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गीतार्थ
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आगम विषय कोश-२
अव्यक्त होता है। गीतार्थ सूत्र से व्यक्त होता है। प्रवजितस्य निशीथमुद्दिश्यते, पञ्चवर्षप्रव्रजितस्य कल्प
जातकप्पिओ णाम गीतत्थो, अजातकप्पिओ व्यवहारौ, विंशतिवर्षप्रव्रजितस्य दृष्टिवादः। अगीतत्थो। (बृभा ६९४ की चू)
(बृभा ४०३, ४०४ वृ) गीतार्थ वह है, जो जातकल्पिक है-छेदसूत्र के अर्थ चिरप्रव्रजित के तीन प्रकार हैंको धारण कर अग्रिम आगमसूत्रों का अध्ययन करने तथा जघन्य-तीन वर्ष के मुनिपर्याय वाला। पिंडैषणा आदि अध्ययनों को पढकर पिंड आदि ग्रहण करने मध्यम-पांच वर्ष के मनिपर्याय वाला। योग्य हो गया है। जो अजातकल्पिक है, वह अगीतार्थ है। उत्कृष्ट–बीस वर्ष के मुनिपर्याय वाला।
वस्त्रपात्रपिण्डशय्यैषणाध्ययनादि छेदसत्राणि च बहुश्रुत निश्चितरूप से चिरप्रव्रजित होता है। तीन वर्ष सत्रतोऽर्थतः तदभयतो वा येन सम्यगधीतानि स गीतार्थः। पर्याय वाले को निशीथ, पांच वर्ष पर्याय वाले को कल्प-व्यवहार
(व्यभा १०८ की वृ)
और बीस वर्ष पर्याय वाले को दृष्टिवाद पढ़ाया जाता है। जिसने आचारचूला के वस्त्रैषणा, पात्रैषणा, पिण्डैषणा,
० बहुसूत्र-श्रुतबहुश्रुत-बहुआगम शय्या आदि अध्ययनों तथा छेदसूत्रों का सूत्रतः, अर्थतः अथवा
बहुकालोचितं सूत्रं आचारादिकं यस्य स बहुसूत्रो। सूत्रार्थतः सम्यक् अध्ययन किया है, वह गीतार्थ है।
गीतार्थो विदितसूत्रार्थः। (व्यभा १४४२ की वृ) २. बहुश्रुत और गीतार्थ के प्रकार
जिसने श्रुताध्ययनपरिपाटी से आचारांग अदि बहुत से तिविहो बहुस्सुओखलु, जहण्णओ मज्झिमो उ उक्कोसो। सूत्रा
सूत्रों को कण्ठस्थ कर लिया है, वह बहुसूत्र है। जो सूत्रों के . आयारपकप्पे कप्प नवम-दसमे य उक्कोसो॥
___ अर्थ को भी जानता है, वह गीतार्थ है।
__ (बृभा ४०२) , ___यस्याबह्वपि श्रुतं न विस्मृतिपथमुपय ति य श्रुतबहुश्रुत के तीन प्रकार हैं
बहुश्रुतः।
___ (व्यभा ४५०८ की वृ) १. जघन्य बहुश्रुत-आचारप्रकल्प (निशीथ) का ज्ञाता।
जो बहुत सूत्रों को सुनकर भी विस्मृत नहीं करता, २. मध्यम बहुश्रुत-कल्प-व्यवहार को धारण करने वाला। वह श्रुतबहुश्रुत है। ३. उत्कृष्ट बहुश्रुत-नौपूर्वी-दसपूर्वी मुनि।
बहुरागमोऽर्थरूपो यस्य स बह्वागमः। आयारपकप्पधरा, चउदसपुव्वी अजे अतम्मज्झा.
___ (व्यभा १४७९ की वृ) "निशीथाध्ययनधारिणो जघन्या गीतार्थाः"कल्प- जो अनेक अर्थागमों का ज्ञाता है, वह बह्वागम है। व्यवहार-दशाश्रुतस्कन्धधरादयो मध्यमाः।
* सूत्रकल्पिक-अर्थकल्पिक
द्र सूत्र (बृभा ६९३ वृ)
३. बहुश्रुत तथा अबहुश्रुत की गीतार्थता, अगीतार्थता गीतार्थ के तीन प्रकार हैं-१. जघन्य-आचारप्रकल्प
अबहुश्रुतो नाम येनाऽऽचारप्रकल्पाध्ययनं नाधीतं धर। २. मध्यम-कल्प, व्यवहार, दशा आदि का धारक।
अधीतं वा परं विस्मारितम्, अगीतार्थः येन च्छेदश्रुतार्थो न ३. उत्कृष्ट-चतुर्दशपूर्वी मुनि।
गृहीतो गृहीतो वा परं विस्मारितः ।... ० बहुश्रुत नियमतः चिरप्रवजित
___ इह चत्वारो भङ्गाः, तद्यथा-अबहुश्रुतो नामैकोचिरपव्वडओ तिविहो. जहण्णओ मज्झिमो य उक्कोसो। गीतार्थश्च, अबहुश्रुतो गीतार्थः बहुश्रुतोऽगीतार्थः, बहुश्रुतो तिवरिस पंचग मज्झो, वीसतिवरिसो य उक्कोसो॥ गीतार्थश्च । प्रमादादिना सूत्रं विस्मृतम् अर्थं पुनः स्मरतीबहुसुय
चिरपव्वइओ. ..। त्यबहुश्रुतस्य गीतार्थत्वम्, यद्वा आज्ञाधारणादिमात्रव्यवयो बहुश्रुतः स नियमाच्चिरप्रवजित: येन त्रिवर्ष- हारेणाबहुश्रुतस्यापि गीतार्थत्वम्,ऽऽचारप्रकल्पाध्ययनं
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