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चिकित्सा
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आगम विषय कोश-२
रोग
अत्यधिक भार को उठाने से वेदना होती है। उस भार . नमीयुक्त मकान में निवास करने से भोजन का पाचन नहीं की वेदना के साथ ऊंचे-नीचे स्थानों में घूमने से श्वास का होता, इससे अजीर्ण रोग हो जाता है। प्रकोप बढ़ता है, बाहु और कटिभाग वायु से ग्रस्त हो जाता है। ० गीले वस्त्र के नित्य परिभोग से अजीर्ण रोग होता है। १५. वात-पित्त-प्रकोप
....."खद्धादियणगिलाणे अडतो "वातप्रकोपो भवति तथा अत्युष्णपरि
___अच्चुण्हताविए उ, खद्ध-दवादियाण छड्डणादीया।" तापात् पित्तमुद्रिक्ती भवति। (व्यभा २५७३ की वृ)
(व्यभा २५३३, २५७५) ___अधिक घूमने से वायुप्रकोप तथा अधिक उष्ण परिताप प्रवाते स्वपतोऽजीर्णमुपजायते। से पित्तप्रकोप होता है।
(व्यभा ३३८५ की वृ) १६. उत्पल आदि से पित्तप्रकोप आदि का शमन अत्यधिक तृषा से पीड़ित होकर एक साथ बहुत
पउमुप्पलमाउलिंगे, एरंडे चेव निंबपत्ते य। पानी पीने पर अजीर्ण का रोग होता है, वमन आदि होने पित्तुदय सन्निवाते, वातपकोवे य सिंभे य॥ लग जाता है।
(निभा ४८९१)
बहुत पवन वाले स्थान में अथवा पवनरहित स्थान औषध
में सोने से अजीर्ण रोग उत्पन्न होता है। . पित्तप्रकोप उत्पल पद्म
१८. जलोदर का कारण सन्निपात बिजौरा
.......... परिभोग छप्पति, डउरे .......... । वातप्रकोप एरंडपत्र
छप्पदादिसुयऽन्नादिपडियखद्धासुदगोदरं भवति कफप्रकोप नीम के पत्ते
-जलोदरमित्यर्थः
(निभा ३२३३ चू) ० पित्त आदि की उग्रता : मधुर द्रव्य आदि
आहार के साथ जूं खाने पर जलोदर होता है। पित्तोदये मधुराभिलाषः... श्लेष्मोदयादम्ला- १९. मिट्टीभक्षण से पांडुरोग भिलाष:.."पित्तश्लेष्मोदये मञ्जिकाभिलाषः।
पुढवादि .... आहारे त्ति पंडुरोगादिसंभवे। (बृभा ८३१ की वृ)
(निभा ४०३४ की चू) ०पित्तोदय होने पर मधुर द्रव्यों की अभिलाषा होती है।
मिट्टी खाने से पांडु (पीलिया) रोग हो सकता है। ० कफ की उग्रता होने पर अम्ल वस्तु की इच्छा होती है। २०. वेगनिरोध और रोग ० पित्त और कफ-दोनों की उग्रता होने पर मंजिका की मुत्तनिरोहे चक्खुं, वच्चनिरोहेण जीवियं चयइ। अभिलाषा होती है।(मंजिआ-तुलसी।-दे६/११६)
उड्डनिरोहे कोठें, गेलनं वा भवे तिसु वि॥ १७. अजीर्ण रोग के कारण
(बृभा ४३८०) ............ जग्गणे अजिण्णादी।.........
मूत्र का निरोध होने पर चक्षु का हनन होता है। मल (व्यभा ६४७)
का निरोध होने पर जीवन नष्ट होता है। वमन का निरोध सीतलवसहीए भत्तं ण जीरति, ततो गेलण्णं
होने पर कुष्ठ रोग होता है। मूत्र, पुरीष और वमन-तीनों का जायति।
(निभा ६३६ की चू) सामान्यतः निरोध करने पर भी रोग होता है। एगपडोयारस्स वा उल्लस्स णिच्चपरिभोगेण
• वेगनिरोध से मृत्यु अजीरंतो गेलण्णं भवति। (निभा ३२३३ की चू)
काइयं सण्णं वा वायकम्मस्स वा णिरोहं करेग्ज, ० अतिजागरण से अजीर्ण रोग होता है।
तत्थ गाढतरंगेलण्णं हवेज्ज, मुच्छा वा से हवेज्ज, णिरोहण
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