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आगम विषय कोश - २
तिथि
१०.
११.
१२.
१३.
१४.
१५.
दिवसकरण
वणिज
बव
कौलव
कृष्ण पक्ष
गर
विष्टि
चतुष्पद
रात्रिकरण
विष्टि
बालव
स्त्रीविलोकन
वणिज
शकुनि
नाग
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७. अनेकविध गणना
जा
कोडी ॥
.....गणणे गादि ...... गणियं, तस्स ठाणा अणेगविहा, जहा एक दहं सतं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दहशतसहस्साइं कोडी । उवरिं पि जहासंभवं भाणियव्वं ॥ (निभा ६३०० चू)
गणना - गणित के अनेकविध स्थान हैं, जैसे-इकाई, दस, सौ, हजार, दसहजार, लाख, दस लाख, करोड़ - इससे आगे भी यथासंभव वक्तव्य हैं
शीर्षप्रहेलिका तक गणना प्रवृत्त होती है, उससे आगे नहीं । शीर्षप्रहेलिका उत्कृष्ट गणनापरिमाण है, अत: गणित का विषय इतना ही है।
असंख्येय के तीन भेद हैं- युक्त असंख्येय, परीत असंख्येय और असंख्येय असंख्येय ।
१८५
• शीर्षप्रहेलिका ......
....... |
.......सीसपहेलिया ततो परं गणणा ण पयट्टति उक्कोसं गणणग्गं, जा सीसपहेलिया ठिता गणिए । जुत्तपरित्ताणंतं, उक्कोसं तं पि नायव्वं ॥ (निभा ५४ की चू)
अनंत के तीन भेद हैं- युक्त अनंत, परीत अनंत और अनंत अनंत । - द्र श्रीआको १ संख्या
तिथि
१०
११
१२
१३
१४
१५
( काल औपचारिक द्रव्य है । वह जीव और अजीव दोनों का पर्याय है । समय, आवलिका, आन-प्राण, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, सौ वर्ष, हजार वर्ष, लाख वर्ष, करोड़ वर्ष, पूर्वांग, पूर्वशीर्ष - प्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम,
दिवसकरण
स्त्रीविलोकन
वणिज
बव
कौलव
शुक्ल पक्ष
गर
विष्टि
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कुत्रिकापण
रात्रिकरण
गर
विष्टि
बालव
स्त्रीविलोकन
वणिज
बव
- जंबू ७/१२५)
अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी- ये सभी जीव और अजीव दोनों हैं। -स्था २/३८७-३८९
यजुर्वेद १७/२ में १ पर १२ शून्य रखकर दस पूर्व तक की संख्या का उल्लेख है। वहां शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, अर्बुद, न्यर्बुद, समुद्र, अन्त, परार्द्ध तक का उल्लेख है ।
गणितशास्त्र में महाशंख तक की संख्या का व्यवहार होता है। वे २० अंक इस प्रकार हैं- इकाई, दस, शत, सहस्र दससहस्र, लक्ष, दसलक्ष, करोड़, दस करोड़, अरब, दस अरब, खरब, दस खरब, नील, दस नील, पद्म, दस पद्म, शंख, दस शंख, महाशंख-स्था २/३८९ का टि)
१. कुत्रिकापण का तात्पर्यार्थ २. कुत्रिकापण की उत्पत्ति
* शीर्षप्रहेलिका का प्रयोजन....... द्र श्रीआको १ काल कालप्रतिलेखना – आगमोक्त विधि के अनुसार स्वाध्याय आदि के काल का ग्रहण- निर्धारण और प्रज्ञापन करना । कालज्ञान के प्राचीन साधनों में 'दिक्- प्रतिलेखन' और 'नक्षत्रावलोकन' प्रमुख थे। मुनि स्वाध्याय से पहले काल की प्रतिलेखना करते थे। नक्षत्रविद्या में कुशल मुनि इस कार्य के लिए नियुक्त होते थे ।
द्र स्वाध्याय
कुत्रिकापण - वह विशिष्ट दुकान, जहां तीन लोक में प्राप्य सभी वस्तुएं मिलती हैं।
३. त्रिविध मूल्यनिर्धारण: शालिभद्र की उपधि ४. उज्जयिनी में कुत्रिकापण : व्यन्तर-विक्रय
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