन : सामुद्रिक नौका आदि
णावातारिम चतुरो, एग समुइंमि तिण्णि य जलंमि। ओयाणे उजाणे, तिरिच्छसंपातिमे चेव॥ .कुंभे दतिए तुंबे, उडुपे पण्णी य एमेव॥
(निभा १८३, १८५) नौका के चार प्रकार हैं१. सामुद्रिक नौका-यथा-तेयालगपत्तन (वेरावल) से द्वारवती जाने वाली। समुद्रगामिनी के अतिरिक्त अन्यत्र जलयानी के तीन प्रकार हैं२. अवयानी-अनुस्रोतगामिनी नौका। ३. उद्यानी-प्रतिस्रोतगामिनी नौका। ४. तिर्यक् सम्पातिम-एक कूल से दूसरे कूल तक सीधी जाने वाली तिर्यक्संतारिणी नौका।
उदक-संतरण के पांच अन्य साधन भी हैं० कुम्भ-चतु:काष्ठी के कोनों में घड़े बांधकर, उनका अवलम्बन लेकर जलसंतरण करना। ० दृति-वायु से भरी हुई मशक से तैरना। • तुम्ब-जाल में तुंबे भरकर उन पर आरूढ़ हो संतरण करना। ० उडुप-कोटिंब (लकड़ियों को बांधकर बनाई हुई नौका) से संतरण करना। .पर्णी-पर्ण या पर्णलताओं को यमल रूप में बांधकर उनके सहारे संतरण करना। णावाए""ऊर्द्ध कसणं उक्कसणं समुद्दवातेणं।
(आचूला ३/१७ की चू) समुद्री वायु के कारण नौका का उत्कर्षण किया जाता है-उसे ऊपर की ओर खींचा जाता है।
नषेधिकी-सूत्रार्थ-प्रायोग्य स्थान, जहां स्वाध्याय-
द्र
व्यातारक्त शष सब प्रवृत्तिया का निषष होता है।
द्र स्वाध्याय दशविध सामाचारी का एक भेद, मुनि द्वारा कार्य से निवृत्त होकर आने पर 'निसीहिया' नैषेधिकी-मैं निवृत्त हो चुका हूं, ऐसा कहना।
द्र सामाचारी
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