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उपधि
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आगम विषय कोश--२
(बुभा४
गणधरस्य कथयति, स चागत्य स्वयं गृह्णाति। एतन्नि- यह विधिपरिभोग है। ऊनी वस्त्र शीघ्र मलिन हो जाता है, श्राग्रहणमुच्यते।
अत: भीतर में धारण करने से यूका, पनक आदि संसक्त हो श्रावक वस्त्र देना चाहे है तो प्रवर्तिनी से निवेदन करे।
सकते हैं। विधिपूर्वक परिभोग से वे स्वतः रक्षित हो जाते हैं। प्रवर्तिनी गणधर को निवेदन करे। फिर गणधर स्वयं आकर
सूती वस्त्र बाहर पहनने से विभूषा का भाव पैदा होता है। वस्त्र की परीक्षा करे। यदि वस्त्र शुद्ध है तो उसे ग्रहण करे।
मलिन ऊनी वस्त्र में दुर्गंध भी आने लगती है। विधिपरिभोग वहां प्रवर्तिनी नहीं है, तब उस वस्त्र को वर्ण, रूप और चिह्न
से वह भी परिहत हो जाती है। नीचे सूती वस्त्र और ऊपर से उपलक्षित कर साध्वी गणधर से कहे। गणधर स्वयं
ऊनी वस्त्र से शीत से बचाव भी होता है। इसलिए क्षौमिक आकर वस्त्र ग्रहण करता है, इसे निश्रा ग्रहण कहते हैं।
__ वस्त्र को भीतर में धारण करना चाहिए। १७. वस्त्र ग्रहण किससे?
१९. वस्त्र सीवन की अविधि-विधि कावलिए य भिक्खू, सुइवादी कुव्विए अवेसित्थी।
जे भिक्खू अविहीए वत्थं सिव्वति, सिव्वंतं वा वाणियग तरुण संसट्ठ, मेहुणे भोइए चेव॥
सातिजति॥ सा
(नि १/४९) माता पिया य भगिणी, भाउगसंबंधिए य तह सन्नी।
गग्गरग दंडिवलित्तग-जालेगसरा-दुखील-एक्का य। भावितकुलेसु गहणं, असई पडिलोम जयणाए।
गोमुत्तिगा य अविधी, विहि झसकंटा विसरिगा।
गग्गरसिव्वणी जहा संजतीणं, डंडिसिव्वणी-जहा (बृभा २८२२, २८२३)
गारस्थाणं।जालगसिव्वणी-जहावरक्खाइसु एगसरा, जहा स्थविरा साध्वी तेरह स्थानों से वस्त्र ग्रहण न करे
संजतीण पयालणीकसासिव्वणी णिब्भंगे वा दिज्जति। १. कापालिक ८. पूर्व परिचित उद्भ्रामक
दक्खीला संधिज्जते उभओखीला देति। एगखीला एगओ २. भिक्षु ९. मातुल-पुत्र
देति।गोमुत्ता संधिज्जते इओइओ एक्कसिं वत्थं विंधइ। ३. शौचवादी १०. भर्ता
एसा अविधी। विधि झसकंटा सा संधणे भवति, एक्कतो ४. कूर्चन्धर ११. माता-पिता,
व उक्कुइते संभवति।विसरिया सरडो भण्णति। ५. वेश्या स्त्री भगिनी-भ्राता
(निभा ७८२ चू) ६. वणिक् १२. संबंधीजन
अविधि से वस्त्र सीने वाला भिक्षु मासगुरु प्रायश्चित्त ७. तरुण १३. श्रावक
का भागी होता है। (अविधि-सीवन सूत्रार्थ का परिमंथु है। इन्हें छोड़कर भावितकुलों से वस्त्र ग्रहण करे। वहां
ठीक प्रतिलेखन न होने से संयम की विराधना होती है।) वस्त्र प्राप्त न होने पर प्रतिषिद्ध स्थानों से पश्चानुपूर्वी क्रम से
अविधि सीवन के सात प्रकार हैंयतनापूर्वक वस्त्र ग्रहण करे।
० गग्गर सीवन-साध्वी की तरह सीना। १८. वस्त्र-उपयोग विधि
० दंडी सीवन-गृहस्थ की भांति सीना। "कप्पासिगा य दोण्णि उ, उण्णिय एक्को य परिभोगो॥
० वलित्तग-बल (बंट) देते हुए सीना। छप्पइय-पणगरक्खा, भूसा उज्झायणा य परिहरिया।
० जालक एकसरा-जालक की तरह एक समान सीना। सीतत्ताणं च कतं, खोम्मिय अभितरे तेण॥
० दुक्कील-सांधते समय दोनों ओर से खीलना। सौत्रिकं कल्पमन्तः प्रावृणुयात्, और्णिकं तु बहिः। ० एककील-एक ओर से खीलना। एष विधिपरिभोग उच्यते। (बृभा ३६६४, ३६६७ वृ) . गोमूत्रिका-गोमूत्रिका की तरह बाएं से दाएं, दाएं से बाएं
____ मुनि दो सूती और एक ऊनी वस्त्र ग्रहण करे। वह बल देते हुए सीना। सूती वस्त्र भीतर में और उसके ऊपर ऊनी वस्त्र धारण करे- विधिसीवन-इसके दो प्रकार हैं
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