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अनुयोग
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आगम विषय कोश-२
वृद्ध श्रमण के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आया। कौन वृद्ध? अपवादसूत्र-वह सूत्र, जिसमें आचारविषयक विशेष तत्पश्चात् नवागंतुक श्रमण संघ द्वारा अभिवंदित होते देखकर विधि का प्रतिपादन हो। उत्सर्ग का प्रतिपक्षी सूत्र। द्र सूत्र आर्य सागर ने अपने दादा गुरु आचार्य कालक को पहचाना। उन्हें अपने द्वारा कुत अविनय के कारण लज्जा की अनुभति अभिषेक-आचार्यपद के योग्य मुनि। हुई। सागर ने कहा-मैंने बहुत प्रलाप किया है, वंदना करवा अभिषेकः सूत्रार्थतदुभयोपेत आचार्यपदस्थापनार्हः। कर क्षमाश्रमण की आशातना की है, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या
(बृभा ४३३६ की वृ) हो, फिर विनम्र स्वरों में पूछा-क्षमाश्रमण! क्या मैं अनुयोग
जो सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थ का ज्ञाता है, आचार्यपद पर वाचना उचित प्रकार से दे रहा था? आचार्य कालक ने
प्रतिष्ठित करने योग्य है, वह अभिषेक कहलाता है। धूलिपुंज के उपमान से बताया-तुम्हारा अनुयोग सम्यक् है, पर गर्व मत करना।
* अभिषेक : उपाध्याय
द्रसंघ ० धूलिदृष्टांत
अभ्युद्यत मरण-प्रशस्त अनशनत्रयी। द्र अनशन धूली हत्थेण घेत्तुं तिसुट्ठाणेसु ओयारेंति-जहा
अभ्युद्यत विहार-जिनकल्प आदि की साधना का एस धूली ठविज्जमाणी उखिप्पमाणी यसव्वत्थ परिसडइ,
प्रयोग।
. द्र जिनकल्प एवं अत्थो वि तित्थगरेहिंतो गणहराणं गणहरेहिंतो जाव अम्हं आयरि-उवज्झायाणं परंपरएणं आगयं, को जाणइ __ अर्थकल्पिक-आवश्यक से लेकर सूत्रकृतांग तक के कस्स केइ पज्जाया गलिया? ता मा गव्वं काहिसि। ताहे
आगमों के अर्थ का ज्ञाता। द्र श्रुतज्ञान 'मिच्छा दुक्कडं' करित्ता आढत्ता अज्जकालिया सीसपसीसाण अणुओगं कहेउं। (बृभा २३९ की वृ)
__ अवग्रह-अधिकृत वस्तु, क्षेत्र आदि। स्थान आदि का
अनुज्ञापूर्वक ग्रहण। ___ ज्ञान अनन्त है। जैसे मुष्टि-भर धूल राशि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर एवं दूसरे स्थान से तीसरे स्थान पर
१. अवग्रहकल्पिक रखते-उठाते समय वह न्यून से न्यूनतर होती जाती है, वैसे
| २. अवग्रह के पांच प्रकार
३. अवग्रह-प्राधान्य और पूर्व-अभिनव अनुज्ञा ही तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित अर्थ गणधरों को, गणधरों से
४. प्रत्येक अवग्रह के चार प्रकार आचार्य परम्परा को यावत् हम आचार्य-उपाध्यायों को प्राप्त
५. द्रव्य अवग्रह हुआ है। कौन जाने किस अनयोग के कितने पर्याय गलित
* शक्रेन्द्र-ईशानेन्द्र का क्षेत्रावग्रह द्र देव हो गए? इसलिए गर्व मत करना। सागर ने कहा-मेरा
६. चक्रवर्ती का क्षेत्रावग्रह दुष्कृत मिथ्या हो। तब आचार्य कालक शिष्य-प्रशिष्यों को
७. गृहपति-शय्यातर-साधर्मिक का क्षेत्रावग्रह अनुयोग देने में प्रवृत्त हुए।
८. सात अवग्रह-प्रतिमाएं
९. इन्द्र और चक्री का कालावग्रह अनुशिष्टि-स्व-पर को अथवा दोनों को अनुशासित
१०. मुनि के वृद्धवास आदि का कालावग्रह संबोधित और प्रशिक्षित करना। स्तुति
* वर्षावास का उत्कृष्ट अवग्रहकाल द्र पर्युषणाकल्प करना।
द्र वैयावृत्त्य |११. भाव अवग्रह : मनसा-वाचा अनुज्ञा
१२. अवग्रह (आभवद् व्यवहार): अधिकारी-अनधिकारी | अपरिणामक-वह व्यक्ति जो, आगमोक्त विषय पर * वाचना और क्षेत्रावग्रह श्रद्धा नहीं करता। द्र अंतेवासी * पृच्छा और अवग्रह
द्र वाचना
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