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आगम विषय कोश-२
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उपधि
कर सके। प्रणीत आहार भी बहुत मात्रा में नहीं दिया जाता, यत्राध्ययने आगाढादियोगलक्षणमुपधानमुक्तं तत्तत्र जिससे सूत्रार्थ के निमित्त रात्रिजागरण करने पर भी अजीर्ण कार्य, तत्पूर्विकस्यैव श्रुतग्रहणस्य सफलत्वात्। नहीं होता। स्वल्प मात्रा में प्रणीत आहार करने से नींद भी
___ (व्यभा ६३ की वृ) कम हो जाती है। रूक्ष भोजन करने से प्रस्रवण आदि का जो अध्ययन को पुष्ट करता है, वह उपधानतप है। बार-बार व्युत्सर्ग करना पड़ता है, जिससे अध्ययन में व्याघात जिस श्रुतग्रंथ के अध्ययन काल में जो आगाढ या होता है, इसलिए अल्प प्रणीत आहार दिया जाता है। अनागाढ योग रूप उपधान निर्धारित है, वह अवश्य करना १३. अव्याक्षेप : भिक्षाटन आदि द्वारा वैयावृत्त्य चाहिये। उपधानपूर्वक श्रुतग्रहण करने से ही श्रुतोपलब्धि
आहारे उवकरणे, पडिलेहण लेव खित्तपडिलेहा।" सफल होती है। (जैसे-अशकटपिता द्र आचार)। हिंडाविंति न वा णं, अहवा अन्नट्ठया न सो अडइ। * आगाढयोग-अनागाढयोग। द्र स्वाध्याय पेहिंति व से उवहिं, पेहेइ व सो न अन्नेसिं॥ एमेव लेवगहणं, लिंपइ वा अप्पणो न अन्नस्स।
उपधि-मुनि के उपयोग में आने वाले वस्त्र, पात्र, खेत्तं च न पेहावे, न यावि तेसोवहिं पेहे ॥
रजोहरण आदि आवश्यक उपकरण। (बृभा ७४७-७४९)
| १. उपधि के प्रकार आचार्य उत्सारकल्पी को भिक्षाटन, उपकरण-प्रति- २. परिहारविशद्धिक आदि के औधिक उपधि लेखन, लेपग्रहण और क्षेत्रप्रतिलेखन संबंधी व्याक्षेपों से मुक्त
___ * जिनकल्प की उपधि
द्र जिनकल्प रखते हैं।
३. गणचिंतक के पास सर्व उपधि ० भिक्षाटन-आचार्य उसे भिक्षा के लिए नहीं भेजते । अपेक्षा
४. स्थविर की उपधि : दूसरी बार अवग्रह ग्रहण
५. उपकरण सहित विहार होने पर वह अपने लिए भिक्षा ले आता है किन्तु आचार्य,
___ * उपधि का गुरु आज्ञा से ग्रहण
द्र आज्ञा ग्लान आदि के लिए पर्यटन नहीं करता।
* फल बताकर उपधि लेना निषिद्ध द्रपिण्डैषणा ० प्रतिलेखनं-उसके अध्ययन में बाधा न आये-इस दृष्टि से
६. वर्षाकाल में उपधि का अग्रहण अन्य साधु उसके उपकरणों का प्रतिलेखन करते हैं। वह
७. उपहत उपधि का अग्रहण दूसरों की उपधि की प्रत्युपेक्षा नहीं करता।
० विहार अवधावन से उपहत उपधि ० लेपग्रहण-इसी प्रकार वह लेप लाने नहीं जाता। उसके ०लिंग अवधावन से उपहत उपधि पात्रलेपन का कार्य भी अन्य साधु करते हैं। किसी कारणवश |८. उपधि परिष्ठापन की प्राचीन विधि यह संभव न हो तो वह अपने पात्रों पर स्वयं लेप लगाता है, ९. कृत्स्न वस्त्र के प्रकार अन्य साधुओं के पात्र-लेप का कार्य नहीं करता।
० अकृत्स्न वस्त्र कल्पनीय ०क्षेत्रप्रत्युपेक्षा क्षेत्रप्रतिलेखना के लिए उसे नहीं भेजा जाता
* जांगमिक आदि वस्त्र और वह क्षेत्रप्रतिलेखकों की उपधि की प्रत्यपेक्षा भी नहीं
* मूल्यवान् वस्त्रों के प्रकार
द्र वस्त्र
* चर्ममय प्रावरण के प्रकार करता।
१०. सुलक्षण वस्त्र का प्रयोजन : द्रमक आदि दृष्टांत उद्घाटा पौरुषी-द्वितीय-तृतीय प्रहर। द्र स्वाध्याय ११. वस्त्रैषणा की चार प्रतिमाएं उपधान-श्रुत के अध्ययन काल में किया जाने वाला
१२. वस्त्र प्राप्ति के लिए निवेदन
१३. वस्त्र ग्रहण से पूर्व तीन पृच्छा तप अनुष्ठान।
|१४ वस्त्र ग्रहण के अवग्रह उपदधाति पुष्टिं नयति अनेनेत्युपधानं तपः यद्
- द्र वस्त्र
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