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आगम विषय कोश-२
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आहार
लाभ आसादना : इष्ट-अनिष्ट द्रव्य आदि ......"लाभे छक्कं तं पुण, इट्टमणिटुं दुहेक्केक्कं॥ साधू तेणे ओग्गह, कंतार-वियाल-विसम सुहवाही। जे लद्धा ते ताणं, भणंति आसादणा तु जगे। दव्वं माणम्माणं, हीणहियं जम्मि खेत्त जं कालं। एमेव छव्विहम्मी, भावे..............." ।
(दशानि १५-१७) लाभ आसादना के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद हैं-इष्ट और अनिष्ट।
चोरों द्वारा साधुओं की चुराई हुई उपधि का पुन: लाभ होना अनिष्ट द्रव्य आसादना है। एषणा शुद्धि से उपधि की प्राप्ति इष्ट द्रव्य आसादना है। इसी प्रकार क्षेत्र, कान्तार, ग्रामानुग्राम विहरण, विषममार्ग, दुर्भिक्ष आदि में अप्रासुक द्रव्य-ग्रहण अनिष्ट द्रव्य आसादना तथा सुभिक्ष में शुद्ध आहार आदि की प्राप्ति इष्ट द्रव्य आसादना है। ग्लान आदि के लिए अनेषणीय की प्राप्ति अनिष्ट द्रव्य आसादना तथा एषणीय की प्राप्ति इष्ट द्रव्य आसादना है। इष्ट-अनिष्ट की प्राप्ति के आधार पर यहां आसादना कही गयी है।
मान-उन्मान-प्रमाण युक्त द्रव्य की प्राप्ति इष्ट द्रव्यआसादना है तथा हीन-अधिक की प्राप्ति अनिष्ट द्रव्य आसादना है। जिस क्षेत्र और काल में इष्ट-अनिष्ट द्रव्य दिया जाता है अथवा उसका वर्णन किया जाता है, वह इष्ट-अनिष्ट क्षेत्र और काल की आसादना है । अथवा प्रवास के योग्य-अयोग्य क्षेत्र की प्राप्ति क्षेत्र आसादना और सुभिक्ष-दुर्भिक्ष काल की प्राप्ति काल आसादना है। भाव आसादना के छह प्रकार हैंऔदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिकभाव। * भावों का स्वरूप
द्र श्रीआको १ भाव आहार-भूख-प्यास को शांत करने वाले, शरीर को
पोषण देने वाले पदार्थ। १. आहार-अनाहार २. आहार द्रव्य : शीत-उष्ण परिणामी ३. द्रव्य परिणमन के प्रकार
४. पुलाक आहार के प्रकार |५. कवल-परिमाण एवं ऊनोदरी तप ६. प्रकाम-निकामभोजी कौन? ७. आहार का अनुपात और उदर-विभाग ८. अति आहार से हानि : कटाह दृष्टांत | ९. चींटी मिश्रित भोजन : मेधा आदि की हानि १०. विरुद्ध द्रव्यों का मेल अहितकर ११. विकृति-वर्जन से स्वाध्याय में सुविधा * योगवहन में विकृति वर्जन
द्र स्वाध्याय * आहार संबंधी अभिग्रह
द्र भिक्षाचर्या * मुनि की आहारग्रहण विधि द्र पिण्डैषणा |१२. परिभोगैषणा-विवेक : आर्य मंगु-समुद्र दृष्टांत
० आहार-विधि * प्रणीत भोजन : कल्याण आहार द्र ब्रह्मचर्य * स्निग्ध आहार से आयु की वृद्धि द्र चिकित्सा * अवस्था, आहार और बल
द्र वीर्य |१३. पशु का प्रिय भोजन १. आहार-अनाहार .."आहारो एगंगिओ, चउव्विहो जं वऽतीइ तहिं॥ कूरो नासेइ छुहं, एगंगी तक्क-उदग-मजाई। खाइमे फल-मसाई, साइमे महु-फाणियाईणि॥ जं पुण खुहापसमणे, असमत्थेगंगि होइ लोणाई। तं पि य होताऽऽहारो, आहारजुयं व विजुतं वा॥ उदए कप्पूराई, फलि सुत्ताईणि सिंगबेर गुले। न य ताणि खविंति खुहं, उवगारित्ता उ आहारो॥ अहवा जं भुक्खत्तो, कद्दमउवमाइ पक्खिवइ कोटे। सव्वो सो आहारो, ओसहमाई पुणो भइतो॥
(बृभा ५९९८-६००२) जो एकांगी-अकेला क्षुधा को शांत करता है, वह आहार है। वह चार प्रकार का है-अशन, पान, खादिम और स्वादिम। चावल आदि खाद्य एकांगिक भूख मिटा देते हैं। पानक में तक्र, पानी आदि भूख-प्यास को मिटा देते हैं। खादिम में फल, मांस गूदा आदि तथा स्वादिम में मधु, फाणित आदि आहार का कार्य करते हैं, अतः ये आहार हैं।
यद्यपि आहार से संयुक्त या वियक्त लवण, हींग आदि
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