________________
आगम विषय कोश-२
अनुयोग भवन्ति
१. परिकर्म-वस्तु को विशिष्टतर बनाना, रूप को सजानावत्तीभवंति दव्वा, दीवेणं अप्पगासे उव्वरए। संवारना, विशिष्ट भाषा सिखाना व कलाओं में कुशल बनाना। वत्तीभवंति अत्था, उवघाएणं तहा सत्थे॥ २. संवर्तन-वस्तु को सम्पूर्ण रूप में या आंशिक रूप में
उपोद्घाताभिधानमन्तरेण पनः शास्त्रं स्वतो- विनष्ट कर देना। ऽतिविशिष्टमपि न तथाविधमुपादेयतया विराजते, यथा सचित्त उपक्रम-सचित्त वस्तु के परिकर्म और विनाश में नभसि मेघाच्छन्नश्चन्द्रमाः।
किया जाने वाला उपक्रम । यथा-नट को पोशाक पहनाना, मेघच्छन्नो यथा चन्द्रो, न राजति नभस्तले। शुक-सारिका को स्पष्ट वर्णोच्चारण सिखाना, पुरुष का कलाओं उपोद्घातं विना शास्त्रं, न राजति तथाविधम्॥ में पारंगत होना आदि सचित्त परिकर्म है। किसी प्राणी का
(बृभाव पृ२) वध करना-यह सचित्त संवर्तन है। उपक्रम का समानार्थक शब्द है उपोद्घात । उपोद्घात
अचित्त उपक्रम-अचित्त वस्तु के परिकर्म और विनाश में कथन से जिस सूत्र की जिस प्रसंग में जो व्याख्या करनी होती
किया जाने वाला उपक्रम । यथा-सोने का कड़ा बनाना। कड़े
को भांजना। है, उसकी पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है-सूत्र का उद्देशनिर्देश, निर्गम, रचनाकाल, रचनाक्षेत्र. ग्रंथ का प्रयोजन और
मिश्र उपक्रम-यथा-आभूषणयुक्त नट को सुंदर वेष पहनाना, प्रतिपाद्य-यह सब अत्यंत स्पष्ट हो जाते हैं।
आभूषणों से अलंकृत पुरुष को बहत्तर कलाएं सिखाना मिश्र __ अंधेरे ओरे में रखी हुई वस्तुएं दीपक के प्रकाश में
परिकर्म है। दिखाई देती हैं, उसी प्रकार शास्त्र में निहित अर्थ उपोद्घात
शस्त्रधारी पुरुष को मारना मिश्र संवर्तन है। के द्वारा अभिव्यक्त होते हैं।
० क्षेत्र उपक्रम-नौका आदि से नदी को पार किया जाता है, उपक्रम के बिना स्वत: अतिविशिष्ट शास्त्र भी अपने हल, कुलिका (खेत में उगे हुए घास को काटने का उपकरण) वैशिष्ट्य के अनुरूप उपादेय नहीं होता।
आदि के द्वारा खेत को बीज बोने योग्य किया जाता है, घर जिस प्रकार मेघ से आच्छादित चन्द्रमा आकाश में और देवकुल का सम्मार्जन या भूमिकर्म किया जाता है, मार्ग नहीं चमकता, उसी प्रकार शास्त्र भी उपोद्घात के बिना का शोधन और तालाब आदि का खनन किया जाता है-यह उपयोगी नहीं बनता।
क्षेत्र उपक्रम है। • द्रव्य-क्षेत्र-काल उपक्रम
० काल उपक्रम-शंकुच्छाया, नालिका (घटिका-तांबे से सच्चित्ताई तिविहो, उवक्कमो दव्वि सो भवे दविहो। बनी हुई एक घड़ी, जिससे धूलि या पानी के नीचे गिरने से परिकम्मणम्मि एक्को, बिइओ संवट्टणाए उ॥
समय को जाना जाता है। जितने समय में ऊपर का पदार्थ जेण विसिस्सइ रूवं, भासा व कलासुवा वि कोसल्लं।
नीचे जाता है, वह एक मुहूर्त का समय होता है), नक्षत्र की परिकम्मणा उ एसा, संवट्टण वत्थुनासो उ॥
गति आदि के द्वारा समय को जाना जाता है-यह विद्वत्प्रशस्य नावाएँ उवक्कमणं, हल-कलियाईहिंवा विखित्तस्म। काल उपक्रम है। सम्मज-भूमिकम्मे, पंथ-तलागाइएसुं तु॥
द्रुमपुष्पों के विबोध और स्वाप (खिलने-मुरझाने) छायाएँ नालियाइव, कालस्स उवक्कमो विउपसत्थो।
के आधार पर भी सूर्य के उदय-अस्त को जाना जाता है। रिक्खाईचारेसु व, साव-विबोहेस व दमाणं॥ ४. भाव उपक्रम : गणिका-ब्राह्मणी-अमात्य दृष्टांत
(बृभा २५८-२६१)
गणिगा मरुगीऽमच्चे, अपसत्थो भावुवक्कमो होइ। ० द्रव्य उपक्रम-लौकिक द्रव्य उपक्रम के तीन प्रकार हैं- . आयरियस्स उ भावं, उवक्कमिज्जा अह पसत्थो॥ सचित्त, अचित्त, मिश्र। इनमें से प्रत्येक के दो-दो प्रकार हैं
(बृभा २६२)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org