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आगम विषय कोश-२
२८१
तीर्थंकर
० गण और गणधर
अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स अट्ठारस गणा अट्ठारस गणहरा होत्था॥
(दशा ८ परि सू १३१) अर्हत् अरिष्टनेमि के अठारह गण, अठारह गणधर थे। ३. पुरुषादानीय पार्श्व के कल्याणक नक्षत्र
पासे अरहा पुरिसादाणीए पंचविसाहे होत्था, तं जहा-विसाहाहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते जाए पव्वइए"..."केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने विसाहाहिं परिनिव्वुए॥
(दशा ८ परि सू १०८) पुरुषादानीय (लोकमान्य) अर्हत् पार्श्व के पांच कल्याण विशाखा नक्षत्र में हुए-च्यवन, जन्म, प्रव्रज्या, कैवल्यप्राप्ति और परिनिर्वाण। ____."पासे अरहा पुरिसादाणीए जेसे हेमंताणं दोच्चे मासे..."पोसबहुलस्स दसमी-पक्खेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि""दारयं पयाया"
(दशा ८ परि सू १११) हेमन्त ऋतु का दूसरा महीना, पौष के कृष्ण पक्ष की दशमी बहपतिपर्ण नौ मास साडे सात दिन-रात व्यतीत होने पर मध्यरात्रि में अर्हत् पार्श्व का जन्म हुआ। ० अभिनिष्क्रमण
___ "पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स"हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे"""पोसबहुलस्स एक्कारसी-पक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि विसालाए सिवियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए"वाणारसिंनगरिं आसमपए उज्जाणे असोगवर- पायवस्स अहे"सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमयति सयमेव पंचमद्वियं लोयं करेइ अमेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमायाय तिहिं पुरिससएहिं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगारओ अणगारियं पव्वइए।
(दशा ८ परि सू ११३) पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व ने हेमन्त के द्वितीय मास, तृतीय पक्ष, पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन, पूर्वाह्न काल में, विशाला शिविका में बैठकर देव, मानव और असुरों की परिषद् के साथ अभिनिष्क्रमण किया। वाराणसी नामक नगरी
से निष्क्रमण कर आश्रमपद नामक उद्यान में अशोकवृक्ष के नीचे स्वयं आभूषण, मालाएं और अलंकार उतारकर स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया। तीन दिन का निर्जल उपवास, विशाखा नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग, एक देवदूष्य वस्त्र को धारण कर तीन सौ पुरुषों के साथ मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हुए। ० केवलज्ञान की उत्पत्ति
तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए"अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राइंदियाई विइक्कंताई चउरासीइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे-चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थीपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि धायइपायवस्स अहे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने।
(दशा ८ परि सू ११५) अनुत्तर संयम आदि से अपने आपको भावित करते हुए अर्हत् पार्श्व के तैयासी अहोरात्र व्यतीत हो गए। चौरासीवां दिन । ग्रीष्म ऋतु का प्रथम महीना, प्रथम पक्ष, चैत्र कृष्णा चतुर्थी, पूर्वाह्न का समय, धातकी वृक्ष के नीचे, दो दिन का निर्जल उपवास, विशाखा नक्षत्र के साथ चन्द का योग, शक्लध्यान की अन्तरिका में वर्तमान अर्हत पार्श्व को अनन्त प्रवर केवलज्ञान और दर्शन समुत्पन्न हुए। ० गण और गणधर
पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा
सुंभे य अजघोसे य, वसिटे बंभयारि य। सोमे सिरिहरे चेव, वीरभद्दे जसे वि य॥
(दशा ८ परि सू ११६) पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के आठ गण, आठ गणधर के १. शुंभ
५. सोम २. आर्यघोष
६. श्रीधर ३. वशिष्ठ
७. वीरभद्र ४. ब्रह्मचारी
८. यश
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