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आगम विषय कोश-२
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आचार्य
आयारमंतस्स सुतं दिज्जति।सुतेण विनयति अप्पाणं ण गेण्हति गिण्हतं वारेति। (दशा ४/१७ चू) परंच।सुत्तं वाएति पाढेति, अत्थं सुणावेति गेण्हावेति हितं विक्षेपणा (नाना प्रकार से परसमय से स्वसमय की णाम जं जस्स जोग्गं। परिणामगं वाएति, दोण्ह वि हितं ओर प्रेरित करना) विनय के चार प्रकार हैंभवति। अपरिणामगं अतिपरिणामगं वा ण वाएति, तं १. अदृष्ट दृष्टपूर्वक विनेता-अदृष्टधर्मा को दृष्टधर्मा बनाना। अहितं तेसिं भवति परलोगे इहलोगे य। निस्सेसं नाम जिन्होंने पहले धर्म (सम्यक्त्व) को नहीं जाना, यथा- भाई, अपरिसेसं।
__(दशा ४/१६ चू) पिता आदि मिथ्यादृष्टि रहे हों, उनको परसमय से स्वसमय श्रुतविनय के चार प्रकार हैं
में स्थापित करना, सम्यक्त्वी बनाना। १. सूत्रवाचना-गुरु आचारसम्पन्न शिष्य को श्रुत/सूत्र की २. दृष्टपूर्वक-श्रावक को साधर्मिक-समानधर्मा बनाना, वाचना देते हैं, पढ़ाते हैं। इससे वे स्व और पर को मोक्षमार्ग प्रव्रजित करना। पर ले जाते हैं।
३. च्युतधर्म का धर्म में स्थापन-चारित्रधर्म अथवा दर्शनधर्म २. अर्थवाचना-वे शिष्य को अर्थ की वाचना देते हैं, अर्थ का से भ्रष्ट शिष्य को पुनः उसी धर्म में स्थापित करना। श्रवण और ग्रहण करवाते हैं।
३. धर्म अभ्युद्यत-चारित्र धर्म के हित-वृद्धि के लिए ३. हितवाचना-वे शिष्य की योग्यता के आधार पर सूत्र-अर्थ अभ्युद्यत रहना, अनेषणीय वस्तु का ग्रहण न करना, ग्रहण की वाचना देते हैं. यह हितकारी वाचना है। परिणामी शिष्य करते हुए को रोकना। अथवा धर्म के हित, सुख, सामर्थ्य, को वाचना देने से इहलोक-परलोक में हित होता है। अपरिणामी निःश्रेयस (मोक्ष) और आनुगामिकता (भवांतर में भी और अतिपरिणामी को वे वाचना नहीं देते। उन्हें वाचना देने धर्मप्राप्ति) के लिए अभ्युद्यत रहना। से उभयलोक में अहित होता है।
० दोषनिर्घातना विनय : कषाय-कांक्षा-विनयन ४. नि:शेष वाचना-वे योग्य शिष्य को नय-निक्षेप आदि के
दोसनिग्घायणाविणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहाद्वारा सूत्रार्थ का समग्रता से बोध कराते हैं।
कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवति, दुट्ठस्स दोसं णिगिण्हित्ता * वाचना सम्पदा
द्र गणिसम्पदा भवति, कंखियस्स कंखं छिंदित्ता भवति, आया सुप्पणिहिते ०विक्षेपणाविनय : सम्यक्त्व आदि में प्रतिष्ठान
यावि भवति॥ विक्खेवणाविणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा
दोसा कसायादी बंधहेतवो अट्ठ वा पगडीतो। नियतं अदिढे दिद्वपुव्वगताए विणएत्ता भवति, दिट्ठपुव्वगं निश्चित वा घातयति विनाशयतीत्यर्थः । कुद्धस्स सीतघरसाहम्मियत्ताए विणएत्ता भवति, चुयं धम्माओ धम्मे
___ समाणो वंजुलवृक्षवत्। दुट्ठो कसायविसएसु माणदुट्ठस्स ठावइत्ता भवति तस्सेव धम्मस्स हियाए सुहाए खमाए
वा आयारसीलभावदोसा वा विणएति, तं दोसं उवसमेति निस्सेसाए अणुगामियत्ताए अब्भुटेत्ता भवति॥
विनाशयतीत्यर्थः। कंखा भत्तपाणे परसमए वा संखडिए परसमयातो विक्खेवयति ससमयं तेण गाहिति णदीजत्ताए वा संपुण्णमेवं तु भवे गणित्तं, जं कंखिताअदिट्ठधम्मं दिट्ठधम्मताएसम्मदंसण-मित्यर्थः । अदृष्टं
णंपि हणेति कंखं।'..."जदा सयं तेसु कोहदोसकंखासुण दृष्टवत, पव्वं ति पढमण दिदो दिपव्वताए जधा भ्रातरं वट्टति, तदा सुप्पणिहितो भवति। "एवायरिएण सिस्सो पितरं वा मिच्छादिट्ठिपि होतगं। दिट्ठपुव्वगो सावग इत्यर्थः, गाहितो।
(दशा ४/१८ चू) तंसमानधर्मं कारयति पव्वावेति।“चुतो भट्ठो चरित्तधम्मातो दोष का अर्थ है-बंध के हेतु कषाय आदि अथवा वा दंसणधम्मातो वा, तंमि चेव धम्मे ठावयति।“कस्स आठ कर्मप्रकृतियां । निर्घातना का अर्थ है निश्चित विनाश चरित्तधम्मस्स हिताए जधा तस्स वृद्धिर्भवति, अणेसणादी करना । दोषनिर्घातना विनय के चार प्रकार हैं
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