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कर्म
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आगम विषय कोश-२
इनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद हैं-सत् और असत्। पिशाच, सिंह आदि को देखकर होने वाला भय सत् और बिना देखे उत्पन्न भय असत् है।
भयमोहनीय प्रकृति के उदय से होने वाला आत्मसमुत्थ अकस्मात् भय सत् है। अकल्पित अभिप्राय से उत्पन्न अकस्मात् भय असत् है।
शिष्य ने पूछा-भय के सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. इहलोक भय-सजातीय से भय, जैसे-मनुष्य को मनुष्य
से होने वाला भय। २. परलोक भय-विजातीय से भय, जैसे-भनुष्य को तिर्यंच
आदि से होने वाला भय। २. आदान भय-धन आदि पदार्थों के अपहरण का भय। ४. अकस्मात् भय-निमित्त के बिना ही उत्पन्न भय। ५. वेदना भय-पीड़ा आदि से उत्पन्न भय। ६. मरण भय-मृत्यु का भय। ७. अश्लोक भय-अकीर्ति का भय।
फिर चार प्रकार कैसे? आचार्य ने कहा-यह सही है कि भय के सात विकल्प हैं किन्तु संक्षेप में उसके चार विकल्प हैं। इहलोकभय का मानुष्य भय में और परलोक भय का दिव्य-तिर्यंचभय में समवतार होता है। आदान, आजीविका, मरण और अश्लोकइन चारों का दिव्यभय आदि तीनों में समवतार होता है। ३. कर्मबंध के तीन हेतु
रागो य दोसो य तहेव मोहो, ते बंधहेतू तु तओ वि जाणे। णाणत्तगंतेसिजधा य होति, जाणाहि बंधस्स तहा विसेसं॥ तिव्वेहि होति तिव्वो, रागादिएहिं उवचओ कम्मे। मंदेहि होति मंदो, मज्झिमपरिणामतो मज्झो॥
(बृभा ३९३५, ३९३७) राग, द्वेष और मोह-इन तीनों को कर्मबंध का हेतु जानो। इनमें नानात्व होता है, तब कर्मबंध में भी नानात्व होता
४. महामोहनीय कर्मबंध के स्थान
जे केइ तसे पाणे, वारिमझे विगाहिया। उदएणक्कम्म मारेति, महामोहं पकुव्वति॥ पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं। अंतोनदंतं मारेति, महामोहं पकुव्वति॥ जायतेयं समारब्भ, बहुं ओलंभिया जणं। अंतोधूमेण मारेति, महामोहं पकुव्वति॥ सीसम्मि जो पहणति, उत्तमंगम्मि चेतसा। विभज्ज मत्थगं फाले, महामोहं पकुव्वति॥ सीसावेढेण जे केइ, आवेढेति अभिक्खणं। तिव्वासुहसमायारे, महामोहं पकुव्वति॥ पुणो-पुणो पणिहीए, हणित्ता उवहसे जणं। फलेणं अदुव डंडेणं, महामोहं पकुव्वति॥ गूढाचारी निगृहेज्जा, मायं मायाए छायई। असच्चवाई णिहाई, महामोहं पकुव्वति॥ धंसेति जो अभूतेणं, अकम्मं अत्तकम्मुणा। अदुवा तुमकासित्ति, महामोहं पकुव्वति॥ जाणमाणो परिसाए, सच्चामोसाणि भासति। अज्झीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वति॥ अणायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया। विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं॥ उवकसंतंपि झंपेत्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेति, महामोहं पकुव्वति॥ अकुमारभूते जे केइ, कुमारभूतेत्तिहं वदे। इत्थीहिं गिद्धे विसए, महामोहं पकव्वति॥ अबंभचारी जे केइ, बंभचारित्तिहं वदे।... """इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वति ।। जं णिस्सितो उव्वहती, जससाहिगमेण वा। तस्स लुब्भइ वित्तंसि, महामोहं पकुव्वति॥ इस्सरेण अदुवा गामेण, अणिस्सरे इस्सरीकए।... .."जे अंतरायं चेतेति, महामोहं पकुव्वति॥ सप्पी जहा अंडउडं, भत्तारं जो विहिंसइ सेणावतिं पसत्थारं, महामोहं पकव्वति।। जे नायगं व रहस्स, नेतारं निगमस्स वा। सेटुिं च बहुरवं, हंता, महामोहं पकुव्वति॥
है।
राग आदि तीव्र संक्लिष्ट परिणामों से तीव्र, मंद परिणामों से मंद तथा मध्यम परिणामों से मध्यम कर्मोपचय होता है।
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