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आगम विषय कोश-२
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छेदसूत्र
२८. कल्प-व्यवहार की अर्हता
पर्यायवाची शब्द माने गये हैं। इनके आधार पर इन्हें व्यवहार २९. कल्प, प्रकल्प आदि के प्रकृत
सूत्र, आलोचना सूत्र, शोधि सूत्र और प्रायश्चित्त सूत्र कहा जा ३०. व्यवहार के अर्थाधिकार
सकता है। ३१. भद्रबाहु-प्रदत्त व्यवहार : द्वादशांग का नवनीत
छेदसूत्रों के लिए छेद नाम का चुनाव क्यों किया १. छेदसूत्र-नि!हण का प्रयोजन
गया, इसके समाधान के लिए कुछ अनुमान प्रस्तुत किए जा ............"निज्जूढाओ अणुग्गहठ्ठाए।........."
सकते हैंओसप्पिणि समणाणं परिहायंताण आयुगबलेसु
० सामायिक चारित्र अल्पकालीन होता है। जीवनपर्यन्त होने होहिंतुवग्गहकरा पुव्वगतम्मि पहीणम्मिओसप्पिणीए अणंतेहिं वाला चारित्र केवल छेदोपस्थापनीय है। प्रायश्चित्त का समूचा वण्णादिपज्जवेहिं परिहायमाणीए समणाणं ओग्गहधारणा प्रकरण इसी चारित्र से संबंधित है। अतः यह अनुमान किया परिहायंति बलधितिविरिउच्छाहसत्तसंघयणं च। सरीरबल- जा सकता है कि इस चारित्र के आधार पर प्रायश्चित्त सूत्रों विरियस्स अभावा पढिउंसद्धानस्थि. संघयणाभावा उच्छाहो को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई। न भवति, अतो तेण भगवता पराणकंपएण'मा वोच्छि- ० पदविभाग और छेद दोनों समानार्थक हैं। इससे यह अनुमान ज्जिस्संति एते सत्तत्थपदा अतो अणग्गहत्थंण आहरुवधि- किया जा सकता है कि छेदशब्द पदविभाग सामाचारी के सेन्जादिकित्तिसद्दनिमित्तं वा निज्जूढा। (दशानि ६ चू)
अर्थ में प्रयुक्त किया गया।
० छेदसूत्रों का पौर्वापर्य का संबंध नहीं है। सूत्रों की स्वतंत्र अवसर्पिणी काल में श्रमणों की आयु और शक्ति
स्थिति है। उनकी व्याख्या विभागदृष्टि या छेददृष्टि से की क्षीण होती जाएगी, तब संयम में उपकारक पूर्वो का ज्ञान भी
जाती है, इसलिए पदविभाग सामाचारी के सूत्रों को छेदसूत्रों क्षीण हो जाएगा। इस काल में शरीर के वर्ण आदि पर्यायों की
की संज्ञा दी गई है। अनंतगण हानि होने से श्रमणों की अवग्रहण-धारणा शक्ति
० दशाश्रुतस्कंध, निशीथ, व्यवहार और कल्प-ये चारों नौवें भी क्षीण होगी। बल, धृति, वीर्य, उत्साह, सत्त्व और संहनन
पूर्व से उद्धत हैं उससे छिन्न-पृथक किये गये हैं। इसी इन सबकी हानि होगी। शारीरिक बल-वीर्य के अभाव में स्थिति को ध्यान में रखकर इस आगम वर्ग को छेदसत्र की अध्ययन की इच्छा समाप्त हो जाती है। संहनन दृढ़ न हो तो संज्ञा दी गई। उत्साह क्षीण हो जाता है।
छेदपिण्ड ग्रंथ में प्रायश्चित्त के आठ पर्यायवाची सूत्रार्थपदों की विच्छित्ति न हो जाए-इस उद्देश्य से
नाम हैं-१. प्रायश्चित्त २. छेद ३. मलहरण ४. पापनाशन परानुकंपी भगवान् भद्रबाहु ने शिष्यों पर अनुग्रह कर छेदसूत्रों ५. शोधि ६. पुण्य ७. पवित्र और ८. पावन । छेदशास्त्र में भी का नि!हण किया। आहार, उपधि और शय्या की उपलब्धि प्रायश्चित्त और छेद पर्यायवाची बतलाए गए हैं। इन दोनों के लिए अथवा कीर्ति-यश के लिए नि!हण नहीं किया। उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि 'छेद' प्रायश्चित्त का ही एक नाम
(छेदसूत्र : एक विमर्श-सबसे पहले छेदसूत्र का है। छेदसूत्र अर्थात् प्रायश्चित्त सूत्र। प्रयोग आवश्यक-नियुक्ति में मिलता है । फिर विशेषावश्यक प्रायश्चित्त सूत्रों की रचना भद्रबाहु ने की थी। नन्दी भाष्य, निशीथ भाष्य आदि ग्रंथों में यह प्रयुक्त होता रहा है। की रचना तक प्रायश्चित्त सूत्र अंगबाह्य आगम-वर्ग के अन्तर्गत छेदसूत्र का वर्ग स्थापित क्यों किया गया अथवा निशीथ रहे। नियुक्ति रचना के समय में उन्हें छेदसूत्र का स्वतंत्र आदि प्रायश्चित्त सूत्रों का छेदसूत्र' नाम क्यों रखा गया-इस स्थान प्राप्त हो गया था।.... प्रश्न का समाधान स्पष्ट भाषा में प्राप्त नहीं है। वर्तमान में दशाश्रुतस्कंध वर्तमान आकार में प्रायश्चित्त सूत्र नहीं जिन्हें हम छेदसूत्र का नाम देते हैं, वे मूलतः प्रायश्चित्त सूत्र है। छेदसूत्रों में उसकी गणना मुख्यरूप से की गई है-यही हैं। व्यवहार, आलोचना, शोधि और प्रायश्चित्त-ये चार एक ऐसा हेतु है, जो छेदसूत्र के अर्थान्तर के अनुसन्धान की
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