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क्षेत्रप्रतिलेखना
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आगम विषय कोश-२
गण को बिना पूछे यदि आचार्य क्षेत्रप्रत्युपेक्षक को क्षेत्रप्रतिलेखना के लिए जाने वाले मुनि द्रव्य, क्षेत्र भेजते हैं तो अनेक दोषों की संभावना रहती है। यदि आचार्य काल और भाव से मार्ग की भी प्रतिलेखना करेकेवल अपने शिष्यों को बुलाते हैं, तब प्रतीच्छक शिष्य द्रव्यत:-मार्ग में कण्टक, व्याल, स्तेन, प्रत्यनीक, श्वापद बाह्यभाव को प्राप्त हो जाते हैं। वे सोचते हैं-इनके हर कार्य आदि की जानकारी करे। में अपने ही शिष्य प्रमाण हैं, हम नहीं। जब इनका चित्त क्षेत्रतः-मार्ग सम है या विषम, जलबहुल है या शुष्क, राग-द्वेष से मलिन है, तब इनके पास रहने से क्या? स्थण्डिलभूमी है या नहीं, भिक्षा सुलभ है या नहीं, मार्गवर्ती
प्रतीच्छक शिष्यों को बुलाने पर स्वशिष्य बाह्यभाव बस्तियां हैं या नहीं-इन सबकी जानकारी करे। को प्राप्त हो जाते हैं इनके तो प्रतीच्छक शिष्य ही कृपापात्र
कालत:-दिन या रात उपद्रव रहित है या नहीं। अथवा दिन हैं। तब हम किसलिए सेवा करें। प्रतीच्छक शिष्य सूत्रार्थ की या रात्रि में मार्ग सुगम है या दुर्गम। वाचना पूर्ण होने पर अपने गण में चले जाते हैं, तब आचार्य भावतः-ग्राम अथवा मार्ग स्वपक्ष-निह्नव आदि से आक्रान्त एकाकी रह जाते हैं।
है या परपक्ष-परिव्राजक आदि से। इन सबकी प्रतिलेखना स्थविर शिष्यों को बुलाने पर तरुण शिष्य बाह्य- भाव
करता हुआ मुनि अपने लक्षित क्षेत्र में प्रवेश करे। को प्राप्त हो जाते हैं। वे गुरु और स्थविर साधुओं की उपधि
६. क्षेत्र-प्रवेश-विधि : पौरुषी निषेध प्रतिलेखना और कृतिकर्म आदि नहीं करते। केवल तरुणों को
सुत्तत्थे अकरिता, भिक्खं काउं अइंति अवरहे। बुलाने पर स्थविर साधु पराभव का अनुभव करते हैं। वे सोचते
बीयदिणे सज्झाओ, पोरिसि अद्धाए संघाडो॥ हैं-हम पके हुए पान की तरह अथवा कंदविशेष के पत्ते की तरह निस्सार हैं। अब यहां रहने से क्या?
बाले वुड्डे सेहे, आयरिय गिलाण खमग पाहुणए।
तिन्नि य काले जहियं, भिक्खायरिया उ पाउग्गा॥ ४. क्षेत्र-प्रतिलेखक : दिशा और संख्या
(बृभा १४७९, १४८१) "चउदिसि ति दु एक्कं वा, सत्तगपणगे तिग जहन्ने॥ तिन्नेव गच्छवासी, हवंतऽहालंदियाण दोन्नि जणा।"
सूत्र और अर्थ पौरुषी को नहीं करते हुए मुनि विवक्षित (बृभा १४६३, १४७२)
क्षेत्र के निकटवर्ती ग्राम में भिक्षा कर अपराह्न में विचारभूमि गच्छवासी मुनि क्षेत्रप्रत्युपेक्षा के लिए चारों दिशाओं
के लिए स्थण्डिल की प्रतिलेखना करके उस क्षेत्र में प्रवेश
करें। वहां वसति ग्रहण करके प्रतिक्रमण करें। काल की में जाते हैं। अशिव आदि उपद्रव हो तो तीन, दो या एक दिशा
प्रतिलेखना करके रात्रिकालीन स्वाध्याय करें। उसके बाद दो में जाते हैं।
प्रहर तक शयन करें। दूसरे दिन प्रात:काल स्वाध्याय करके ___एक-एक दिशा में उत्कृष्टतः सात मुनि जाते हैं।
अर्द्धपौरुषी व्यतीत होने पर संघाटक भिक्षा के लिए निकले। इसके अभाव में पांच और जघन्यतः तीन मुनि जाते हैं।
जहां बाल, वृद्ध, शैक्ष, आचार्य, ग्लान, क्षपक तथा गच्छप्रतिबद्ध यथालन्दिक एक दिशा में दो जाते हैं। शेष तीन दिशाओं में आचार्य की अनुज्ञा से गच्छवासी मुनि ।
नि प्राघूर्णक के प्रायोग्य भक्त-पान तीनों कालों-पूर्वार्द्ध, मध्याह्न यथालन्दिक के योग्य क्षेत्र की भी प्रत्युपेक्षा करते हैं।
तथा सायाह्न में प्राप्त हो, वह क्षेत्र गच्छ के योग्य है। ५. मार्गवर्ती प्रतिलेखना
० सूत्र-अर्थपौरुषी का निषेध क्यों? कंटग तेणा वाला, पडिणीया सावया य दव्वम्मि। . सुत्तत्थाणि करिते, न व त्ति वच्चंतगाउ चोएइ। सम विसम उदय थंडिल, भिक्खायरियंतरा खेत्ते॥ न करिति मा हु चोयग! गुरूण निइआइआ दोसा॥ दिय राओ पच्चवाए, य जाणई सुगम-दुग्गमे काले।
(बृभा १४७७) भावे सपक्ख-परपक्खपेल्लणा निण्हगाईया॥ शिष्य ने पूछा-क्षेत्र-प्रतिलेखना के लिए जाते हुए मुनि
(बृभा १४७५, १४७६) सूत्रपौरुषी और अर्थपौरुषी करते हैं या नहीं? गुरु ने कहा-वे
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