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आगम विषय कोश--२
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दिग्बंध
भासरासी महग्गहे"महावीरस्स जम्मनक्खत्ताओ वीति- ४. सूक्ष्म जीवराशि की उत्पत्ति, अनेकों द्वारा अनशन-उस क्कंते भविस्सई तया णं"उदिए-उदिए पूयासक्कारे रात्रि में कुंथु नामक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हुई । जब वे जीव पवत्तिस्सति॥
स्थिर रहते. तब छद्मस्थ साध-साध्वियों की दष्टि का विषय ...कुंथू अणुंधरी नामं समुप्पन्ना, जा ठिया नहीं बनते। जब वे चल होते, तब साधु-साध्वियों की दृष्टि अचल-माणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो में आते। इस प्रकार के जीवों की उत्पत्ति देखकर अनेक चक्खुफासं हव्वमागच्छड़, जा अद्विया चलमाणा"चक्ख- साधु-साध्वियों ने अनशन स्वीकार कर लिया। फासंहव्वमागच्छइ, जंपासित्ता बहूहिं निग्गंथेहिं निग्गंथीहिं दशाश्रतस्कंध-छेदसूत्र वर्ग का एक ग्रंथ, जिसकी य भत्ताइं पत्चक्खायाई। (दशा ८ परि सू ८७-९२) दस दशाओं में भिक्षप्रतिमा, उपासकप्रतिमा, गणिसम्पदा १. गौतम को कैवल्य-प्राप्ति-जिस रात्रि में श्रमण भगवान् आदि का प्रतिपादन है।
द्र छेदसूत्र महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए, उसी रात्रि में उनके ज्येष्ठ
दिग्बंध-आचार्य-उपाध्याय और प्रवर्तिनी के पद पर अंतेवासी इन्द्रभूति गौतम अनगार का रागबन्धन विच्छिन्न हो । गया। उसे अनन्त, प्रवर केवलज्ञान और दर्शन उत्पन्न हुए।
नियुक्त करना। २. दीपावली पर्व-अमावस्या को नव मल्लवी और नव १.दिग्बंध लिच्छवि-काशी-कौशल के अठारह गणराजाओं ने प्रतिपूर्ण ० पूर्वदिग् पौषध किया। भाव उद्योत चला गया है-यह सोच उन्होंने । २. इत्वरिक-यावत्कथिक दिग्बंध द्रव्य-उद्योत करने का संकल्प किया।
___ * मार्गवर्ती उपसम्पदा में इत्वरदिग्बंध द्र उपसम्पदा ३. भस्मराशि महाग्रह-उस रात्रि में क्षुद्र स्वभाव वाला, दो
३. दिशा-अनुदिशा हजार वर्ष की स्थिति का भस्मराशि नाम का महाग्रह उनके
४. द्विविध-त्रिविध दिशा
* साधु द्विसंग्रहीत, साध्वी त्रिसंग्रहीत द्र आचार्य जन्मनक्षत्र पर संक्रान्त हुआ, तब से श्रमण निग्रंथ और निग्रंथियों
* दिशादान का उदितोदित रूप से पूजा-सत्कार नहीं रहा। उस महाग्रह
द्र दीक्षा के श्रमण भगवान महावीर के जन्मनक्षत्र से व्यतिक्रान्त होने
| ५. दिशापहार का प्रायश्चित्त पर पुनः श्रमण निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों का उदितोदित रूप में १. दिग्बंध पूजा-सत्कार होगा।
...."कुज्जा कमसो दिसाबंधो॥ (पैंतालीस आगमों में एक आगम है-वंकचूलिया। दिग्बन्धे आचार्यपदे उपाध्यायपदे वा स्थाप्यमाने।" उसमें उल्लेख है कि शिष्य अग्निदत्त ने जिनशासन के उदय
(व्यभा १३०३ वृ) अस्त के संदर्भ में जिज्ञासा की, तब श्रुतकेवली यशोभद्र ने
आचार्यपद अथवा उपाध्यायपद पर स्थापित करना कहवीरनिर्वाण से २९१ वर्षों तक शुद्ध प्ररूपणा रहेगी,
दिग्बंध कहलाता है। फिर राजा सम्प्रति धर्मक्षेत्र का विस्तार करेगा। तत्पश्चात ० पूर्वदिग् १६९९ वर्षों तक दुष्ट लोग हिंसाधर्म की प्ररूपणा करेंगे। __..निप्फण्णा तेसि बंधति दिसाओ...... जब भस्मगृह की १० वर्ष की स्थिति शेष रहेगी, तब वीर- राइणिया गीतत्था, अलद्धिया धारयति पुव्वदिसं।..... निर्वाण १९९० में संघ और सूत्र की जन्मराशि पर धूमकेतु ____..."सलक्खण, केवलमेगे दिसाबंधो॥ ग्रह लगेगा। उसकी ३३३ वर्षों की स्थिति पूर्ण होने पर संघ "अलब्धिकाः ते पूर्वदिशं पूर्वाचार्यप्रदत्तं दिशऔर सूत्रमार्ग का उद्योत होगा।)
मनुरत्नाधिकत्वलक्षणं धारयन्ति ।... विशिष्टाचार्य
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