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द्रव्य
० परमाणु
भी
गुरुलघु ३. निश्चय - व्यवहारनय: गुरु-लघु-अगुरुलघु ४. मूर्त्त-अमूर्त्त द्रव्य : पर्यायों का अल्पबहुत्व * ज्ञान का परिमाण : अगुरुलघु पर्यव ५. जीवादिषट्क का अल्पबहुत्व
* द्रव्य के परिणमन : शीत-उष्ण
* द्रव्य अवग्रह
द्र ज्ञान
द्र आहार द्र अवग्रह
१. द्रव्यस्कंध और समय-स्थिति
दु-पएसओ ति-पसिओ चउ-पंच-छ- सत्त- ट्ठra - दस - पसिओ एवं जावऽणंताणंतपएसितो खंधो ततो परं अण्णो बृहत्तरो भवति सो खंधो दव्वग्गं । एगसमयठितियं दव्वं दुसमयठितियं जाव असंखेज्जसमयठितियं ततो परं अण्णं उक्कोसतरठितिजुत्तं ण भवति परमाणुसु एग-समयादारम्भ जाव असंखकालठिती जातो परमाणुठितीतो परं अण्णो परमाणू उक्कोसतरठितिओ ण भवति । (निभा ५४ की चू)
द्रव्य के स्कंध अनेक प्रकार के होते हैं-द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, चार-पांच-छह-सात-आठ-नौ-दस प्रदेशी यावत् अनंतानंतप्रदेशी । अनंतानंतप्रदेशी पुद्गलस्कंध से बृहत्तर अन्य स्कंध नहीं है, अतः यह द्रव्याग्र है ।
द्रव्य एक समय की स्थिति वाला, दो समय की स्थिति वाला यावत् असंख्य समय की स्थिति वाला होता है। द्रव्य की उत्कृष्टतर स्थिति असंख्य काल से अधिक नहीं होती। इसी प्रकार परमाणुओं में भी एक समय से लेकर उत्कृष्टतर असंख्य काल की स्थिति वाले परमाणु होते हैं।
* 'द्रव्य के गुण, पर्याय, प्रकार आदि द्र श्रीआको १ द्रव्य
२. गुरुलघु- अगुरुलघु द्रव्य
णिच्छयतो सव्वगुरुं, सव्वलहुं वा ण विज्जते दव्वं । ववहारतो तु जुज्जति, बादरखंधेसु णऽण्णेसु ॥
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गुरु द्रव्यं यथा— अयस्पिण्डः, लघु यथा— अर्कतूलम् गुरुलघु यथा – वायुः, अगुरुलघु परमाण्वादि । निश्चयतः पुनरेवं द्विविधद्रव्यभावना - परमाण्वादेरारभ्य संख्यातप्रदेशात्मकोऽसंख्यातप्रदेशात्मको यश्चानन्तप्रदेशात्मकः
आगम विषय कोश- २
सूक्ष्मस्कन्धः कार्मणप्रभृतिक एते अगुरुलघवः, बादराः स्कन्धा औदारिकवैक्रिया ऽऽहारक- तैजसरूपा गुरुलघवः । (बृभा ६५ वृ)
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निश्चयनय के अनुसार द्रव्य एकान्ततः गुरु अथवा एकान्ततः लघु नहीं होता । व्यवहारनय के अनुसार द्रव्य अर्थात् बादर स्कंध एकान्ततः गुरु अथवा एकान्ततः लघु होता है, जैसे - गुरु —- लोहपिंड । लघु- अर्कतूल। गुरुलघु- वायु । अगुरुलघु — परमाणु आदि । जो सूक्ष्म परिणाम में परिणत हो जाते हैं, वे द्रव्य एकान्ततः गुरु या लघु नहीं होते ।
निश्चयनय के अनुसार द्रव्य दो प्रकार के हैं— परमाणु से प्रारम्भ कर संख्येय- प्रदेशात्मक, असंख्येय- प्रदेशात्मक अथवा अनन्तप्रदेशात्मक सूक्ष्म स्कन्ध-कार्मण शरीर आदि अगुरुलघु होते हैं तथा औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस-ये बादर स्कंध गुरुलघु होते हैं ।
(नैरयिक वैक्रिय और तैजस की अपेक्षा से गुरुलघु हैं, जीव और कार्मण की अपेक्षा से अगुरुलघु हैं।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय - न गुरु हैं, न लघु हैं, न गुरुलघु हैं, अगुरुलघु हैं । पुद्गलास्तिकाय गुरुलघु भी है, अगुरुलघु भी है। गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा से वह गुरुलघु है। अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा से वह अगुरुलघु
है ।
समय अगुरुलघु हैं। कर्म अगुरुलघु हैं।
कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या न गुरु हैं, न लघु हैं, गुरुलघु भी हैं, अगुरुलघु भी हैं। द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से वे गुरुलघु हैं, भावलेश्या की अपेक्षा से अगुरुलघु हैं । दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा अगुरुलघु हैं । प्रथम चार शरीर गुरुलघु और कार्मणशरीर अगुरुलघु हैं। मनयोग और वचनयोग अगुरुलघु हैं, काययोग गुरुलघु है।
पदार्थ दो प्रकार के होते हैं- भारयुक्त और भारहीन । भार का संबंध स्पर्श से है। वह पुद्गल द्रव्य का एक गुण है । शेष सब द्रव्य भारहीन अगुरुलघु होते हैं । पुद्गल द्रव्य भारयुक्त और भारहीन दोनों प्रकार का होता है। जिनभद्रगणी के अनुसार गुरु, लघु, गुरुलघु और अगुरुलघु- ये चार विकल्प व्यवहारनय के अनुसार होते हैं। निश्चय नय के
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