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निदान
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आगम विषय कोश-२
३. देवीभोग का निदान
निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जंणो संचाएति ...'जति इमस्स सुचरियस्स तव-नियमबंभ- सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं चेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि पव्वइत्तए।
(दशा १०/३१) आगमेस्साई इमाइं एतारूवाइं दिव्वाइं भोग-भोगाई मनुष्यसंबंधी कामभोग अध्रुव हैं, दिव्य कामभोग भुंजमाणे विहरामि। तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए भी अध्रुव हैं। इसलिए कोई तपस्वी श्रमणोपासक को देखकर फलविवागे, जं णो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्मं यह संकल्प करता है-यदि मेरे द्वारा आचीर्ण इस तपसद्दहित्तए"।
(दशा १०/२८) नियम-ब्रह्मचर्यवास का कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो ___ कोई तपस्वी देवी परिचारणा से आकृष्ट हो यह संकल्प
मैं भी अगले जन्म में श्रमणोपासक बनूं। करता है-यदि मेरे द्वारा आचीर्ण इस सुचरित तप-नियम
उस निदान का पापकारी परिणाम यह होता है कि वह
अगले जन्म में सर्वतः सर्वात्मना मण्ड होकर अगार से अनगारता ब्रह्मचर्यवास का कल्याणकारी सुफल हो तो मैं भी अगले जन्म में इस प्रकार के दिव्य भोगों का परिभोग करूं।
में प्रव्रजित नहीं हो सकता। उस निदान का पापकारी परिणाम यह होता है कि ६. दरिद्रकुलोत्पत्ति का निदान वह व्यक्ति अगले जन्म में केवलि-प्रज्ञप्त धर्म पर श्रद्धा नहीं जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कर सकता।
कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं ४. सहज दिव्यभोगों का निदान.....
जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा "एतेसि णं जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चाइस्सामि। एस मे आता कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तं अहमवि आगमेस्साई परियाए सुणीहडे भविस्सति। तस्स निदाणस्स इमेतारूवे इमाई एतारूवाइं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरामि।
पावए फलविवागे, जंणो संचाएति तेणेव भवग्गहणेणं ..." तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे जंणो सिज्झित्तए जाव सव्वदुक्खाणमंतं करित्तए।(दशा १०/३२) संचाएति सील-व्वत-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण- कोई तपस्वी किसी दरिद्र कुल में उत्पन्न धार्मिक पोसहोववासाइं पडिवज्जित्तए। (दशा १०/३०) को देखकर निदान करता है-यदि मेरे द्वारा सुचरित इस कोई तपस्वी दिव्य कामभोगों को देखकर यह संकल्प
तप-नियम-ब्रह्मचर्यवास का कल्याणकारी फल हो तो मैं करता है कि यदि मेरे द्वारा सुचरित इस तप-नियम-ब्रह्मचर्यवास
भी अगले जन्म में अंत-प्रांत कुलों में पुरुष रूप में उत्पन्न का कल्याणदायी फल हो तो मैं भी भविष्य में इस प्रकार के
होऊं, जिससे मैं आसानी से मुनि बन सकू। दिव्य कामभोगों का भोग करता हुआ विहरण करूं।
इस निदान के पापकारी फलविपाक के कारण वह उस निदान का पापकारी परिणाम यह होता है कि
अगले जन्म में प्रव्रजित होकर भी सिद्ध नहीं हो सकता वह आगमी मनुष्य भव में शीलव्रत-गुण-विरमण-प्रत्याख्यान
यावत् सब दुःखों का अंत नहीं कर सकता। और पौषधोपवास स्वीकार नहीं कर सकता।
० दरिद्रता का निदान : रत्नविक्रय दृष्टांत ५. श्रमणोपासक होने का निदान....
एवं सुनीहरो मे, होहिति अप्प त्ति तं परिहरंति। ..माणुस्सगा कामभोगा अधुवा""दिव्वावि खलु ।
हंदि! हु णेच्छंति भवं, भववोच्छित्तिं विमग्गंता॥ कामभोगा अधुवा“जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम
जो रयणमणग्घेयं, विक्किज्जऽप्येण तत्थ किं साहू। बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तं दुग्गयभवमिच्छंते, एसो च्चिय होति दिद्रुतो॥ अहमवि आगमेस्साणं समणोवासए भविस्सामि"तस्स
(बृभा ६३४४, ६३४५)
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