________________
दीक्षा
३०२
आगम विषय कोश-२
(व्रत, श्रमणधर्म आदि)-इन सबका चारित्रावरण कर्म के जिसने राजा के सचित्त-अचित्त-मिश्र (पुत्र, रत्नहार आदि) उदय के कारण सम्यक् अनुशीलन नहीं कर पाता, वह का अपहरण किया हो, कूटलेख लिखे हों या राजपुत्र आदि करणजड्ड है।
को वध-बंधन द्वारा व्यथित किया हो। ० भाव-स्तेन : गोविंदार्य आदि उदाहरण
० पंच विध मूढ ....... भावम्मि य नाणतेणोतु॥ मोत्तूण वेदमूढं, आदिल्लाणं तु नत्थि पडिसेहो। गोविंदऽज्जो णाणे, दंसणसत्थट्ठहेतुगट्ठा वा। वुग्गाहणमण्णाणे, कसायमूढा तु पडिकुट्ठा। ........"उदायिवहगातिया चरणे॥
(निभा ३७०२) (निभा ३६५३, ३६५६)
द्रव्य, दिशा, क्षेत्र, काल, सादृश्य और अभिनव-मूढ जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र का हरण करने के लिए
__ के ये सात प्रकार दीक्षा के योग्य हैं। वेद, व्युद्ग्राह्य, अज्ञान, चारित्र ग्रहण करते हैं, वे भाव स्तेन हैं।
कषाय और मत्त-ये पांच प्रकार के मूढ प्रव्रज्या के लिए ज्ञानस्तेन-गोविंद नाम का एक भिक्षु था। एक आचार्य ने उस प्रतिषिद्ध हैं। मूढ के बारह प्रकार हैं।
(द्र मूढ) भिक्षु को शास्त्रार्थ में अठारह बार पराजित किया। भिक्षु ने
० जुंगित सोचा-जब तक मैं इनके सिद्धांत का स्वरूप नहीं जानूंगा, तब
....."ण कप्पती तारिसे दिक्खा॥ तक इन्हें जीत नहीं सकूँगा। अतः उसने ज्ञान के आवरण को
चउरो य जुंगिया खलु, जाती कम्मे य सिप्प सारीरे। हटाने के लिए उन्हीं आचार्य के पास दीक्षा ली, सामायिक
णेक्कारपाणडोंबा, वरुडा वि य जुंगिता जाती। आदि आगमों का अध्ययन करते हुए सम्यक्त्व प्राप्त की।
पोसग-संपर-णड-लंख-वाह-सोगरिंग-मच्छिया कम्मे। तत्पश्चात् उसने गुरु को वन्दन कर व्रत देने को कहा। तुम्हें पदकारा य परीसह, रयगा कोसेज्जगा सिप्पे॥ व्रत दे चुका हूं'-गुरु के ऐसा कहने पर उसने अपनी यथास्थिति हत्थे पाए कण्णे, नासा उट्ठे विवज्जिया चेव। बताई, तब गुरु ने व्रत-दीक्षा दी।
वामणग-वडभ-खुज्जा, पंगुल-कुंटा य काणा य॥ उसी गोविंदार्य ने एकेन्द्रिय जीवों का अस्तित्व सिद्ध
(निभा ३७०६-३७०९) करने वाली 'गोविंदनियुक्ति' की रचना की।
पाणा नाम ये ग्रामस्य. बहिराकाशे वसन्ति तेषां दर्शनस्तेन-दर्शनप्रभावक ग्रंथों तथा कर्कटक आदि हेतुओं का गृहाणामभावात्। डोम्बा, येषां गृहाणि सन्ति गीतं च अध्ययन करने के लिए निष्क्रमण करने वाला।
गायन्ति।
(व्यभा १४४९ की वृ) चारित्रस्तेन-जैसे राजा के वध के लिए उदायिमारक ने प्रव्रज्या
जुंगित (जाति आदि से हीन) को दीक्षा नहीं दी जा ली।
सकती। उसके चार प्रकार हैं। ० शासक का अपकारी
१. जातिजुंगित-जुलाहा, पाण (गांव के बाहर खुले आकाश रण्णो ओरोहातिसु, संबंधे तह य दव्वजायम्मि। में रहने वाले), डोंब, (गायक, जिनके घर होते हैं), वरुड अब्भुट्टितो विणासाय होति रायावकारी तु॥ (चटाई बनाने वाले) आदि जगप्सित जातियां। सच्चित्ते अच्चित्ते, व मीसए कूडलेहवहकरणे। २. कर्मजुंगित-स्त्री-मयूर-कुक्कुट-पोषक, संवर (नाईसमणाण व समणीण व, ण कप्पती तारिसे दिक्खा॥ धोबी अथवा शांबर-जादूगर), नट, लंख (बांस पर चढ़कर
(निभा ३६६३, ३६६४) खेल दिखाने वाले), शिकारी, कसाई, मच्छीमार।। श्रमण और श्रमणी वैसे व्यक्ति को दीक्षित नहीं कर ३. शिल्पजुंगित-चर्मकार, नापित, रजक, कौशेयक (रेशमी सकते, जिसने राजा के अंत:पुर आदि से संबंधित कोई अपराध वस्त्र बनाने वाले)। किया हो, जो रत्न आदि द्रव्यों के विनाश के लिए उद्यत हो, ४. शरीरजुंगित-हाथ, पैर, कान, नाक और होठ से रहित,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org