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आर्यक्षेत्र
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आगम विषय कोश-२
८. भाषार्य - अर्धमागधी भाषाभाषी।
रायगिह मगह चंपा, अंगा तह तामलित्ति बंगा य। ९. शिल्पार्य - तुण्णाक, तन्तुवाय आदि।
कंचणपुरं कलिंगा, वाणारसि चेव कासी य॥ १०. ज्ञानार्य -- मति, श्रुत आदि पांच ज्ञान के धारक।
साकेत कोसला गयपुरं च कुरु सोरियं कुसट्टा य। ११. दर्शनार्य-सराग और वीतराग दर्शन के धारक।
कंपिल्लं पंचाला, अहिछत्ता जंगला चेव॥ १२. चारित्रार्य - सामायिक आदि पांच चारित्र के धारक। बारवई य सुरट्ठा, विदेह मिहिला य वच्छ कोसंबी।
(प्रज्ञापना सूत्र में आर्य के दो प्रकार प्रतिपादित हैं- नंदिपुरं संडिब्भा, भद्दिलपुरमेव मलया य॥ ऋद्धिप्राप्त आर्य और ऋद्धिअप्राप्त आर्य। अर्हत्, चक्रवर्ती, वेराड वच्छ वरणा, अच्छा तह मत्तियावइ दसन्ना। बलदेव, वासुदेव, चारण और विद्याधर-ये ऋद्धिप्राप्त आर्य सुत्तीवई य चेदी, वीतभयं सिंधुसोवीरा ॥ हैं। ऋद्धिअप्राप्त आर्य के नौ प्रकार हैं-क्षेत्रार्य, जात्यार्य, महरा य सरसेणा, पावा भंगी य मासपरि वड़ा। कलार्य शिल्पार्य, भाषार्य, ज्ञानार्य. दर्शनार्य. चारित्रार्य । इनमें सावत्थी य कणाला, कोडीवरिसं च लाढा य॥ से प्रत्येक के अनेक भेद हैं।—द्र प्रज्ञा १/९०-१२९)
सेयविया वि य नगरी, केगइअद्धं च आरियं भणियं। २. आर्यक्षेत्र की सीमा : कालसापेक्ष
जत्थुप्पत्ति जिणाणं, चक्कीणं राम-कण्हाणं॥ कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुरथिमेणं
(बृभा ३२६३ की वृ) जाव अंग-मगहाओ एत्तए, दक्खिणेणं जाव कोसंबीओ साढे पचीस जनपद अथवा उनमें रहने वाले क्षेत्रार्य एत्तए, पच्चत्थिमेणं जाव थूणाविसयाओ एत्तए, उत्तरेणं कहलाते हैं। वे मगध आदि जनपद राजगृह आदि नगरों से जाव कुणालाविसयाओ एत्तए।एतावताव कप्पइ, एताव- उपलक्षित हैं, जो प्रज्ञापना (१/९३/१-६) में प्ररूपित हैंताव आरिए खेत्ते। नो से कप्पइ एत्तो बाहिं। तेण परं जत्थ
जनपद (प्रदेश) नगर (राजधानी) नाणदंसणचरित्ताइं उस्सप्पंति। (क १/४७) १. मगध
राजगृह साएयम्मि पुरवरे, सभूमिभागम्मि वद्धमाणेण। २. अंग
चम्पा सुत्तमिणं पण्णत्तं, पडुच्च तं चेव कालं तु॥ ३.
ताम्रलिप्ति . (बृभा ३२६१) ४.
कलिंग
कांचनपुर (भुवनेश्वर) काशी
५. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थी पूर्व दिशा में अंग और मगध
वाराणसी (बनारस) कौशल
साकेत जनपद, दक्षिण दिशा में कौशाम्बी, पश्चिम दिशा में स्थूणा ६.
७. कुरु देश तथा उत्तर दिशा में कुणाला क्षेत्र तक जा सकते हैं,
हस्तिनापुर
कुशात (कुशावर्त्त) इतने क्षेत्र में विहार कर सकते हैं, इतना आर्यक्षेत्र है। वे
सोरियपुर (सौरीपुर) पांचाल
काम्पिल्य इससे बाहर नहीं जा सकते। उससे आगे जहां ज्ञान, दर्शन,
१०. जांगल
अहिच्छत्रा चारित्र की वृद्धि होती है, वहां जा सकते हैं।
११.
द्वारिका साकेत नगर में सुभूमिभाग उद्यान में समवसृत भगवान्
विदेह
मिथिला महावीर ने उस काल की अपेक्षा से उपर्युक्त क्षेत्र-सीमाविषयक
वत्स
कौशाम्बी सूत्र का प्ररूपण किया।
१४. शांडिल्य
नन्दिपुर ३. आर्यक्षेत्र : साढे पचीस जनपद
१५. मलय
भद्दिलपुर क्षेत्रार्या अर्द्धषड्विंशतिर्जनपदाः तद्वासिनो वा। ते १६.. मत्स्य
वैराट चजनपदा राजगृहादिनगरोपलक्षिता मगधादयः।उक्तञ्च
अच्छ
वरुणा
बंग
i v
९.
दर्शन,
सौराष्ट्र
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