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कर्म
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आगम विषय कोश-२
बनाया है। मेरे लिए बनाया हुआ मैं नहीं ले सकता-ऐसा । * कर्म : गुरु-लघु-अगुरुलघु
द्र द्रव्य कहने पर गृहस्थ उस मुनि के लिए खरीद लेता है तथा अन्य के १५. कर्म का कर्ता स्वतंत्र या परतंत्र लिए बना देता है। यह उसकी जड़तायुक्त ऋजुता है। १६. मोहक्षय : तल, सेनापति आदि दृष्टांत
हमें उदगम आदि दोषों के अनुमोदन का दोष न लगे- | * मोहोदय और उसकी चिकित्सा द्र ब्रह्मचर्य इस दृष्टि से हम सब साधुओं के लिए उद्गगम के सब दोष १७. पुण्यबंध से मुक्ति कैसे? धान्यपल्य दृष्टांत वर्जित हैं-पूर्ववर्ती ऋजु-जड़ गृहस्थों के सामने ऐसा प्ररूपण * पूर्वतप से देवायुबंध कैसे?
द्र देव करने पर वे सब दोषों का वर्जन करते हैं।
* निर्वर्तना आदि और कर्मबंध द्र अधिकरण * शासनभेद का हेतु : ऋजुप्राज्ञ आदि द्र कल्पस्थिति * लेश्या और कर्म
द्र लेश्या एकलविहारप्रतिमा-विशिष्ट श्रुतसम्पन्न मुनि द्वारा १. कर्म की मूल-उत्तर प्रकृतियां
एकाकी रहकर की जाने वाली अट्ठमूलपगडीओ, (सत्तणउइ?)पंचणउइ वा प्रतिमा-साधना। द्र प्रतिमा उत्तरपगडीतो, सम्यक्त्वमिश्रयो र्बन्धो नास्तीत्येवं
पंचनवति। कर्म-कर्मरूप में परिणत होने योग्य और आत्मा की
(निभा ३३२२ की चू) प्रवृत्ति के द्वारा आकृष्ट पुद्गल।
कर्म की मूल प्रकृतियां आठ और उत्तरप्रकृतियां सत्तानवे
हैं । सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय-इन दो प्रकृतियों का १. कर्म की मूल-उत्तर प्रकृतियां
बंध नहीं होता, अतः कर्म की उत्तर प्रकृतियां पिच्यानवे हैं। २. भय मोहकर्म की प्रकृतियां
* कर्म के प्रकार, स्थिति.......... द्र श्रीआको १ कर्म * वेद मोहनीय का स्वरूप
द्र वेद ३. कर्मबंध के तीन हेतु
(कर्म की मूल आठ प्रकृतियां__ * मान में क्रोध की नियमा
१. ज्ञानावरणीय
५. आयुष्य * कषाय का उपशम आदि : चार गति -द्र कषाय
६. नाम २. दर्शनावरणीय ३. वेदनीय
७. गोत्र ४. महामोहनीय कर्मबंध के स्थान ५. प्रत्येक कर्मबंध के सामान्य हेतु
४. मोहनीय
८. अंतराय ६. द्रव्यबंध : कायप्रयोग आदि
ज्ञानावरणीयकर्म की ५ प्रकृतियां० भावबंध : जीवभावप्रयोगबंध
१. मति ज्ञानावरणीय ४. मनःपर्यव ज्ञानावरणीय ० अजीवभावबंध : औदारिक शरीर आदि
२. श्रुत ज्ञानावरणीय ५. केवल ज्ञानावरणीय ७. अबंध, बंध की तुल्यता और अल्पबहुत्व
३. अवधि ज्ञानावरणीय ८. बंध का हेतु पदार्थ नहीं
* इन्द्रियज्ञानावरण
द्र इन्द्रिय ___ * प्रतिसेवना और कर्म
द्र प्रतिसेवना दर्शनावरणीय कर्म की ९ प्रकतियां ९. बालवीर्य आदि और कर्मबंध
१. निद्रा
६. चक्षुदर्शनावरणीय १०. संहनन-धृति और कर्म
२. निद्रा-निद्रा
७. अचक्षु दर्शनावरणीय ११. संहनन, परिणाम और कर्मबंध
३. प्रचला
८. अवधि दर्शनावरणीय १२. ज्ञान-अज्ञान और कर्मबंध
४. प्रचला-प्रचला ९. केवल दर्शनावरणीय _ * स्त्यानर्द्धि निद्रा : लिंग पारांचिक द्र पारांचित ५. स्त्यानधि १३. जीव में भाव और कर्मबंध
वेदनीय कर्म की दो प्रकृतियां१४. कर्म का गुरुत्व-लघुत्व और नय
१. सात वेदनीय
२. असात वेदनीय
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