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दीक्षा
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आगम विषय कोश-२
राजा, युवराज, श्रेष्ठी, मंत्री, वणिक्, गौष्ठिक और संवास-अनुपस्थापित के साथ एकत्र संवास नहीं किया जा महाकुलीन-यदि ये सब दो-दो दीक्षित होते हैं तो सूत्र- सकता। बड़ी दीक्षा के पश्चात् संभोजन और संवास होता है। अध्ययन समान होने पर एक साथ उपस्थापित कर उन्हें ७. चिरदीक्षित कौन? समरात्निक रखा जाता है। उपस्थापना के समय ऐसी समानश्रेणी चिरपव्वडओ तिविहो, जहण्णओमज्झिमो य उक्कोसो। वाले अनेक व्यक्ति हों तो वे सहजरूप से आवलिका में
तिवरिस पंचग मज्झो, वीसतिवरिसो य उक्कोसो॥ स्थित होते हैं। उन्हें आचार्य के सामीप्य के क्रम से ज्येष्ठ
(बृभा ४०३) अनुज्येष्ठ रखा जाता है। जो आचार्य के दोनों पार्यों में स्थित होते हैं, उन्हें समरानिक रखा जाता है।
चिरप्रव्रजित के तीन प्रकार हैं६. उपस्थापना के पश्चात् : दिशादान आदि
जघन्य चिरप्रव्रजित - तीन वर्ष का दीक्षित। ..."दविहा तिविहाय दिसा, आयंबिल जस्स वाजंत॥ मध्यम चिरप्रव्रजित - पांच वर्ष का दीक्षित।
.."उवद्वावियस्स साधस्स आयरियउवझाया दविहा उत्कृष्ट चिरप्रव्रजित – बीस वर्ष का दीक्षित। दिसा दिज्जति।इत्थियाए तइया-पवत्तिणीदिसा दिज्जति। ८. दीक्षा के अनर्ह कौन? जद्दिवसं उवट्ठावितो तदिवसं केसिं चि अभत्तट्ठो भवति, जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा केसिंचि निव्वितियं, केसिं चि आयंबिलं, केसिं चि न अणुवासगं वा अणलं पव्वावेति, पव्वावेंतं वा किंचि। जस्स वा जं आयरियपरंपरागतं छट्ठट्ठमातियं सातिज्जति ॥..."आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं कारविज्जति। एसा उवट्ठावणा।
अणुग्घातियं॥
(नि ११/८५, ९३) संभुंजणा-जतो मंडलिसंभोगट्ठा सत्त आयंबिले ___ अट्ठारस पुरिसेसुं, वीसं इत्थीसु दस नपुंसेसु। कारविज्जति, णिव्वितए वा जस्स वा जं आयरियस्स
पव्वावण अणरिहा, ....॥ परंपरागयं।
(निभा ३७५९ चू)
बाले वुड्ढे णपुंसे य, जड्डे कीवे व वाहिए। वासो ण कप्पति।
तेणे रायावकारी य उम्मत्ते य अदंसणे॥ .."उवट्ठावेउं संभुंजेज्ज संवासेज्ज वा।
दासे दुढे य मूढे य, अणत्ते जुंगिए इ य। (निभा ३७६३ की च)
उब्बद्धए य भयए, सेहणिप्फेडियाइ य॥ ० दिशादान-उपस्थापित साधु को द्विविध दिशा दी जाती
गुव्विणि बालवच्छा य, पव्वावेउं ण कप्पती..." है-आचार्य और उपाध्याय (उसे इनकी निश्रा में रहने का
पंडए वातिए कीवे, कुंभी इस्सालुए त्ति य। निर्देश दिया जाता है।)
सउणी तक्कम्मसेवी य, पक्खियापक्खिते ति य॥ साध्वी के त्रिविध दिशा का निर्धारण किया जाता
सोगंधिए य आसित्ते....... । है-आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी। जिस दिन उपस्थापित किया जाता है, उस दिन किसी
(निभा ३५०५-३५०८, ३५६१, ३५६२) के उपवास, किसी के निर्विकृतिक, किसी के आचाम्ल और
जो भिक्षु अयोग्य स्वजन या अस्वजन, उपासक या किसी के कुछ नहीं होता। अथवा जिसकी जो आचार्य परम्परा अनुपासक को प्रव्रजित करता है, वह चातुर्मासिक गुरु होती है, उसके अनुसार षष्ठभक्त-अष्टमभक्त (बेला-तेला)
प्रायश्चित्त का भागी होता है। आदि कराया जाता है-यह उपस्थापना है।
अठारह प्रकार के पुरुष, बीस प्रकार की स्त्रियां ० संभोजन-आहारमंडली में भोजन करने के लिए सात आयंबिल और दस प्रकार के नपुंसक-ये अड़तालीस व्यक्ति दीक्षा या निर्विकृतिक या जो आचार्य परंपरा से प्राप्त है, वह कराया के योग्य नहीं हैं। जाता है।
० अठारह प्रकार के पुरुष-बाल, वृद्ध, नपुंसक, स्थूल, क्लीव,
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