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आगम विषय कोश-२
आचार
सुतं भणियं तं सव्वं समासओ दुविहं भण्णति-आगाढं एक आचार्य ने वाचना से परिश्रांत होकर स्वाध्यायअणागाढं वा..... आगाढसुयं भगवतिमाइ। अणागाढं काल को अस्वाध्यायकाल घोषित कर दिया। इससे उनके
आति। आगाढे आगाढं उवहाणं कायव्वं। अणागाढे ज्ञानावरणीयकर्म का बंध हो गया। वे मृत्यु के पश्चात् देवलोक अणागाढं। जो पुण विवच्चासं करेति तस्स पच्छित्तं भवति। में उत्पन्न हुए। वहां से च्युत होकर वे आभीरकुल में उत्पन्न आगाढे का।अणागाढेङ्क। (निभा १५ चू) हुए। यौवन आने पर विवाह हुआ और एक कन्या उत्पन्न ___ जो दुर्गति में गिरने से बचाये, वह उपधान (श्रुत
हुई, जो अत्यंत रूपवती थी। एक दिन पिता और पुत्री घी अध्ययनकाल में करणीय तप) है। कालिक-उत्कालिक अंग
बेचने जा रहे थे। पुत्री शकट के अग्रभाग पर बैठी थी। कुछ अंगबाह्य सूत्रों के जिस उद्देशक, अध्ययन या श्रुतस्कन्ध के
तरुण भी अपनी गाड़ियां लेकर उसी मार्ग से जा रहे थे। वे लिए निर्विकतिक आदि जो उपधान करणीय है, वह करना उस कन्या के रूप को देखने के लिए अपनी गाड़ियों को चाहिए।
उत्पथ में ले गए तो वे टूट गईं। इस कारण से उन्होंने लड़की श्रत के दो प्रकार हैं-आगाढश्रत और अनागाढश्रत। का नाम 'अशकटा' रख दिया। उसका पिता अशकटपिता के भगवती आदि आगाढश्रुत तथा आचारांग आदि अनागाढश्रुत नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस घटना से ग्वाले को वैराग्य हो हैं। आगाढ के लिए आगाढ और अनागाढ के लिए अनागाढ गया। वह लड़की का विवाह कर दीक्षित हो गया। उसने उपधान करणीय है। जो आगाढ और अनागाढ में विपर्यास उत्तराध्ययन के तीन अध्ययन तो सीख लिए किन्तु चौथा करता है, वह क्रमशः चतुर्गुरु और चतुर्लघु प्रायश्चित्त का अध्ययन (असंखयं) सीखते हुए पूर्वबद्ध ज्ञानावरणीय कर्म भागी होता है। इसमें अशकटपिता का दृष्टांत ज्ञातव्य है। का उदय हो गया। प्रयत्न करने पर भी अध्ययन याद नहीं ० अशकटपिता दृष्टांत
हुआ। मुनि ने आचार्य को निवेदन किया। एगो आयरिओ वायणापरिस्संतो सज्झाये वि आचार्य ने बेले-बेले तप की अनुज्ञा दी। उसने पूछाअसज्झायं घोसेति एवं णाणंतरायंकाऊण देवलोगंगओ। इसके लिए कौन सा योग वहन करूं? आचार्य ने कहा-जब तओचओ आभीरकले पच्चायाओ भोगे भंजति।धयायसे तक याद न हो, तब तक आयंबिल तप करो। उसने उसी रूप जाया अतीव रूववती।तेय पच्चंतिया गोयारियाए हिंडति। में उपधान किया। बारह वर्ष तक आयंबिल करते हुए उसने तस्स य सगडं पुरतो वच्चति। सा य से धूया सगडस्स तुंडे
मात्र बारह श्लोक याद किये। तब उसका ज्ञानावरण क्षीण ठिता। तीसे य दरिसणत्थं तरुणेहिं सगडा वि उप्पहेण हुआ। पेरियाणि भग्गाणि य। तो से दारियाए लोगेण णामं कतं
जैसे अशकटपिता ने आगाढयोगवहन किया, वैसे ही असगडा।
सब अध्येताओं को योगवहन करना चाहिये। ___ असगडाए पिता असगडपिता। तस्स तं चेव वेरग्गं ८. ज्ञान अतिचार : सूत्रभेद-अर्थभेद जातं। दारियं दाउं पव्वइतो। पढिओ जाव चाउरंगिज। सक्कयमत्ताबिंदू, अण्णभिधाणेण वा वि तं अत्थं। असंखए उहिटे तण्णाणावरण उदिण्णं पढतस्स ण ठाति। वंजेति जेण अत्थं, वंजणमिति भण्णते सत्तं॥ छद्वेण अणुण्णवइत्ति भणिए भणति-एयस्स को जोगो? वंजणमभिंदमाणो, अवंतिमादण्ण अत्थे गुरुगो उ। आयरिया भणंति-जाव ण ठाति ताव आयंबिलं। तहा जो अण्णो अणणुवादी, णाणादिविराधणा णवरिं ॥ पढति। बारस वित्ता। बारसहिं वरिसेहिं आयंबिलं करेंतेणं दुमपुप्फिपढमसुत्तं-अहागडरीयति रण्णो भत्तं च। पढिया। तं च से णाणावरणं खीणं। (निभा १५ की चू) उभयण्णकरणेणं - मीसगपच्छित्तुभयदोसा॥ जहा असगडपियाए आगाढजोगो अणुपालितो, तहा
(निभा १७, १९, २०) सव्वेहिं सव्वमुवहाणं पालेयव्वं। (व्यभा ६३ की वृ) ० सूत्रभेद-जिससे अर्थ व्यक्त होते हैं, वह व्यंजन सूत्र है।
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