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तीर्थंकर
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आगम विषय कोश-२
समवसरण में देवों के उत्पतन-निपतन (आवाजाही) ग्यारह ही गणधर द्वादशांग के ज्ञाता थे, चौदह पूर्वो को देखकर लोग आश्चर्य से अभिभूत हो जाते हैं। श्रोता एक के वेत्ता थे और समग्र गणिपिटक के धारक थे। ये सभी साथ अनेक प्रश्न उपस्थित करते हैं और अर्हत् एक साथ राजगृह नगर में एक मासिक निर्जल अनशन कर कालधर्म अनेक संशयों को छिन्न करने वाला समाधान देते हैं। को प्राप्त हुए यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। भगवान महावीर १७. महावीर के गण और गणधर
के निर्वाण के पश्चात् स्थविर इन्द्रभूति और स्थविर आर्य ___"समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस
सुधर्मा परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। गणहरा होत्था। जेटे इंदभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं पंच * गणधरों का जीवनपरिचय द्र श्रीआको १ गणधर समणसयाई वाएइ। मज्झिमे अग्गिभूई अणगारे गोयमे १८. लोहार्य-गौतम द्वारा वीर-भक्ति गोत्तेणं"कणीयसे वाउभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं"थेरे जइ वि य लोहसमाणो, गेण्हति खीणंतराइणो उंछं। अज्जवियत्ते भारद्दाए गोत्तेणं"थेरे अज्जसुहम्मे अग्गि- तह वि य गोतमसामी, पारणए गिण्हती गुरुणो॥ वेसायणे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ। थेरे मंडियपुत्ते धन्नो सो लोहज्जो, खंतिखमोवरलोहसरिस वन्नो। वासिटे गोत्तेणं "थेरे मोरियपुत्ते कासवे गोत्तेणं अद्धटाई जस्स जिणो पत्तातो, इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे॥ समणसयाई"थेरे अकंपिए गोयमे गोत्तेणं, थेरे अयलभाया
(व्यभा २६७१ वृ) हारियायणे गोत्तेणं-ते दुन्नि विथेरा"।थेरे मेयजे, थेरे य
स्वर्णाभ शरीर वाले लोहार्य श्रमण (आर्य सुधर्मा) पभासे-एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोत्तेणं तिन्नि-तिन्नि समणसयाज्ञवाएंति।
क्षीणांतराय भगवान महावीर के लिए एषणीय आहार लाते
थे। भगवान महावीर उनके पात्र से अपने हाथ में लेकर ___"एक्कारस वि गणहरा दुवालसंगिणो चोद्दसपुग्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरेमासिएणं भत्तेणं
आहार करते थे। लोहार्य वीर-वैयावृत्त्य में नियुक्त थे, गौतम अपाणएणं कालगया जाव सव्वदुक्खप्पहीणा।थेरे इंदभूई,
नियुक्त नहीं थे फिर भी वे अपने पारणक (उपवास आदि थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धिं गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परि
तप की सम्पन्नता) के दिन भगवान के लिए आहार लाते थे।
"धन्य है वह लोहार्य श्रमण, परम सहिष्णु कनक-गौरवर्ण। निव्वुया। (दशा ८ रि सू १८२-१८४)
जिसके पात्र में लाया हुआ आहार भगवान खाते थे अपने हाथों से॥" श्रमण भगवान महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर थे। ज्येष्ठ इन्द्रभूति नामक गौतमगोत्रीय अनगार पांच
० तीर्थंकर भिक्षाटन नहीं करते सौ श्रमणों को वाचना देते थे। मध्यम अग्निभूति नामक
देविंदचक्कवट्टी, मंडलिया ईसरा तलवरा य। गौतमगोत्रीय अनगार, कनिष्ठ वायुभूति गौतम-गोत्रीय अनगार,
अभिगच्छंति जिणिंदे, तो गोयरियं न हिंडंति॥ शिष्य स्थविर आर्य व्यक्त भारद्वाजगोत्रीय, स्थविर आर्य सुधर्मा
संखादीया कोडी, सुराण णिच्चं जिणे उवासंति। अग्निवैश्यायनगोत्रीय-इनमें से प्रत्येक गणधर पांच सौ-पांच सौ संसयवागरणाणि य, मणसा वयसा च पुच्छंति॥ श्रमणों को वाचना देते थे। स्थविर मण्डितपुत्र वाशिष्ठगोत्रीय
(व्यभा २५६९, २५७०) तीन सौ पचास श्रमणों को तथा स्थविर मौर्यपुत्र काश्यपगोत्रीय तीर्थंकर को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर उनके उपपात तीन सौ पचास श्रमणों को वाचना देते थे।
में देवेन्द्र, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, माण्डलिक राजा, स्थविर अकंपित गौतमगोत्रीय और स्थविर अचलभ्राता युवराज, कोतवाल आदि व्यक्ति आते रहते हैं। अतः कैवल्यहरितायनगोत्रीय-ये दोनों स्थविर तीन सौ-तीन सौ श्रमणों को प्राप्ति के पश्चात् वे भिक्षार्थ नहीं घूमते।। तथा स्थविर मेतार्य और स्थविर प्रभास कौडिन्यगोत्रीय-ये दोनों असंख्य सुरकोटियां (देव) सदा अर्हत् की उपासना स्थविर तीन सौ-तीन सौ श्रमणों को वाचना देते थे।
करती हैं। उनसे देव, मनुष्य आदि प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से
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