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चिकित्सा
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आगम विषय कोश-२
१२. अतिवमन-विरेचन से वल्गुली-कोढ
* जिनकल्प"चिकित्सा-निषेध द्र स्थविरकल्प ___ * चींटीयुक्त भोजन : वमन..... द्र आहार
* मंत्र से चिकित्सा : मुरुण्ड दृष्टांत द्र मंत्रविद्या १३. नाक का अर्श होने का एक कारण
* क्षिप्त-दीप्तचित्त-चिकित्सा द्रचित्तचिकित्सा १४. कटिरोग का एक कारण
* औषधि और वीर्य
द्र वीर्य १५. वात-पित्त-प्रकोप
* प्रायश्चित्त औषध तुल्य
द्र प्रायश्चित्त १६. उत्पल आदि से पित्तप्रकोप आदि का शमन
१. धन्वन्तरिकृत वैद्यकशास्त्र ०पित्त आदि की उग्रता : मधुर द्रव्य आदि"
........."जोगीव जहा महावेज्जो॥ १७. अजीर्ण रोग के कारण १८. जलोदर का कारण
योगी-धन्वन्तरिः, तेन च विभंगज्ञानबलेनाऽऽ१९. मिट्टीभक्षण से पांडुरोग
गामिनि काले प्राचुर्येण रोगसंभवं दृष्ट्वा अष्टाङ्गायु२०. वेगनिरोध और रोग
र्वेदरूपं वैद्यकशास्त्रं चक्रे, तच्च यथाम्नायं येनाधीतं स ० वेगनिरोध से मृत्यु
महावैद्य उच्यते। स च आयुर्वेदप्रामाण्येन क्रियां कुर्वाणो २१. पैरधूलि से चक्षु उपहत
योगीव धन्वन्तरिरिव न दूषणभाग् भवति, यथोक्तक्रिया० पैर का परिकर्म चक्षुउपकारक
कारिणश्च तस्य तत् चिकित्साकर्म सिध्यति। | २२. कंटकविद्ध की चिकित्सा
(बृभा ९५९ वृ) २३. चंक्रमण से स्वस्थता
योगी-धन्वन्तरि ने अपने विभंगज्ञान के बल से २४. अगद (विषशामक औषधि), तैल आदि
'भविष्य में प्रचुर रोगों की उत्पत्ति होगी'-यह जानकर अष्टांग २५. विष की औषध विष ० विष के प्रकार
आयुर्वेद रूप वैद्यकशास्त्र का निर्माण किया। गुरुपरम्परा से ० वंजुलवृक्ष से विष अपनयन
उस शास्त्र का अध्ययन करने वाला महावैद्य कहलाता है। ० स्वर्ण विषघाती
वह महावैद्य आयुर्वेद के प्रामाण्य के आधार पर क्रिया ० गोबर विषघाती
करता हुआ धन्वन्तरि की भांति निर्दोष होता है। शास्त्रानुसार २६. वमन-विरेचन आदि से चिकित्सा
क्रिया करने से उसका चिकित्साकार्य सफल होता है। २७. अतिश्रम से बुद्धिक्षीणता
(आयुर्वेद का अर्थ है-जीवन के उपक्रम और संरक्षण २८. क्षेत्र आदि की स्निग्धता : आयु-मेधा-वृद्धि
का ज्ञान, चिकित्साशास्त्र । वह आठ प्रकार का है० ब्राह्मी आदि का सेवन : वाक्पाटव, मेधा
१. कौमारभृत्य-बाल-चिकित्साशास्त्र। इसमें बालकों के * अवस्था-आहार-बल
पोषण और दूध सम्बन्धी दोषों का संशोधन तथा अन्य * विरुद्ध द्रव्यों का मेल अहितकर द्र आहार __ दोषजनित व्याधियों के उपशमन के उपाय निर्दिष्ट होते हैं। २९. उपवास से रोगचिकित्सा तथा पारणविधि
२. कायचिकित्सा-इसमें मध्य-अंग-समाश्रित ज्वर, अतिसार ३०. वैद्य के पास जाने की विधि एवं योग्यता
... कुष्ठ आदि रोगों के शमन के उपाय निर्दिष्ट होते हैं। ० वैद्य को रोगी की अवगति
३. शालाक्य-मुंह के ऊपर के अंगों में व्याप्त रोगों के उपशमन ३१. निदानतुल्य औषधिवर्जन
का उपाय बताने वाला शास्त्र। ३२. लघुव्याधि की चिकित्सा से पूर्व की चिकित्सा
४. शाल्यहत्य-शरीर के भीतर रहे हुए तृण, काष्ठ, पाषाण, |३३. रोग की उपेक्षा से हानि : वृक्ष और ऋण दृष्टांत ।
... नख आदि द्रव्यों के उद्धरण का उपाय बताने वाला शास्त्र। * गीतार्थ-अगीतार्थ चिकित्सा 1
५. जंगोली-सर्प आदि विषैले जीवों से डसे जाने पर उसकी * मुनि और वैद्य
- द्र वैयावृत्त्य
चिकित्सा का निर्देश करने वाला शास्त्र। इसे विष-विघातक * साधु-साध्वी चिकित्सा : विद्याप्रयोग द्र विद्या
शास्त्र या अगदतंत्र भी कहते हैं।
द्रवीर्य
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