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आगम विषय कोश-२
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दीक्षा
दीक्षा-अगारधर्म से अनगारधर्म में प्रव्रजित होना, भवेत्। अभिसमागमो जातिस्मरणादिकः"आदिग्रहणात् महाव्रत ग्रहण करना।
श्रावकस्य गुणप्रत्ययप्रभवेणावधिज्ञानेन अन्यतीर्थिकस्य
वा विभंगज्ञानेन प्रव्रज्या-प्रतिपत्तिः सम्भवति। १. दीक्षा (प्रव्रज्या) के दो हेतु
(बृभा ११३३ ७) २. सर्वप्रथम मुनि दीक्षा का उपदेश
व्यक्ति दो हेतुओं से प्रव्रजित होता है३. दीक्षा के छह प्रस्थान ४. दीक्षाविधि क्रम
१. श्रुत्वा-तीर्थंकर, गणधर आदि से धर्मदेशना सुनकर। ___ * शैक्षभूमि : सामायिक की कालावधि द्र चारित्र
२. अभिसमेत्य-जातिस्मरण आदि रूप स्वसन्मति से स्वयं ५. प्रव्रज्या के पश्चात् उपस्थापना ।
संबुद्ध होकर। श्रावक गुणप्रत्यय से उत्पन्न अवधिज्ञान के ० उपस्थापनाकल्पिक : बड़ी दीक्षा विधि
द्वारा तथा अन्यतीर्थिक विभंगज्ञान के द्वारा तत्त्व को ० उपस्थापना की कालमर्यादा
जानकर/प्रतिबद्ध होकर दीक्षित हो सकता है। ० पहले उपस्थापना किसकी?
(प्रव्रज्या के दस हेतु हैं६. उपस्थापना के पश्चात् : दिशादान आदि
१. छन्दा-अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली। ७. चिरदीक्षित कौन?
२. रोषा-क्रोध से ली जाने वाली। __* आगमवाचना में संयमपर्याय की सीमा द्र श्रुतज्ञान
३. परिघुना-दरिद्रता से ली जाने वाली। ८.दीक्षा के अनर्ह कौन?
४. स्वप्ना-स्वप्न के निमित्त या स्वप्न में ली जाने वाली । ९. बाल के प्रकार एवं लक्षण
५. प्रतिश्रुता-पहले की हुई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली। ० न्यून अष्टवर्षीय बालक दीक्षायोग्य नहीं
६. स्मारणिका-जन्मान्तरों की स्मृति होने पर ली जाने वाली। दीक्षार्ह की न्यूनतम वय
७. रोगिणिका-रोग का निमित्त मिलने पर ली जाने वाली। १०. बाल-वृद्ध दीक्षा के अपवाद
८. अनादृता-अनादर होने पर ली जाने वाली। ११. दस दशाएं, दीक्षा-योग्य बाल-वृद्ध १२. नपुंसक के प्रव्राजन आदि का निषेध
९. देवसंज्ञप्ति-देव के द्वारा प्रतिबुद्ध होकर ली जाने वाली। ० नपुंसक को दीक्षा क्यों नहीं?
१०. वत्सानुबन्धिका-दीक्षित होते हुए पुत्र के निमित्त से ली * दीक्षा के अर्ह-अनर्ह : नपुंसक
जाने वाली।-स्था १०/१५) १३. दीक्षा के अनर्ह : जड्ड।
२. सर्वप्रथम मुनिदीक्षा का उपदेश ० भावस्तेन : गोविन्द आदि उदाहरण
जइधम्मं अकहेत्ता, अणु दुविधं सम्म मंसविरई वा। ० शासक का अपकारी
अणुवासए कहिंते, चउजमला कालगा चउरो॥ ०पंचविध मूढ
जीवा अब्भुटुिंता, अविहीकहणाइ रंजिया संता। ० जुंगित
अभिसंछूढा होती, संसारमहन्नवं तेणं॥ * सम्यक्त्व, दीक्षा के अयोग्य द्र सम्यक्त्व १४. गच्छनिर्गत मुनि के संवेगप्राप्ति के स्थान
एसेव य नूण कमो, वेरग्गगओ न रोयए तं चा.." ___* नई दीक्षा (मूल प्रायश्चित्त) के स्थान द्र प्रायश्चित्त
तित्थाणुसज्जणाए, आयहियाए परं समुद्धरति।
मग्गप्पभावणाए, जइधम्मकहा अओ पढमं॥ १. दीक्षा (प्रव्रज्या) के दो हेतु
(बृभा ११३९-११४२) सोच्चाऽभिसमेच्चा वा, पव्वज्जा अभिसमागमो तत्था कोई अनुपासक यदि धर्मश्रवण के लिए आया है, तो
'श्रुत्वा' तीर्थकर-गणधरादीनां धर्मदेशनां निशम्य उसके समक्ष धर्मकथन का क्रम यह है-सबसे पहले यतिधर्म 'अभिसमेत्य वा' सह सन्मत्यादिना स्वयमेवावबुध्य प्रव्रज्या का कथन करे। यदि वह यतिधर्म स्वीकार करने में असमर्थ
द्र वेद
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