________________
आचार्य
आगम विषय कोश-२
हो गये हैं या अपूर्ण भी हैं, श्रुत अध्ययन भी अपूर्ण है, उस स्थिति द्रव्यों का संयोग करते तथा तत् संबंधी पाठ या मंत्र पढ़ते देख में आचार्य कालधर्म को प्राप्त हो जाएं और अन्य बहुश्रुत साधु चुका है तथा उनकी दृढ़ अवधारणा कर चुका है, वह अवसर लक्षणसम्पन्न न हों तो उसे आचार्य पद दिया जा सकता है।
___ आने पर उनका सफल प्रयोग कर सकता है। लौकिक, वैदिक और सामयिक शास्त्रविशारद लक्षण
जो आचार्य संयोगदृष्टपाठी नहीं होता, वह षड्गुरु संपन्न नायक की अनुशंसा करते हैं।
प्रायश्चित्त का भागी होता है। शिष्य ने जिज्ञासा की-भंते! तप-संयम में सस्थित हम यदि गणधारी चिकित्साविधि से अनभिज्ञ होता है जैसे श्रमणों के लिए लक्षण से क्या प्रयोजन? लक्षणहीन बहुश्रुत तो उसके देखते-देखते रोगग्रस्त साधु तथा साध्वी मृत्यु को से हमारे श्रुत-स्वाध्याय में वृद्धि होगी।
प्राप्त करते हैं। असमाधि मरण से अनन्त संसार बढ़ता है। आचार्य ने कहा-गण की श्रीवृद्धि के लिए अल्पश्रुत
यदि उपयुक्त चिकित्सा से मनि स्वस्थ हो जाता है तो वह होने पर भी लक्षणयुक्त को गणधरपद पर स्थापित करना चिरकाल तक श्रतलाभ कर सकता है. केवलज्ञान को प्राप्त अभीष्ट है। जैसे राज्यवृद्धि के लिए लक्षणसम्पन्न कुमार को
हो सकता है। असमाधि मरण से इहलौकिक और पारलौकिक राजा बनाया जाता है।
लब्धियों से वह वंचित रह जाता है। कुमार दृष्टांत-एक राजा के अनेक पुत्र थे। उसने सामुद्रिकशास्त्र वेत्ता को बुलाकर पूछा-किस कुमार को राज्य दूं?
२३. शक्ति सम्पन्न आचार्य : कुमार दृष्टांत सामुद्रिक ने बताया-अमुक-अमुक कुमारों को राजा बनाने से
पुव्वं ठावेति गणे, जीवंतो गणधरं जहा राया।" राज्य में निधूमक (भूखमरी), डमर (स्वदेशोत्थ, विप्लव),
दसविधवेयावच्चे, नियोग कुसलुज्जयाणमेवं तु। महामारी, दुर्भिक्ष, चोरबाहुल्य, सर्वत्र धन और कोश की
ठावेति सत्तिमंतं, असत्तिमंते बहू दोसा॥ हानि, वर्षा होने पर भी धान्यनिष्पत्ति का अभाव और प्रत्यंत
(व्यभा १९९३, १९९५) राजाओं की बलवृद्धि होगी। अमुक कुमारों को राज्य देने से
पूर्व आचार्य अपनी जीवित अवस्था में ही कुमारराज्य में क्षेम, शिव तथा सुभिक्ष होगा और मारी-डमर आदि परीक्षक राजा की भांति गण में शक्तिसम्पन्न शिष्य को उपसगों का अभाव होगा। इन दोष-गुणों में से किसी में एक गणधर पद पर स्थापित करते हैं। वे अभिनव स्थापित आचार्य और किसी में अनेक दोष या गुण हैं । राजा ने सर्वगुणसम्पन्न
दशविध (शैक्ष, स्थविर आदि का) वैयावृत्त्य करने के लिए कुमार का अभिषेक किया।
उद्यत शिष्यों में से, जो जिसमें कुशल होता है, उसे उसी में २२. आचार्य चिकित्साविधिज्ञ : संयोगदृष्टपाठी। नियोजित करते हैं। आचार्य शक्तिहीन हों तो उपधि, शिष्य, नियमा
विज्जागहणं.................... निर्जरा आदि की हानि होती है। संजोगदिट्ठपाढी, हीणधरतम्मि छग्गुरू होति....... ..""कुमरे उ परिच्छित्ता, रज्जरिहं ठावए रज्जे ॥ उप्पण्णे गेलण्णे, जो गणधारी न जाणति तिगिच्छं। दहिकुड अमच्च आणत्ति, कुमारा आणयण तहिं एगो। दीसंततो विणासो, सुहदुक्खी तेण तू चत्ता॥ पासे निरिक्खिऊणं, असि मंति पवेसणे रज्जं ॥ ""असमाही सुयलंभं, केवललंभं तु उप्पाए॥
(व्यभा १९९३, १९९४) इह लोगियाण परलोगियाण लद्धीण फेडितो होति।"
___ एक राजा के अनेक पुत्र थे। राजा ने सोचा, इनमें से (व्यभा २४२४, २४२७, २४२८, २४३०, २४३१) जो शक्तिशाली होगा, उसी को राज्य दूंगा। उसने कुमारों की
आचार्य को नियमतः अनेक विद्याओं का ज्ञाता होना परीक्षा प्रारंभ की। अपने कर्मकरों से कहा-एक स्थान पर चाहिए। वह संयोगदृष्टपाठी हो, यह आवश्यक है। संयोगदृष्ट- दही से भरे घड़ों को रखो। उन्होंने घड़े रखकर राजा को पाठी वह होता है, जो अन्यान्य व्यक्तियों को नाना प्रकार के निवेदन कर दिया। राजा ने अमात्य को बुलाकर कहा-तुम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org