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आगम विषय कोश - २
१२. दृष्टिवाद में विद्यातिशय
१३. दृष्टिवाद के पांच प्रस्थान १४. चतुर्दशपूर्वी की विलक्षणताएं
'चौदहपूर्वी की सेवा से महानिर्जरा 'चौदहपूर्वी तक दसों प्रायश्चित्त * चौदहपूर्वी द्वारा बालदीक्षा १५. पूर्वज्ञान : छठा - आठवां पूर्व ० नौवां - दसवां पूर्व
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* पूर्वधर और आगम व्यवहार * व्यवहार : द्वादशांग का नवनीत
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१६. सूत्र देवता- अधिष्ठित क्यों ?
द्र छेदसूत्र
* जिनकल्पी, परिहारविशुद्धिक और प्रतिमाप्रतिपन्न जघन्यतः नौ पूर्वी द्र संबद्धनाम
* • सूत्र और अर्थ में बलवान् कौन ?
द्र वैयावृत्त्य द्र प्रायश्चित्त
द्र दीक्षा
१७. अर्थधर मुनि प्रमाण
१८. अर्हत् महावीर की अंतिम देशना १९. उद्घाटा पौरुषी में अंगपठन निषिद्ध क्यों ?
२०. आचार, आचारचूला और निशीथ २१. आचाराग्र ( आचारचूला ) : उत्तरतंत्र २२. आचारचूला के निर्यूहणस्थल
| २३. आचारचूला का निर्यूहण क्यों ?
द्र व्यवहार
द्र सूत्र
• आचारचूला और दशवैकालिक में समानता * आचारचूला और निशीथ का संबंध
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द्र छेदसूत्र
२४. आचाराग्र का समवतार
* आचार आदि समवसरण १. आगम के प्रकार
आगमो तिविहो – अत्तागमो अणंतरागमो, परंपरागमो । ....... तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे । गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे । अत्थस्स अणंतरागमे । गणहरसिस्साणं सुत्तस्स अणंतरागमे, अत्थस्स परंपरागमे । तेण परं सेसाणं सुत्तस्स वि अत्थस्सवि णो अत्तागमे, णो अणंतरागमे, परंपरागमे । ( निभा १ की चू)
द्र समवसरण
आगम के तीन प्रकार हैं- आत्मागम, अनंतरागम और परंपरागम । तीर्थंकरों के लिए अर्थ आत्मागम है। गणधरों के
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आगम
लिए सूत्र आत्मागम और अर्थ अनंतरागम है। गणधरशिष्यों के लिए सूत्र अनंतरागम और अर्थ परंपरागम है। उनके बाद शेष सबके लिए सूत्र और अर्थ दोनों ही न आत्मागम हैं और न अनंतरागम हैं । वे परंपरागम हैं ।
२. अंग आदि का सार
अंगाणं किं सारो ? आयारो तस्स किं हवति सारो । अणुयोगत्थो सारो, तस्स वि य परूवणा सारो ॥ सारो परूवणाए, चरणं तस्स वि य होइ निव्वाणं । निव्वाणस्स य सारो, अव्वाबाहं जिणा बेंति ॥ (आनि १६, १७)
अंगों का सार क्या है ? वह है आचार । उसका सार क्या है ? वह है अनुयोगार्थ - व्याख्यानभूत अर्थ । उसका सार है प्ररूपणा । प्ररूपणा का सार है - चारित्र । चारित्र का सार है - निर्वाण और निर्वाण का सार है - अव्याबाध (सुख)। ऐसा जिन भगवान कहते हैं ।
३. आचार के पर्याय
आयारो आचालो, आगालो आगरो य आसासो । आदरिसो अंगं ति य आइण्णाऽऽजाइ आमोक्खा ॥ (आनि ७)
आचार के दस एकार्थक नाम हैं
१. आचार - यह आचरणीय का प्रतिपादक है, इसलिए आचार
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२. आचाल - यह निबिड बंधन को आचालित (शिथिल) करता है, इसलिए आचाल है।
३. आगाल - यह चेतना को सम धरातल में अवस्थित करता है, इसलिए आगाल है।
४. आकर - यह आत्मशुद्धि के रत्नों का उत्पादक है, इसलिए आकर है।
५. आश्वास- यह संत्रस्त चेतना को आश्वासन देने में सक्षम है, इसलिए आश्वास है ।
६. आदर्श – इसमें 'इतिकर्त्तव्यता' देखी जा सकती है, इसलिए यह आदर्श है।
७. अंग - यह अन्तस्तल में स्थित अहिंसा आदि को व्यक्त
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