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द्रव्य
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आगम विषय कोश-२
३. निश्चय-व्यवहार नय : गुरु-लघु-अगुरुलघु जो ऊर्ध्वगति में ले जाते हैं, वे लघु तथा जो मनुष्यगति
गुरुयं लहुयं मीसं, पडिसेहो चेव उभयपक्खे वि। तिर्यञ्चगति में ले जाते हैं, वे गुरुलघु हैं। तत्थ पुण पढमबिइया, पया उ सव्वत्थ पडिसिद्धा॥ ४. मूर्त-अमूर्त द्रव्य : गुरुलघु-अगुरुलघु पर्यव जा तेयगं सरीरं, गुरुलहु दव्वाणि कायजोगो य।
इय पोग्गलकायम्मी, सव्वत्थोवा उ गुरुलहू दव्वा। मण-भासा अगुरुलहू, अरूविदव्वा य सव्वे वि॥
उभयपडिसेहिया पुण, अणंतकप्पा बहुवियप्पा॥ अहवा बायरबोंदी, कलेवरा गुरुलहू भवे सव्वे।
ते गुरुलहुपज्जाया, पण्णाछेदेण वोकसित्ताणं। सुहुमाणंतपदेसा, अगुरुलहू जाव परमाणू॥ जा बायरो जहण्णो, अणंतहाणीए हायंता॥ ववहारनयं पप्प उ, गुरुया लहुया य मीसगा चेव।
__ (बृभा ६७, ६८) लेढुग पदीव मारुय, एवं जीवाण कम्माई॥
पुद्गलास्तिकाय में गुरुलघु द्रव्य सबसे थोड़े हैं और __(बृभा २६८५-२६८८)
अगुरुलघु द्रव्य के अनन्त भेद हैं। गुरुलघु द्रव्यों में भी बहुत व्यवहारनय के अनुसार द्रव्य के चार प्रकार हैं-गुरु, विकल्प हैं। लघु, गुरुलघु, अगुरुलघु। निश्चयनय के अनुसार कोई भी द्रव्य द्रव्य के गुरुलघुपर्यायों से अगुरुलघुपर्यायों का एकान्ततः गुरु अथवा एकान्ततः लघु नहीं होता। अत: वस्तु की प्रज्ञाच्छेदन-बुद्धि विकल्पित पृथक्करण करने पर जघन्य परिभाषा यह होगी-जगत् में जो बादर वस्तु है, वह सब बादर स्कंध के गुरुलघु पर्याय सर्वस्तोक होते हैं-उत्कृष्ट गुरुलघु है और शेष सारा अगुरुलघु है।
बादर स्कंध की अपेक्षा अनंतगुणहानि से हीयमान होते हैं, निश्चयनय की अपेक्षा से औदारिक, वैक्रिय, आहारक।
अगुरुलघुपर्याय क्रमश: अनंतगुणवृद्धि से प्रवर्धमान होते हैं। और तैजस शरीर के पुद्गल द्रव्य तथा इन शरीरों से संबंधित
* बादर-सूक्ष्म स्कंध : अनंत वर्गणाएं द्र श्रीआको १ वर्गणा काय योग-ये सब गुरुलघु होते हैं। मन, भाषा, श्वासोच्छ्वास और कार्मण वर्गणा के प्रायोग्य द्रव्य तथा इनके अन्तरालवर्ती
केण हवेज्ज विरोहो, अगुरुलहूपज्जवाण उ अमुत्ते। द्रव्य अगुरुलघु होते हैं।
अच्चंतमसंजोगो, जहियं पुण तव्विवक्खस्स॥ धर्म, अधर्म, आकाश और जीव-ये अरूपी द्रव्य भी एवं तु अणंतेहिं, अगुरुलहुपज्जवेहिं संजुत्तं । अगुरुलघु होते हैं।
होड़ अमत्तं दव्वं, अरूविकायाण उ चउण्हं॥ ___ बादरनामकर्मोदयवर्ती जीवों के शरीर तथा बादर परिणत
(बृभा ६९, ७०) पृथ्वी, पहाड़, इन्द्रधनुष आदि सारे पदार्थ गुरुलघु हैं। ___ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और सूक्ष्मनामकर्मोदयवर्ती जीवों के शरीर तथा सूक्ष्मपरिणाम- जीवास्तिकाय-इन अमूर्त द्रव्यों में गुरुलघु पर्यायों का अत्यन्त परिणत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध यावत् परमाणु पुद्गल अगुरुलघु असंयोग है, किन्तु उनमें अगुरुलघु पर्यायों का कौन विनाश होते हैं।
कर सकता है? इनका प्रतिप्रदेश सदैव अनन्त अगुरुलघु __ व्यवहारनय की अपेक्षा से द्रव्य के तीन प्रकार हैं- पर्यायों वाला है। ऐसा होने पर चारों अरूपी अस्तिकायों का १. गुरु-ऊपर फेंकने पर भी जिसका स्वभाव नीचे जाने का अमूर्त द्रव्य अनन्त अगुरुलघु पर्यवों से संयुक्त होता है। होता है, जैसे-लेष्टु आदि।
५. जीवादिषट्क का अल्पबहुत्व २. लघु-ऊर्ध्वगति स्वभाव वाले पदार्थ, जैसे दीपकलिका। ""जीवादिछक्कए पुण, बहुयग्गं पज्जवा होंति॥ ३. गुरुलघु-तिर्यग् गति स्वभाव वाले पदार्थ, जैसे वायु। जीवा पोग्गलसमया, दव्वपएसा य पज्जवा चेव।
इसी प्रकार जीवों के कर्म तीन प्रकार के हैं-गुरु, लघु, थोवाणंताणंता, विसेसहिया दुवेणंता॥ अगुरुलघु। जो कर्म जीव को अधोगति में ले जाते हैं, वे गुरु,
(निभा ५५, ५६)
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