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आगम विषय कोश-२
उपधि
प्रतिज्ञा से आधे योजन से आगे जाने का संकल्प न करे। तो उस माप वाला पात्र मध्यम प्रमाण का है। इस माप से २५. तीन से अधिक बंधन-थिग्गल-निषेध छोटा जघन्य पात्र है तथा इससे बड़ा उत्कृष्ट पात्र है।
जे भिक्खू पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधति"वत्थस्स २८. पात्रैषणा की चार प्रतिमाएं परं तिण्हं पडियाणियाणं देति""आवज्जइ मासियं . चउहि पडिमाहिं पायं एसित्तए॥ परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं॥ (नि १/४५, ४८,५६) तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से भिक्खू वा
जो भिक्षु पात्र के तीन से अधिक बंधन बांधता है, भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय पायं जाएज्जा, तं वस्त्र के तीन से अधिक थिग्गल (पैबंद) लगाता है, वह जहा–लाउय-पायंवा, दारु-पायंवा, मट्टिया-पायं वा ॥ गुरुमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त करता है।
अहावरा दोच्चा पडिमा पेहाए पायं जाएज्जा ॥ २६. अतिरिक्त पात्र-वस्त्र धारण की अवधि
अहावरा तच्चा पडिमा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा संगतियं जे भिक्खू अतिरेगबंधणं पायं""अइरेगगहियं वा, वेजयंतियं वा ॥ वत्थं परंदिवड्डाओ मासाओ धारेति""आवज्जइ मासियं अहावरा चउत्था पडिमा-.""उज्झिय-धम्मियं पायं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ॥ (नि १/४६, ५४, ५६) जाएज्जा, जं चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहिजो भिक्षु अतिरिक्त बंधनयुक्त पात्र और अतिरिक्त
किवण-वणीमगा णावकंखंति" ॥(आचूला ६/१५-१९) गृहीत वस्त्र को डेढ़ मास से अधिक रखता है, वह गुरुमासिक
उद्दिसिय पेह संगय, उज्झियधम्मे चउत्थए होइ।" प्रायश्चित्त का भागी होता है।
उद्दिट्ठ तिगेगयरं, पेहा पुण दु एरिसं भणइ।
दोण्हेगयरं संगइ, वाहयई वारएणं तु॥ २७. पात्र के प्रकार ."अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं
गच्छवासिनः प्रतिमाचतुष्टयेनापि पात्रं गृह्णन्ति, वा"।
(आचूला ६/१)
जिनकल्पिकानामधस्तनाभ्यां द्वाभ्यामग्रहणमुपरितन....."तिविहं उक्कोस मज्झिम जहन्नं।
योर्द्वयोरेकतरस्यामभिग्रहः। एक्केक्कं पुण तिविहं, अहागडऽप्पं सपरिकम्मं॥
कस्यचिदगारिणो द्वे पात्रे, स च तयोरेकतरं दिने (बृभा ६५२)
दिने वारकेण वाहयति, तत्र यस्मिन् दिवसे यद् वाह्यते तत्
सङ्गतिकमभिधीयते, इतरद् वैजयन्तिकम्। तयोरेकतरं पात्र के तीन प्रकार हैं१. अलाबु पात्र २. काष्ठ पात्र ३. मृत्तिका पात्र ।
यदभिग्रहविशेषेण गवेष्यते सा तृतीया प्रतिमा। इनमें से प्रत्येक के तीन-तीन प्रकार हैं
__ (बृभा ६५४, ६५५ वृ) १. उत्कृष्ट २. मध्यम ३. जघन्य।
मुनि प्रतिमाचतुष्टयी से पात्र की एषणा करे___ इन तीनों के तीन-तीन प्रकार हैं
१. उद्दिष्ट पात्र-अलाबु, काष्ठ और मिट्टी के अथवा जघन्य, १. यथाकृत २. अल्पपरिकर्म ३. सपरिकर्म।
मध्यम और उत्कृष्ट-मुनि इन तीन प्रकार के पात्रों में से गुरु ० पात्र-परिधि का मापन
के समक्ष जिस पात्र की प्रतिज्ञा की हो, उसी की गहस्थ से तिन्नि विहत्थी चउरंगलं च भाणस्स मज्झिमपमाणं। याचना करता है। एत्तो हीण जहन्नं, अतिरेगयरं तु उक्कोसं॥ २. प्रेक्षा पात्र-भिक्षु पात्र को देखकर याचना करे।
(बृभा ४०१३) ३. संगतिक पात्र--किसी गृहस्थ के पास दो पात्र हैं। वह पात्र की परिधि रस्सी से मापी जाती है। मापने पर बारी-बारी से प्रतिदिन एक पात्र का उपयोग करता है। जिस माप वाली रस्सी तीन वितस्ति तथा चार अंगल की होती है दिन जिस पात्र का उपयोग करता है. वह पात्र संगतिक पात्र
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