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आगम विषय कोश-२
आज्ञाव्यवहार
उपाध्याय या जिसके अग्रगामित्व में विहरण कर रहा है, एगमरणं तु लोए, आणऽइआरुत्तरे अणंताई। उसको पूछे बिना नहीं जा सकता।
अवराहरक्खणट्ठा, तेणाणा उत्तरे बलिया॥ इसी प्रकार वह विकृति का आहार और उदार तपःकर्म पाडलिपुत्ते नयरे चंदगुत्तो राया।सो य मोरपोसगका स्वीकार भी गुरु को बिना पूछे नहीं कर सकता। पुत्तोत्ति जे खत्तिया अभिजाणंति ते तस्स आणं परिभवंति। ६. बिना आज्ञा भिक्षाटन से प्रायश्चित्त
चाणक्कस्स चिंता जाया-आणाहीणो केरिसो राया? बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं तम्हा जहा एयस्स आणा तिक्खा भवइ तहा करेमि। चारए। नो ण्हं कप्पड़ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभि
___ (बृभा २४८९, २४९० वृ) निचारियं चारएजंतत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त राजा था। वह मयूरपोषक का चरंति से संतरा छए वा परिहारे वा॥
पुत्र है'-यह जानकर क्षत्रिय लोग उसकी आज्ञा का सम्मान बहिर्वजिकादिषु"समुदानं लब्धं गमनं अभिनि- नहीं करते थे। चाणक्य ने सोचा-आज्ञाहीन राजा कैसा? अत चारिका "अन्तरा नाम तस्मात् स्थानादप्रतिक्रमणं तस्मात् वह काम करूं, जिससे राजाज्ञा की अखण्ड आराधना हो। छेदः परिहारो वा।
(व्य ४/१९७) एक बार चाणक्य कापटिक के रूप में घूम रहा था। एक गांव बहुत साधर्मिक एक साथ अभिनिचारिका-वसति क्षेत्र में उसे भिक्षा नहीं मिली। उस गांव में आम और बांस प्रचुर से बाहर जिका आदि में भिक्षाटन करना चाहें तो वे स्थविर मात्रा में थे। आज्ञा को प्रतिष्ठित करने के लिए चाणक्य ने उस (आचार्य) को पछे बिना एक साथ अभिनिचारिका नहीं कर गांव में यह राजाज्ञा प्रेषित की-आमों का छेदन कर शीघ्र सकते। यदि वे स्थविर की आज्ञा प्राप्त किये बिना अभिनिचारिका
बांस के झरमट के चारों ओर उनकी बाड बनाई जाये। करते हैं तो उन्हें उस स्थान से निवृत्त नहीं होने पर सीमा का
'यह दुर्लिखित है'-ऐसा सोचकर ग्रामीणों ने बांसों अतिक्रमण करने के कारण स्वान्तर-कृत-स्वच्छंदता से बार
को काटकर आम्रवृक्षों के चारों ओर बाड बना दी। चाणक्य ने बार गमन करने पर छेद अथवा परिहार (मासलघु आदि तप)
यह खोज करवायी कि गांव वालों ने राजाज्ञा का पालन किया
या नहीं। जब उसे ज्ञात हुआ कि ग्रामीणों ने राजाज्ञा के प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
विपरीत कार्य किया है, तब वह उस गांव में आया और गांव ७. आज्ञा भंग से अनवस्था दोष
वालों को उपालंभ देते हुए बोला-तुम लोगों ने यह क्या एगेण कयमकजं, करेइ तप्पच्चया पुणो अन्नो। किया? बांस नगररोध आदि में काम आते हैं। तुमने उनको सायाबहुल परंपर, वोच्छेदो संजम-तवाणं॥ क्यों काटा? राजाज्ञा का पत्र दिखाते हुए आगे कहा-राजाज्ञा
__ (बृभा ९२८) कुछ और है और तुम लोगों ने कुछ और ही कर डाला। तुम किसी एक श्रुतधर साधु ने प्रमादस्थान का सेवन किया। अपराधी हो, दंडनीय हो। यह कहते हुए उसने बालवृद्ध यह श्रतधर भी ऐसा करता है, तब निश्चित ही इसमें दोष नहीं सहित उस गांव को जला डाला। है-ऐसा सोचकर अन्य साधु भी वैसा करता है। फिर दूसरा
लौकिक आज्ञा का अतिक्रमण करने पर एक बार मरण और तीसरा भी उसका अनुकरण करता है। इस प्रकार सातबहुल
होता है। लोकोत्तर आज्ञा का अतिक्रमण करने पर अनंत जन्म(सुविधावादी) व्यक्तियों की प्रमादस्थानसेवन की परम्परा से
मरण करने पड़ते हैं। इसलिए अपराधपदों से रक्षा के लिए संयम और तप की परम्परा का विच्छेद हो जाता है।
लोकोत्तर क्षेत्र में आज्ञा बलवती है। ८.आज्ञा-भंग का परिणाम : चन्द्रगुप्त-चाणक्य दष्टांत * सुविनीत शिष्य आज्ञाकारी द्र श्रीआको १ शिष्य
भत्तमदाणमडंते, आणट्ठवणंब छेत्तु वंसवती। आज्ञाव्यवहार-देशान्तर में स्थित गीतार्थ से विधिगविसण पत्त दरिसए, पुरिसवइ सबालडहणं च॥ निषेध तथा प्रायश्चित्त का निर्णय प्राप्त करना। द्र व्यवहार
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