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आगम
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आगम विषय कोश-२
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द्वितीय श्रुतस्कंध के सोलह अध्ययन हैं। पूर्वानुपूर्वी क्रम से आचारचूला के सोलह अध्ययन आचारांग के उत्तरवर्ती निशीथ चूला छब्बीसवां अध्ययन है।
अर्थात् उससे संबद्ध हैं। जैसे वृक्ष और पर्वत के अग्र होते हैं, (आचारांग के दो श्रुतस्कंध, पच्चीस अध्ययन और वैसे ही आचारांग के ये अग्र (चूलाएं) हैं। पचासी उद्देशनकाल हैं।
सूत्र में अवर्णित अर्थ का कथन और संक्षिप्त वर्णित अध्ययन के लिए ग्रंथांश और कालांश की समुचित अर्थ का विस्तार करने के लिए इन चार चूलाओं का प्रतिपादन व्यवस्था की जाती थी, वह उद्दशेनकाल है।
किया गया है। ये उक्त-अनुक्त अर्थ की संग्राहिका हैं। अध्ययन I उद्देशनकाल
(ग्रंथ के उत्तरभाग-चूलिका (परिशिष्ट) उत्तरतंत्र कहा १. शस्त्रपरिज्ञा
गया है-चूलिका... उत्तरतंतं जधा-आयारस्स पंचचूला उत्तरमिति २. लोकविजय
जं उवरिसत्थस्स।'-दअचू पृ २४५) ३. शीतोष्णीय
२२. आचारचूला के निर्वृहणस्थल ४. सम्यक्त्व ५. लोकसार
बितियस्स य पंचमए, अट्ठमगस्स बितियम्मि उद्देसे।
भणितो पिंडो सेज्जा, वत्थं पाउग्गहे चेव॥ ७. महापरिज्ञा
पंचमगस्स चउत्थे इरिया वणिज्जते समासेणं। ८. विमोक्ष
छट्ठस्स य पंचमए, भासज्जायं वियाणाहि॥ ९. उपधान श्रुत
सत्तेक्कगाणि सत्त वि, निज्जूढाई महापरिणाओ।
सत्थपरिण्णा भावण, निजूढाओ धुय विमुत्ती॥ पिंडैषणा
धुताध्ययनस्य द्वितीयचतुर्थोददेशकाभ्यां विमुशय्या
क्त्यध्ययनं निर्मूढम्। (आनि ३०८-३१० वृ) ईर्या
आचारांग के दूसरे अध्ययन (लोक-विजय) के भाषाजात
पांचवें उद्देशक से तथा आठवें अध्ययन (विमोक्ष) के वस्त्रैषणा
दसरे उद्देशक से पिंडैषणा, शय्या. वस्त्रैषणा. पात्रैषणा और ६. पात्रैषणा
अवग्रहप्रतिमा निर्मूढ हैं। पांचवें अध्ययन (लोकसार) के ७. अवग्रहप्रतिमा
चौथे उद्देशक से 'ईर्या', छठे अध्ययन (धुत) के पांचवें ८-१४. सप्तैकक
उद्देशक से भाषाजात, महापरिज्ञा अध्ययन से सात सप्तैकक, १५. भावना
शस्त्रपरिज्ञा से भावना और धुत अध्ययन के दूसरे तथा चौथे १६. विमुक्ति
उद्दशक से विमुक्ति अध्ययन निर्मूढ है। कुल उद्देशनकाल ८५
आचारांग चूर्णि पृ. ३२६, ३२७ में नि!हण-स्थलों -नंदी ८१ चू पृ ६२, हावृ पृ७६)
का सूत्र-निर्देशपूर्वक उल्लेख इस प्रकार है२१. आचाराग्र (आचारचूला): उत्तरतंत्र
आचारांग के नि!हण स्थल आचारचूला के निर्दृढ स्थल ........"आयारस्सेव उवरिमाइं तु। अध्ययन उद्देशक व सूत्र अध्ययन स्क्ख स्स पव्वयस्स य, जह अग्गाइं तहेताइं॥ २ ५/१०४, १०८, ११२ १, २, ५, ६, ७ अनभिहितार्थाभिधानाय संक्षेपोक्तस्य च प्रपंचाय ८
२/२१
१, २, ५, ६, ७ तदग्रभूताश्चतस्त्रश्चूडा उक्तानुक्तार्थसंग्राहिकाः प्रति- ५ ४/६२, ६८, ६९, ७० ३ पाद्यन्ते।
(आनि ३०६ वृ) ६ ५/१०१
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