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आगम विषय कोश - २
अमी भगवन्तो नाक्षिमलादिकमप्यपनयन्ति, न वा चिकित्सादिकं कारयन्ति । न च तेषां कारणं विद्यते यद्बलात् ते द्वितीयपदासेवनं विदध्युः । तृतीयस्यां पौरुष्यां भिक्षाकालो विहारकालश्चास्य भवति, शेषासु तु पौरुषीषु प्रायः कायोत्सर्गेणाऽऽस्ते । (बृभा १४२४ वृ) १७. कारण - ज्ञान आदि का पुष्ट आलम्बन नहीं होने के कारण वे अपवाद का सेवन नहीं करते।
१८. निष्प्रतिकर्म - वे अपने शरीर का परिकर्म नहीं करते। आंख आदि के मल का अपनयन भी नहीं करते। रोग होने पर चिकित्सा नहीं करवाते ।
१९. आहार-विहार- उनका भिक्षाकाल और विहारकाल हैतीसरी पौरुषी । शेष पौरुषी में वे प्रायः कायोत्सर्ग करते हैं । जंघाबल क्षीण होने पर वे विहार नहीं करते हुए भी किसी प्रकार का दोष सेवन नहीं करते।
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(जिनकल्पी के पैरों में यदि कांटा चुभ जाए या आंखों में धूलि गिर जाए तो भी वे अपने हाथों से न कांटा निकालते हैं और न धूल ही पौंछते हैं। यदि कोई दूसरा व्यक्ति वैसा करता है तो वे मौन रहते हैं।
जिनकल्पी अकेले रहते हैं और धर्म्य - शुक्ल ध्यान में लीन रहते हैं । वे सम्पूर्ण कषाय के त्यागी, मौनव्रती और कन्दरावासी होते हैं । ग्रन्थियों से रहित, निस्नेह, निस्पृह और वाग्गुप्त होते हैं। वे सदा जिन भगवान् की भांति विहरण करते रहते हैं । - भावसंग्रह १२०, १२२, १२३
जिनकल्पिक प्रायः अपवाद का सेवन नहीं करते। जंघाबल की परिक्षीणता के कारण वे विहरण नहीं करते हुए भी आराधक हैं। - विभावृ पृ७ )
१५. जिनकल्पी की उपधि के प्रकार
पत्तं पत्ताबंधो, पायट्टवणं च पायकेसरिया । पडलाइँ रइत्ताणं, च गोच्छओ पायनिज्जोगो ॥ तिन्नेव य पच्छागा, रयहरणं चेव होइ मुहपोत्ती । एसो दुवालसविहो, उवही जिणकप्पियाणं तु ॥ (बृभा ३९६२, ३९६३) जिनकल्पी के बारह प्रकार की उपधि होती है१. पात्र - प्रतिग्रह ।
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जिनकल्प
२. पात्रबंध - चोकोर वस्त्र, जिसमें पात्र रखा जाता है। ३. पात्रस्थापन - पात्र रखने का कंबलमय उपकरण । ४. पात्रकेसरिका - पात्र - प्रतिलेखन का वस्त्र ।
५. पटलक - भिक्षाचर्या के समय पात्र को ढांकने का वस्त्र । ६. रजस्त्राण - पात्र - वेष्टक |
७.
गोच्छक - पात्र के ऊपर देने का कंबलमय उपकरण । ये सात उपकरण पात्र के निर्योग - परिकरभूत हैं। ८, ९. दो सौत्रिक प्रावरण। ११. रजोहरण । १२. मुखपोतिका ।
१०. ऊर्णामय प्रावरण ।
० उत्कृष्ट - मध्यम- जघन्य उपधि चत्तारि य उक्कोसा, मज्झिमग जहन्नगा वि चत्तारि । कप्पाणं तु पमाणं, संडासो दो य रयणीओ ॥ (बृभा ३९६६) जिनकल्पिक के चार उपकरण उत्कृष्ट होते हैं - तीन कल्प और एक पात्र । चार उपकरण मध्यम होते हैं-पटल, रजस्त्राण, रजोहरण और पात्रबन्ध चार उपकरण जघन्य होते हैं - मुखवस्त्र, पात्रकेसरिका, पात्रस्थापन और गोच्छक ।
प्रत्येक कल्प (प्रावरण) निर्मुष्टिक दो हाथ लंबा डेढ़ हाथ चौड़ा होता है- यह उनके कल्प का प्रमाण है। ...जं खंडियं दढं तं, छम्मासे दुब्बलं इयरं ॥ (निभा ५७९२)
वे वैसा मजबूत खंडित (एक पार्श्व से छिन्न) वस्त्र ग्रहण करते हैं, जिसे छह मास तक धारण किया जा सके, जीर्ण वस्त्र ग्रहण नहीं करते 1
१६. उपधि के विकल्प ओघोवधी जिणाणं ...... | जिणकप्पिया उ दुविधा, पाणीपाता पडिग्गहधरा य । पाउरणमपाउरणा, एक्केक्का ते भवे दुविधा ॥ दुग-तिग- चउक्क- पणगं, णव - दस- एक्कारस व बारसगं । एते अट्ठ विकप्पा, जिणकप्पे होंति उवहिस्स ॥ अहवा दुगं य णवगं, उवकरणे होंति दुण्णि तु विकप्पा | पाउरणं वज्जित्ताण विसुद्ध जिणकप्पियाणं तु ॥
( निभा १३८९ - १३९२)
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