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आगम विषय कोश - २
१. द्रव्यचित्त-भावचित्त
जीवो उ दव्वचित्तं, जेहिं च दव्वेहिं जम्मि वा दव्वे । नाणादिसु सुसमाही, धुवजोगी भावओ चित्तं ॥ अकुसलजोगनिरोहो, कुसलाणं उदीरणं च जोगाणं । एयं भावचित्तं .... ॥ दव्वचित्तं जीव एव, चित्तं न जीवद्रव्यादन्यत्वे वर्त्तते, न वा चित्तात् जीवोऽर्थान्तरभूतः । अथवा जीवो हि द्रव्यं सचेतनाभिसंबन्धाद् गुणपर्यायोपगमादनुपयो गाद्वा दव्वचित्तं ।''भावचित्तं ज्ञानाद्युपयोगः । नाणं मणवइकातसहगतं । एवं दरिसणंपि, चरित्तंपि । (दशानि ३३, ३३ / १ चू) जीव द्रव्यचित्त है । चित्तोत्पादक द्रव्य अथवा जिन द्रव्यों में चित्त उत्पन्न होता है, वे भी द्रव्यचित्त हैं । ज्ञान आदि में सुसमाधि तथा ध्रुवयोग भावचित्त है ।
अकुशल योगों का निरोध और कुशल योगों की उदीरणा भावचित्त है ।
द्रव्यचित्त जीव ही है । चित्त जीवद्रव्य से अन्य नहीं है । जीव चित्त से अन्य नहीं है । अथवा जीव ही द्रव्यचित्त है, उसके तीन कारण हैं
१.
. सचेतन अभिसंबंध २. गुणपर्याययुक्तता ३. अनुपयोग ज्ञान-दर्शन- चारित्र के उपयोग में मन-वचन-काययोग से समन्वित चित्त भावचित्त है ।
(स्थूल शरीर के साथ कार्य करने वाली चेतना चित्त है । मति श्रुतज्ञान से सम्पन्न आत्मा चित्त है । चित्त के तीन रूप हैं - भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्तन । मनोवर्गणा से उपरंजित चित्त ही मन है । - श्रीआको १ आत्मा)
मणसंकप्पो त्ति वा अज्झवसाणं ति वा चित्तं ति (निभा २८९३ की चू)
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मनसंकल्प, अध्यवसान और चित्त- ये तीनों पर्यायवाची नाम हैं। (चित्त की मुख्य दो अवस्थाएं हैं-समाधिस्थ (स्वस्थ) चित्त और असमाधिस्थ चित्त ।)
२. असमाधिस्थ चित्त के प्रकार और कारण रागेण वा भएण व, अधवा अवमाणितो नरिंदेणं । एतेहिं खित्तचित्तो, वणियादि परूविया लोगे ॥
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चित्तचिकित्सा
भयतो सोमिलबडुओ, सहसोत्थरितो व संजुगादीसु । धणहरणेण पहूण व विमाणितो लोइया खित्तो ॥ जड्डादी तेरिच्छे, सत्थे अगणी य थणियविज्जू य । “ (व्यभा १०७८, १०७९, १०८६ ) असमाधिस्थचित्त (अस्वस्थचित्त) के तीन प्रकार हैं - क्षिप्तचित्त, दृप्तचित्त तथा उन्मत्तचित्त ।)
चित्त की विक्षिप्तता के मुख्य कारण तीन हैं - अनुराग, भय और राजा आदि के द्वारा किया गया अपमान ।
० अनुराग - प्रिय व्यक्ति के अनिष्ट, वियोग, मरण आदि से होने वाले चित्तविप्लव का हेतु राग है। एक वणिग्भार्या अकस्मात् अपने पति की मृत्यु का संवाद सुन विक्षिप्त हो गई।
० भय - गजसुकुमालमारक सोमिल ब्राह्मण कृष्ण के भय से क्षिप्त-चित्त हो गया। युद्ध आदि का तथा अतर्कित आक्रमण भय भी विक्षिप्तता का हेतु है ।
• अपमान - राजा आदि के द्वारा सारी सम्पत्ति छीन लिए जाने पर, अपमानित होने पर व्यक्ति क्षिप्तचित्त हो जाता है।
हाथी आदि जानवरों को, शस्त्रों को तथा आगजनी को देखकर, मेघ की गर्जना और बिजली के कड़कने की आवाज सुनकर व्यक्ति क्षिप्तचित्त हो जाता 1
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( आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भय के कुछ कारण ये हैं - ऊंचे स्थान, खुले स्थान और बंद स्थान का भय, पीड़ा का भय, तूफान, बिजली एवं गर्जन से भय, स्त्रियों से भय, रक्त, जल, अग्नि और कीटाणुओं से भय, अकेलेपन से भय, शव से भय, अंधेरे और भीड़ से भय, जानवरों से भय, रोगसंक्रमण से भय । यह सब असंगत भय है, असामान्य चित्त
अवस्था है । आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, पृ. २५३ ) ३. रागजन्य क्षिप्तता : मृत्युदर्शनबोध
तेलोक्कदेवमहिता, तित्थगरा नीरया गता सिद्धिं । 'थेरा वि गता केई, चरणगुणपभावगा धीरा ॥ न हु होति सोइयव्वो, जो कालगतो दढो चरित्तम्मि । सो होति सोइयव्वो, जो संजमदुब्बलो विहरे ॥ (व्यभा १०८३, १०८४)
कोई राग के कारण क्षिप्तचित्त हो तो उसे मृत्यु की अनिवार्यता का दर्शन समझाना चाहिए
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