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देव
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आगम विषय कोश-२
ढकी हुई होती है। सिद्धसेनगणी के अनुसार प्रच्छदपट के एइ। तस्सेवं बोलमाणस्स कंटकः पादे लग्नो तं जाव ऊपर और देवदूष्य के नीचे इन दोनों के अन्तराल में वर्तमान एगेणं हत्थेणं उद्धरइ ताव तित्थगरो इमंगाहत्थं पण्णवेइवैक्रियवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर देव उत्पन्न होता है। 'अमिलायमल्लदामा......."सुरा जिणो कहति॥' वह प्रच्छदपट और देवदूष्य के पुद्गलों से अपने शरीर का एवं सोउं कंटगं उद्धरित्ता पुणो कण्णे ठवेउं गतो। निर्माण नहीं करता है और न शुक्र और शोणित से अपने शरीर अन्नया रत्तिं चोरो त्ति गहितो"पिट्टिउमाढत्तो भण्णइ य
का निर्माण करता है। उसके जन्म का हेतु उपपात सभा के अक्खाहि सव्वं तुमं रोहिणितो न व त्ति। जइ रोहिणितो देवशयनीय क्षेत्र को प्राप्त होना ही है।-भ ३/१७ का भाष्य सिया तो मुयामो। एवं सो नीतिसत्थपविठ्ठाहिं अट्ठारसहिं एक-एक देवनिकाय में दशविध देव होते हैं
कारणेहिं एक्केक्कं काउं पुच्छिज्जइ।सो न कहेइ।ताहे १. इन्द्र ६. लोकपाल
अट्ठारसमा सुहुमा कारणा करिउमाढत्ता मज्जं पाइतो मत्तो २. सामानिक ७. अनीकाधिपति निच्चेयणो जातो। ताहे देवलोगभवणसरिसंभवणं काउं ३. त्रायस्त्रिंश ८. प्रकीर्णक
तत्थ महरिहे सयणिज्जे निवज्जावितो।ततो पडिबोहवेलाए ४. पारिषद्य ९. आभियोग्य
इत्थिनाडए निव्वतिज्जमाणे ताहिं भण्णइ-तुमं देवलोगे ५. आत्मरक्ष १०. किल्विषिक
उववन्नो।देवलोए य एसो अणुभावो जो "पुव्वभवं सम्म व्यंतर और ज्योतिष्क देवनिकाय में त्रायस्त्रिश तथा अक्खाति सो चिरठिती देवति अत्थति, जो न अक्खाति लोकपाल नहीं होते।-तसू ४/४, ५)
सो तक्खणं पडति। तो मा अम्हे अणाहा काहिसि।
ततो रोहिणिएण तित्थयरवयणं संभरित्ता चिंतियं २. देवों की पहचान
-अपूतिवयणा तित्थगरा"इमं च सव्वं वितहं दीसइ। अमिलायमल्लदामा, अणिमिसनयणा य नीरजसरीरा।
तओ कयगं एवं ति भणाइ नाहं रोहिणितो।ततो मुक्को" चउरंगुलेण भूमि, न छिवंति सुरा जिणो कहति॥
अहो एगस्स वि सामिणो वयणस्स केरिसं माहप्पं । अहं (व्यभा १२७८)
जीवियसुहआभागी जातो, जइ पुण निग्गंथाण वयणं एक बार राजगृह की परिषद् में श्रमण महावीर ने सुणेमि तो इहलोए परलोए य सुहिओ भवामि त्ति चिंतिकहा
ऊण पव्वइतो। (व्यभा १२७७, १२७८ वृ) ० चतुर्निकायभावी देवों के माल्यदाम म्लान नहीं होते।
__रोहिणेय को पकड़ने के लिए अभयकुमार ने सूक्ष्म ० वे अनिमिषनयन होते हैं (उनकी पलकें नहीं झपकतीं)।
निर्वापणा की-मृदु उपाय से उसके मन की बात जानने का ० उनका शरीर निर्मल कांति वाला होता है।
प्रयत्न किया० पैर चार अंगुल ऊपर रहते हैं, भूमि का स्पर्श नहीं करते। राजगह नगर के बाहर वैभारगिरि की गुफा में लोहखरो ० अर्हत्-वचन से कल्याण : रोहिणेय दृष्टांत
चोर रहता था। उसकी पत्नी थी रोहिणी, पुत्र था रोहिणेय । पिता ....."सहमं परिनिव्वति .................
ने अंतिम इच्छा प्रकट की-पुत्र! महावीर नाम के व्यक्ति बहुत सूक्ष्मं परिनिर्वापणं.."रोहिणिकचौरस्याभय- प्रभावशाली हैं। वे चोर को अचोर बना देते हैं, अतः तुम न कुमारेण कृतम्।तच्चैवम् - रायगिहं नगरं। तत्थ रोहिणितो उनके पास जाना, न उनकी वाणी सुनना। इस आदेश को चोरो बाहिं दुग्गट्ठितो। सो सयलं नगरं मुसति।न कोइ तं शिरोधार्य कर वह पिता से भी आगे बढ़ गया, राजगृह को घेत्तुंसक्कति।अन्नया वद्धमाणसामी समोसढो।रोहिणितो आतंकित कर दिया। उसके पास गगनगामिनी पादुकाएं थीं और भयवतो धम्मं कहेंतस्स नातिदूरेणं बोलेइ।सो चलमाणो वह रूपपरिवर्तनी विद्या को जानता था। वह नगर में चोरी करता मा तित्थगरवयणं सोउं चोरियं न कहामि त्ति कण्णे ठवेइ किन्तु किसी की पकड़ में नहीं आता।
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