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आचार
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आगम विषय कोश-२
आगाढयोग-भगवती आदि आगमों के अध्ययन काल
में अध्येता को सघनता से योगवहन करना होता है, उसे आगाढयोग कहा जाता है।
द्र स्वाध्याय
* आगाढ-अनागाढ श्रुत
द्र आचार
आचार-शास्त्रविहित आचरण, मोक्ष के लिए किया
जाने वाला अनुष्ठान।
... जा य भासा सच्चा, जा य जा य सच्चा अवत्तव्वा, भासा मोसा... तहप्पगारं भासं सच्चामोसा य जा मुसा। सावज्जं सकिरियं णो भासेज्जा ....न तं भासेज्ज पण्णवं॥ (४/१०)
(७/२) .....अंतलिक्खे ति वा
अंतलिक्खे त्ति णं बूया, गुज्झाणुचरिए ति वा गुज्झाणुचरिय त्ति य।.... (४/१७)
(७/५३) २४. आचाराग्र का समवतार
आयारग्गाणत्थो, बंभच्चेरेसु सो समोयरइ। सो वि य सत्थपरिणाए पिंडियत्थो समोयरइ॥ सत्थपरिण्णा अत्थो, छस्सु वि काएसुसो समोयरति। छज्जीवणिया अत्थो, पंचसु वि वएसु ओयरति॥ पंच य महव्वयाइं, समोयरंते य सव्वदव्वेसुं। सव्वेसि पज्जवाणं, अणंतभागम्मि ओयरति॥
(आनि १२-१४) आचाराग्र अर्थात चूलिकाओं के अर्थ का समवतार नौ ब्रह्मचर्य (आचारांग) के अध्ययनों में होता है। उनका पिंडितार्थ शस्त्र-परिज्ञा में समवतरित होता है। शस्त्र-परिज्ञा का अर्थ षड्जीवनिकाय में तथा षड्जीवनिकाय का अर्थ पांच व्रतों (महाव्रतों) में समवतरित होता है। पांच महाव्रतों का समवतार धर्मास्तिकाय आदि समस्त द्रव्यों में तथा समस्त पर्यायों के अनन्तवें भाग में होता है। * अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के प्रकार, प्रतिपाद्य आदि द्र श्रीआको १ अंगप्रविष्ट /अंगबाह्य/आगम। आगाढप्रज्ञ-गहन-गंभीर ग्रंथ।
आगाढाप्रज्ञा येषु व्याप्रियते न या काचन तान्यागाढप्रज्ञानि शास्त्राणि तेषु भावितात्मा तात्पर्यग्राहितया तत्रातीवनिष्पन्नमतिः। (व्यभा १४०३ की वृ)
जिन श्रुतग्रंथों के अध्ययन में सघन/अतिशय प्रज्ञा का उपयोग होता है, जो साधारण प्रज्ञा से ग्राह्य नहीं हैं, वे आगाढप्रज्ञ शास्त्र हैं। उनमें अवगाहन करने वाले की बुद्धि उनके तात्पर्यार्थ (ऐदम्पर्य) को ग्रहण कर अत्यंत सूक्ष्म हो जाती है। * प्रशस्य आचार्य : आगाढप्रज्ञ आदि द्र आचार्य
१. आचार के प्रकार
० द्रव्य आचार-अनाचार २. भाव आचार के प्रकार ३. ज्ञानाचार के प्रकार ४. काल ज्ञानाचार : विद्यासाधन का भी काल ५. विनय ज्ञानाचार : हरिकेश-श्रेणिक दृष्टांत ६. भक्ति-बहुमान ज्ञानाचार : मरुक-पुलिंद दृष्टांत ७. उपधान : आगाढ-अनागाढ श्रुत
० अशकटपिता दृष्टांत * उपधान और जीत व्यवहार
द्र व्यवहार * अनिलवन : निह्नवी परिव्राजक दृष्टांत द्र छेदसूत्र ८. ज्ञान अतिचार : सूत्रभेद-अर्थभेद
* अकाल स्वध्याय से ज्ञानविराधना द्र स्वाध्याय ९. दर्शनाचार : निःशंकता आदि ० पेयापान दृष्टांत * चारित्राचार में श्लथता के स्थान द्र उपसम्पदा * चारित्र अतिचार
द्र प्रतिसेवना १०. अतिचार : ज्ञान-दर्शन-चारित्र और भाव ११. वीर्याचार का स्वरूप १२. वीर्याचार के प्रकार ___ * वीर्य के प्रकार १३. आचार कुशल कौन ? __ * आचार के पर्याय
द्र आगम मुनि का आचार-व्यवहार द्र सामाचारी * आचार विनय : सामाचारी में नियोजन द्र आचार्य मुनि द्वारा वाहन प्रयोग
द्र सार्थवाह
द्र वीर्य
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