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आगम विषय कोश-२
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आचार्य
अन्यत्र कन्याअन्त:पुर में किसी एक कन्या ने झरोखे प्रायश्चित्त का भागी होता है। ऐसा क्यों? असारणा करने से झांका। उसे सब कन्याओं के सामने प्रताडित किया गया वाला आचार्य गच्छ की विराधना करता है। शिष्य ने पूछातो शेष सब कन्याएं झरोखे से झांकने से डर गईं। कन्या- क्यों? आचार्य ने कहा-वह अपने शिष्यों को उन्मार्ग में जाने अन्त:पुर सुरक्षित रह गया।
से नहीं रोकता। इसलिए वह गच्छ का विराधक होता है। दारुभर दृष्टांत-लकड़ियों से भरी एक गाड़ी जा रही थी। जैसे कोई व्यक्ति अपनी शरण में आए हुए (शरणागत) नगरद्वार पर बच्चे ने एक लकड़ी उठाई। किसी ने मनाही को ही मार देता है, वैसे ही सारणीय व्यक्तियों की नहीं की। तब बालकों ने एक-एक कर गाड़ी से सब लकड़ियों सारणा नहीं करने वाला आचार्य गच्छ को ही नष्ट कर को खींच लिया।
देता है। दसरी गाडी के अधिकृत व्यक्ति ने प्रथम काष्ठहारी आबशत-अगीतार्थ आचार्य सर्गशीर्ष नाष्टांत को पीटा और अपनी पूरी गाड़ी को सुरक्षित रख लिया।
जो गणहरो न याणति. जाणंतो वा न देसती मग्गं। ० असारणा का दुष्परिणाम
सो सप्पसीसगं पिव, विणस्सती विज्जपुत्तो वा॥ ......पच्छित्तं, गणिणो गच्छं असारविंतस्स।.... सी-उाह-वासेयतमंधकारे णिच्चंपिगच्छामिजतोमिणेसी।
असारणा नाम अगवेषणा-कः कुत्र गतः? को वा गंतव्वए सीसग! कंचिकालं, अहंपिता होज्ज पुरस्सरा ते॥ मामापृच्छ्य गतः ?कोवा अनापृच्छया?यद्वा प्रलम्बंगृहीत्वा
ससक्करे कंटडले यमग्गे, वज्जेमि मोरेणउलादिए य। आगत्यालोचितेऽन्येन वा निवेदिते यत् प्रायश्चित्तं तन्न बिलेयजाणामि अदुटुढे माता विसूराहिअजाणिएवं॥ ददाति, दत्त्वा वा न कारयति, न वा नोदनादिना खरण्ट- तंजाणगंहोहि अजाणिगाहं, पुरस्सरंताव भवाहि अज्ज। यति, एषा सर्वाऽप्यसारणाऽभिधीयते"
एसाअहंणंगलिपासएणं,लग्गादुअंसीसग!वच्चवच्च॥ तथाचोक्तम् बृहद्भाष्ये
अकोविए! होहि पुरस्सरा मे, अलं विरोहेण अपंडितेहिं। किं कारणं तु गणिणो, असारवेंतस्स होइ पच्छित्तं?। वंसस्स छेदअमुणे! इमस्स, दढे जतिंगच्छसितोगता सि॥ वदति जेण गणहरो, विराहणाए उ गच्छस्स। बद्धीबलंहीणबला वयंति, किंसत्तजत्तस्सकरेड बद्धी। किह पुण विराहणाए, गच्छस्सगणी उवट्टती सखलु?। किंतेकहाणेवसुताकतायी, वसुंधरेयंजह वीरभोज्जा॥ भन्नइ सुणसु जह गणी, विराहओ होइ गच्छस्स॥ सामंदबुद्धी अहसीसकस्स, सच्छंद मंदावयणंअकाउं। जह सरणमुवगयाणं, जीवियववरोवणं णरो कुणइ। पुरस्सरा होतुमुहुत्तमेत्तं, अपेयचक्खूसगडेण खुण्णा॥ एवं सारणियाणं, आयरिओ असारओ गच्छे ॥
_ (बृभा ३२४६-३२५०, ३२५४, ३२५६) ___ (बृभा ९३६ वृ)
जो आचार्य मार्ग (सामाचारी) को नहीं जानता अथवा असारणा का अर्थ है-गवेषणा न करना। कौन कहां जानता हआ भी शिष्यों को मार्ग का उपदेश नहीं देता, वह गया? कौन मुझे पूछकर गया या बिना पूछे गया? अथवा सर्पशीर्ष और वैद्यपुत्र की भांति विनष्ट हो जाता है। प्रलम्ब फल आदि अकल्पनीय ग्रहण कर आने वाले ने सर्पशीर्ष का उदाहरण-एक बार पूंछ ने सर्प के सिर से कहाआलोचना की या अन्य से निवेदन करवाया तो उसका जो हे सिर! सर्दी, गर्मी और वर्षा में, सघन अंधकार वाले प्रदेश प्रायश्चित्त है, वह नहीं देता है अथवा प्रायश्चित्त देकर उसका में-जहां-कहीं तुम मुझे ले जाते हो, वहीं मैं सदा तुम्हारे निर्वहन नहीं करवाता है। प्रेरणा आदि के द्वारा निर्भर्त्सना नहीं पीछे-पीछे चली जाती हूं किन्तु अब कुछ समय के लिए करता है (प्रोत्साहन और उपालम्भ नहीं देता है)-यह सब मार्ग में मैं भी तुमसे आगे चलूंगी। असारणा कहलाती है। बृहद्भाष्य में कहा गया है-
सिर ने कहा--पुच्छिके! मैं कंकरीले, कंटीले, मयूर "जो आचार्य संघ की सारणा नहीं करता, वह और नकुल वाले मार्गों से नहीं जाता हूं। मैं दुष्ट-अदुष्ट
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