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उपधि
• भोजन मंडली और स्वाध्याय मंडली की रक्षा के लिए। • स्त्रियों के अवलोकन से बचने के लिए।
• स्वाध्याय भूमि में मल-मूत्र की गंध आ रही हो अथवा शोणित आदि दिखाई दे रहे हों तो निर्बाध स्वाध्याय करने के लिए ।
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मक्खी, टिड्डी आदि प्राणियों की हिंसा से बचने के लिए। • ग्लान मुनि के मल-मूत्र विसर्जन की सुविधा के लिए। उसे औषध प्रच्छन्न रूप से देने के लिए।
• ग्लान को शाकिनी आदि के उपद्रव से बचाने के लिए। • ग्लान के निश्चित खुले बदन सो सकने के लिए। ० मार्ग में प्रच्छन्न स्थान के अभाव में आहार, प्रतिलेखना आदि कर सकने के लिए।
• जहां श्वापद और चोरों का भय हो, वहां कटकमयी और दण्डकमयी चिलिमिली से द्वार को बंद किया जाता है। • जब तक मृतक का परिष्ठापन नहीं किया जाता, तब तक उसे चिलिमिलिका से आच्छादित कर रखने के लिए। दण्डकमी चिलिमिली से मृतक को वहन किया जाता है।
• वर्षा के समय जिस दिशा से हवा से प्रेरित होकर जलकण आ रहे हों, उस दिशा में कटक - चिलिमिलिका का प्रयोग करना चाहिए। वर्षा के जल से भीगी उपधि को रज्जुमयी चिलिमिलिका में फैलाकर सुखाया जा सकता है। मूल्यवान् उपधि को उसके भीतर तथा अल्पमूल्य वाली उपधि को उसके बाहर फैलाना चाहिए।
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२३. वस्त्र - अपहरणकाल में उपेक्षा भाव
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्माणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया गच्छेज्जा । तेणं आमोसगा एवं वदेज्जा - आउसंतो! समणा! आहरेयं वत्थं, देहि, निक्खिवाहि । तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय
दिय जाएजा णो अंजलिं कट्टु जाएज्जा, णो कलुणपडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा ।
आमोगा सयं करणिज्जं ति कट्टु अक्को -संति वा, बंधंति वा, संभंति वा, उद्दवंति वा, वत्थं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं
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आगम विषय कोश - २
कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया ॥ (आचूला ५/५०) ग्रामानुग्राम परिव्रजन करते हुए भिक्षु अथवा भिक्षुणी मार्ग में चोर एकत्रित होकर जा रहे हों। वे चोर यह कहेंआयुष्मन् ! श्रमण ! इस वस्त्र को लाओ, दो, रख दो । भिक्षु उन्हें वस्त्र न दे, न नीचे रखे। (यदि वे छीन लें तो ) न वन्दना कर याचना करे, न बद्धाञ्जलि हो याचना करे, न दीनतापूर्वक याचना करे, धार्मिक वृत्ति से याचना करे अथवा मौनभाव से उपेक्षा करे। वे चोर, वस्त्र को अपना बनाना है- यह सोचकर मुनि पर आक्रोश करते हैं, उसे बांधते हैं, अवरुद्ध करते हैं, उपत करते हैं, वस्त्र को छीनते हैं, अपहरण करते हैं अथवा परिभव करते हैं। साधु इस बात को गांव में न फैलाए, राजा कोन कहे, न गृहस्थ के पास जाकर कहे ।
• अचेल सचेल की अवमानना न करे
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जो वि दुवत्थ तिवत्थो, एगेण अचेलतो व संथरती ते खिसंति परं सव्वेण वि तिणिण घेतव्वा ॥ हु (निभा ५८०७) स्थविरकल्पी अपनी अपेक्षा के अनुसार एक, दो या तीन वस्त्र ग्रहण - धारण कर सकता है। जिनकल्पी यदि अचेल रहता है, तो वह अचेल रहे किंतु विशिष्ट अभिग्रहधारी अधिक वस्त्र रखने वालों की अवहेलना न करे क्योंकि सबके लिए तीन कल्प ग्राह्य हैं। (जोऽवि दुवत्थतिवत्थो, एगेण अचेलगो व संथरइ । हु ते हीलंति परं सव्वेऽपि य ते जिणाणाए ॥ कोई मुनि दो वस्त्र रखता है, कोई तीन वस्त्र, कोई एक वस्त्र और कोई निर्वस्त्र रहता है। वे एक-दूसरे की अवहेलना न करें क्योंकि वे सब तीर्थंकर की आज्ञा में हैं।
- आ ६/५६ का भाष्य)
२४. वस्त्र - पात्र - एषणा हेतु क्षेत्रगमन-सीमा सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए वत्थ-पडियाए...पाय- -पडियाए णो अभिसंधारेज्जा (आचूला ५ / ४, ६ / ३) भिक्षु अथवा भिक्षुणी वस्त्र और पात्र ( प्राप्ति) की
गमणाए ॥
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