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चिकित्सा
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आगम विषय कोश-२
है।
हा
लिंगसंबंधी रोग।२. निर्वणि नेत्ररोग। माधवनिदान में बताया होता है-पैर, हाथ, मस्तक और ग्रीवा-ये अधस्तनकाय हैं। ये गया है-अभिष्यन्द के कारण नेत्र के कृष्णमण्डल में व्रणरहित अवयव शास्त्रोक्त शरीरलक्षणों के प्रमाण के अनुसार नहीं शुक्र हो जाता है, जो बीच से कटा हुआ, मांस से ढका हुआ, होते तथा शेष अवयव प्रमाणोपेत होते हैं, उसे 'कुब्ज' अपना स्थान बदलने वाला, सूक्ष्म सिराओं से व्याप्त, दर्शनशक्ति कहा जाता है। वडभत्व का अर्थ है-पृष्ठग्रंथि का बाहर को नष्ट करने वाला, दो पटलों में विभक्त तथा सब ओर से निकलना।-आ २/५४ का भाष्य) लाल होता है। मानि नेत्ररोगनिदान।
श्लीपदनाम्ना रोगेण यस्य पादौ शूनौ-शिलायदि णिम्मणि के स्थान पर मम्मणि शब्द पढ़ा जाए वद् महाप्रमाणौ भवतः स एवंविधः श्लीपदी। तो उसका अर्थ होना चाहिये-मन्मनी-अस्पष्ट भाषी अथवा
(बृभा ११४८ की वृ) मूक। अथवा णिम्मणि-अपस्मार/मृगी?
श्लीपद नामक रोग से जिसके पैर शून-शिला की ० रोग का छठा प्रकार है-अलसक। जिस रोगी की कुक्षि में
भांति स्थूल और भारी हो जाते हैं, वह रोगी श्लीपदी कहलाता आनाह (आमाशय से मलाशय पर्यंत अवयव की गति में रुकावट) हो जाए,... अपानवायु रुक कर आमाशय की ओर
(आ ६/८ में सोलह रोगों अथवा रोगियों का नामानुक्रम दौड़े, अधोवायु और पुरीष सर्वथा रुक जाए और प्यास लगे
इस प्रकार हैएवं डकारें आए, उस रोगी को 'अलसक' नामक रोग का
१. गण्डी-गंडमाला रोग से ग्रस्त। रोगी जानो। इस रोग में पाचक अवयव अलस या आलसी हो
२. कुष्ठी-कोढ रोग से ग्रस्त । जाते हैं।-मानि अग्निमांद्यरोगनिदान)
३. राजयक्ष्मी-क्षय रोग से ग्रस्त। व्याधि (आतंक) के आठ प्रकार हैं
४. अपस्मारिक-मुगी या मर्छा से ग्रस्त। १. ज्वर ५. अतिसार
५. काणक-काणत्व से ग्रस्त। २. श्वास ६. भगंदर
६. जड-शरीर के अवयवों की जड़ता से ग्रस्त। ३. कास ७. शूल (कुक्षिशूल आदि)
७. कुणि-हाथ या पैर की विकलता से ग्रस्त। ४. दाह ८. घातक अजीर्ण
८. कुब्ज-कुबड़ेपन से ग्रस्त । सर्वगात्रहीनं वामनं, पृष्टतोऽग्रतो वा विनिर्गतसरीरं
९. उदरी-उदररोग से ग्रस्त। डभ, सवगात्रमगपाश्वहान कुब्ज गतुमसमथः, पाद- १०. मूक-मूकता से ग्रस्त। जंघाहीन: पंगुः, हीनहस्तः कुंटः, एकाक्षः काणः।
११. शूनिक-सूजन से गस्त।
(निभा ३७०९ की चू) १२. ग्रासिनी-भस्मकव्याधि से ग्रस्त। वामन-सर्वगात्रहीन।
१३. वेपकी-कम्पनरोग से ग्रस्त। वडभ-जिसके शरीर के पीछे का अथवा आगे का भाग उभरा १४. पीठसी-पंगुता से ग्रस्त। हुआ हो।
१५. श्लीपदी-हाथीपगा रोग से ग्रस्त। कुब्ज-एक पाव से हीन गात्र वाला, चलने में असमर्थ। १६. मधुमेहनी-मधुमेहरोग से ग्रस्त । पंगु-पादजंघा से हीन।
० गर्भ में वात-प्रकोप अथवा माता के दोहद की पूर्ति न होने कुंट-हाथ से विकल।
पर शिशु कुब्ज, कुणि, पंगु, मूक और मन्मन होता है। काणक-एक आंख वाला।
० मूक और मन्मनभाषी गर्भदोष के कारण होता है अथवा (कुब्ज शब्द के दो अर्थ हैं-पृष्ठग्रंथि का बाहर निकलना जन्म के पश्चात् भी हो सकता है। और ठिगना। संस्थानप्रकरण में कुब्ज संस्थान का वामन अर्थ प्राप्त ० मुख के पैंसठ रोग हैं, जो सात आयतनों में होते हैं
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