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तीर्थंकर
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पक्खे – चेतसुद्धे, तस्स णं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खेणं''''महावीरं अरोया अरोयं पसूया ।
.....तणं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च, गंधवासं च, चुण्णवासं च, हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु ॥ ( आचूला १५/८, १० ) बहुप्रतिपूर्ण नौ माह और साढे सात अहोरात्र बीतने पर, ग्रीष्म का पहला महीना, दूसरा पक्ष - चैत्रमास का शुक्लपक्ष, त्रयोदशी तिथि को त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्वस्थ अवस्था में स्वस्थ महावीर को जन्म दिया ।
उस रात्रि को बहुत से देव-देवियों ने अमृत, गंध, चूर्ण, हिरण्य और रत्नों की विपुल वर्षा की।
० नामकरण
....... तस्स णं इमे तिणिण णामधेज्जा.... १. अम्मापिउसंतिए " वद्धमाणे " २. सह सम्मुइए "समणे" ३. "भीमं भयभेरवं अचेलयं परिसहं सहइ" त्ति कट्टु देवेहिं से णामं कयं " समणे भगवं महावीरे ॥ " (आचूला १५/१६) वे 'तीन नामों से संबोधित किए जाते थे, जैसेइन १. उनका माता-पिता के द्वारा प्रदत्त नाम वर्धमान ।
२. उन्हें सहज ज्ञान प्राप्त था, इसलिए समण कहलाए । ३. भीम, अति भयंकर अचेल परीषह को सहते हैं - यह जानकर देवों ने उनका नाम रखा - श्रमण भगवान महावीर । ० महावीर का परिवार
.....महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिणिण णामधेज्जा" सिद्धत्थे ति वा, सेज्जंसे ति वा, जसंसे ति वा ॥''''अम्मा''''' तिण्णि णामधेज्जा' तिसला ति वा, विदेहदिण्णा ति वा, पियकारिणी ति वा ॥..... पित्तियए सुपाजे भाया दिवद्धणे. जेट्ठा भइणी सुदंसणा" महावीरस्स भज्जा जसोया कोडिण्णागोत्तेणं ॥ धूया ..... अणोज्जाति वा, पियदंसणा ति वा ॥ णत्तुई कोसियागोत्ते...सेसवती ति वा, जसवती ति वा ॥
(आचूला १५/१७-२४)
महावीर के पिता काश्यपगोत्रीय थे। उनके तीन नाम थे - १. सिद्धार्थ, २. श्रेयांस, ३. यशस्वी । मां के तीन नाम थे - १. त्रिशला, २ . विदेहदत्ता, ३ . प्रियकारिणी ।
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आगम विषय कोश - २
चाचा सुपार्श्व, ज्येष्ठ भ्राता नंदीवर्धन, ज्येष्ठा भगिनी सुदर्शना, महावीर की पत्नी यशोदा कौडिन्यगोत्रीय थी । पुत्री के दो नाम थे - अनवद्या, प्रियदर्शना । दौहित्री कौशिकगोत्रीय थी। उसके दो नाम थे - शेषवती, यशस्वती । ८. महावीर का बाल्यकाल
''महावीरे पंचधातिपरिवुडे, (तं जहा - खीरधाईए, मज्जणधाईए, मंडावणधाईए, खेल्लावणधाईए, अंकधाईए ।) ..... (आचूला १५/१४)
महावीर पांच धात्रियों से परिवृत थे, (जैसे- क्षीरधात्री, मज्जनधात्री, मण्डनधात्री, क्रीड़नधात्री और अंकधात्री ) । o विवाह
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विणियत्तबाल-भावे अप्पुस्सुयाई उरालाई माणुसगाई पंचलक्खणाई कामभोगाई सद्द-फरिस - रस- रूवगंधा परियारेमाणे, एवं च णं विहरइ ॥ (आचूला १५/१५)
महावीर बालभाव से विनिवृत्त हुए, मनुष्य संबंधी पांच प्रकार के - शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध-उदार कामभोगों का अनुत्सुकता (अनासक्ति) से भोग करते हुए रहने लगे। ९. माता-पिता कालधर्म को प्राप्त
........महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासा यावि होत्था । ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगरियागं पालइत्ता ...कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तओ णं आखणं चत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति ॥ (आचूला १५/२५) महावीर के माता-पिता भगवान पार्श्व की परम्परा के श्रमणोपासक थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक धर्म का पालन किया, अंतिम समय में कुश के संस्तारक पर आरूढ हो भक्तप्रत्याख्यान अनशन किया, आहार का प्रत्याख्यान कर अपश्चिम मारणांतिक शरीर-संलेखना से शरीर को शोषित कर मृत्युकाल प्राप्त होने पर मृत्यु को प्राप्त कर उस शरीर को छोड़कर अच्युत कल्प में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहां से
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