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आगम विषय कोश - २
१२. आचार्य आदि पदों के अनर्ह
• दोषसेवन से आचार्यत्व आदि के निषेध की सीमा
* निशीथ - विस्मृति: पद का निषेध
* अशिष्य आचार्यपद के अयोग्य
१३. आचार्य के प्रकार : गीतार्थ व सारणा के आधार पर
द्र छेदसूत्र
द्र अंतेवासी
• सारणा वारणा का मूल्य
• सारणा वारणा : दो दृष्टांत ० असारणा का दुष्परिणाम
१४. अबहुश्रुत-अगीतार्थ आचार्य: सर्पशीर्ष दृष्टांत वैद्यपुत्र दृष्टांत
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| १५. अगीतार्थ की आचार्य पद पर स्थापना से प्रायश्चित्त * गणिविहीन गण नहीं
द्र संघ १६. आचार्य आदि की निश्रा : द्विसंगृहीत- त्रिसंगृहीत १७. आचार्य - उपाध्याय और साध्वी
० स्थविरा साध्वी : निश्रा संबंधी विकल्प
* दिशा : आचार्य - उपाध्याय
१८. आचार्य - उपाध्याय के अतिशेष
द्र दिग्बंध
० अतिशेष के हेतु
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एकाकी रहने के हेतु : विद्यापरावर्तन महाप्राणध्यान
• एक शिष्य के साथ विहार क्यों ?
० आचार्य के चरण-प्रमार्जन की विधि
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• भिक्षार्थ न जाने के हेतु
| १९. अन्य पांच अतिशय : शिष्यों द्वारा सम्पादित ० योगसंधान : शिष्यों की जागरूकता २०. अतिशयों की उपजीविता : आर्यसमुद्र-मंगु दृष्टांत * आचार्य की समृद्धिसम्पन्नता द्र गणिसम्पदा २१. आचार्य सुलक्षण हो ': सलक्षण कुमार दृष्टांत २२. आचार्य चिकित्साविधिज्ञ : संयोगदृष्टपाठी २३. शक्तिसम्पन्न आचार्य : कुमार दृष्टांत
द्र जिनकल्प
२४. इत्वरिक तथा यावत्कथिक आचार्य की स्थापना * इत्वरिक गणनिक्षेप : गणपालन दुष्कर * नये आचार्य, शिष्यों को शिक्षा | २५. सापेक्ष-निरपेक्ष राजा और आचार्य | २६. सापेक्ष द्वारा भावी आचार्य की प्रतिष्ठा २७. निरपेक्ष राजा की मृत्यु : मूलदेव दृष्टांत २८. निरपेक्ष आचार्य कालगत, पदाभिषेक विधि • निरपेक्ष के कालगत की पूर्व घोषणा से हानि
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२९. गणधारक के आभाव्य पुरुषयुग ३०. पश्चात्कृत शिष्य : आभवद् व्यवहार ३१. आचार्य की ऋणमुक्ति के उपाय
० आचार विनय : सामाचारी में नियोजन
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श्रुतविनय : निःशेष वाचना
० विक्षेपणा विनय : सम्यक्त्व आदि में प्रतिष्ठापन दोषनिर्घातना विनय : कषाय-कांक्षा-विनयन
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* आचार्य आदि : एकलविहारप्रतिमा
| ३२. आचार्य वैयावृत्त्यकारी कैसे ?
* परिहार तप : आचार्य द्वारा वैयावृत्त्य * पारंचित प्रायश्चित्त : आचार्य का दायित्व * अनुपशांत को आचार्य द्वारा प्रेरणा * आलोचनाई (आचार्य) का व्यवहार * व्यवहारी (आलोचनाई) की अर्हता ३३. आचार्य : इहलोक-परलोक हितकारी ३४. असंक्लेशकर आचार्य : प्रासाद दृष्टांत * आचार्य के वैयावृत्त्य से महानिर्जरा * आचार्य की आशातना से आराधना नहीं ३५. आचार्य -अवज्ञा से श्रुत-हानि
* उपसम्पदा और आचार्य
* आचार्य - उपाध्याय और जिनकल्प * आचार्य अंगबाह्य के रचयिता * आचार्य परम्परा
आचार्य
द्र प्रतिमा
द्र परिहार तप
द्र पारांचित
द्र अधिकरण
द्र आलोचना
द्र व्यवहार
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द्रवैयावृत्त्य द्र आशातना
द्र उपसम्पदा
द्र जिनकल्प
द्र आगम द्र स्थविरावलि
१. आचार्य कौन ? अर्हता के स्थान आयरिय-उवज्झाया, नाणुण्णाता जिणेहि सिप्पट्ठा । नाणे चरणे जोगा, पावगा उ तो अणुण्णाता ॥ (व्यभा १९३२) अर्हतों द्वारा आचार्य-उपाध्याय का पद शिल्पशिक्षा देने के लिए अनुज्ञात नहीं है ।
जो शिक्षा ज्ञानयोग, दर्शनयोग और चारित्रयोग की प्रापक हो, इस योगत्रयी की वृद्धि करने वाली हो, उसी शिक्षा के लिए वे अनुज्ञात हैं।
पढिय सुय गुणिय धारिय, करणे उवउत्तो छहिं वि ठाणेहिं । छट्ठाण संपत्तो, गणपरिट्टी
अणुन्नाओ ॥ (बृभा ७०८ )
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