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अवग्रह
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आगम विषय कोश-२
जिस दिन श्रमण-निग्रंथ शय्या-संस्तारक छोडकर का तिर्यग् अवग्रह है (दिगविजय यात्रा करता हआ चक्रवर्ती विहार कर रहे हों, उसी दिन दूसरे श्रमण-निग्रंथ आ जाएं मागध आदि तीर्थों में अपना नामांकित बाण छोड़ता है। वह तो उसी पूर्व गृहीत आज्ञा से यथालंदकाल (कल्पनीय बाण पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी समुद्रों में बारह योजन तक समय) तक वहां रह सकते हैं।
जाता है, यह चक्री का तिर्यग् अवग्रह है)। वही बाण जब यदि उपयोग में आने योग्य कोई अचित्त उपकरण चक्रवर्ती चुल्लहिमवत्-कुमारदेव को साधने के लिए छोड़ता उपाश्रय में हो तो उसका भी उसी पर्व की आज्ञा से उपयोग है, तब वह ऊर्ध्व दिशा में बहत्तर योजन तक जाता है-यह किया जा सकता है।
चक्रवर्ती का ऊर्ध्व अवग्रह है। अधोलोक के ग्राम, गर्त, ४. प्रत्येक अवग्रह के चार प्रकार : क्षेत्रप्राधान्य
वापी, कूप आदि चक्रवर्ती का अधः अवग्रह है। दव्वाई एक्केक्को, चउहा खित्तं तु तत्थ पाहन्ने।
जम्बूद्वीप की पश्चिम विदेह में नलिनावती और वप्रा
नाम की दो विजय हैं। उनमें हजार योजन की गहराई वाले तत्थेव य जे दव्वा, कालो भावो अ सामित्ते॥
अधोलोकग्राम हैं। जो चक्रवर्ती उन ग्रामों में उत्पन्न होते हैं, (बृभा ६७१)
अधोलोकग्राम केवल उन्हीं का उत्कृष्ट अधः क्षेत्रावग्रह है, देवेन्द्र आदि प्रत्येक अवग्रह के चार प्रकार हैं-द्रव्य, अन्य चक्रवर्तियों का अधः क्षेत्रावग्रह है-गर्त्त, वापी, कूप, क्षेत्र, काल और भाव। इनमें क्षेत्र की प्रधानता है क्योंकि
भूमिगृह आदि।) द्रव्य, काल और भाव क्षेत्र में ही होते हैं और क्षेत्र का कोई
७. गृहपति-शय्यातर-साधर्मिक का क्षेत्रावग्रह अधिपति भी होता है।
गहवइणो आहारो, चउद्दिसिं सारियस्स घरवगडा। ५. द्रव्य अवग्रह
हेट्ठा अघा-ऽगडाई, उर्दु गिरि-गेहधय-रुक्खा ॥ चेयणमचित्त मीसग, दव्वा खलु उग्गहेसु एएसु। ___ साधर्मिकाणां तु क्षेत्रावग्रह उत्कृष्टः बृहद्भाष्ये जो जेण परिग्गहिओ, सो दव्वे उग्गहो होइ॥ इत्थमभिहितः
(बृभा ६८१) खित्तोग्गहो सकोसं, जोयण साहम्मियाण बोधव्वं। देवेन्द्र आदि के क्षेत्र में जो सचित्त, अचित्त और छद्दिसि जा एगदिसिं, उज्जाणं वा मडंबाई॥ मिश्र द्रव्य होते हैं और जो जिसके द्वारा परिगृहीत होते हैं,
(बृभा ६७६ वृ) वह उससे संबंधित द्रव्य अवग्रह है।
गृहपति (मंडलेश्वर) का चारों दिशाओं में जितना ६. चक्रवर्ती का क्षेत्रावग्रह
प्रभुत्व क्षेत्र है, उतना उसका उत्कृष्ट तिर्यग-अवग्रह है। सरगोयरो अ तिरियं, बावत्तरिजोयणाई उई त। शय्यातर का उत्कृष्ट तिर्यग्-अवग्रह है घर की परिधि।
दोनों का अधः अवग्रह है-गर्त, कप, वापी आदि। अहलोगगाम-अघमाइ हेट्टओ चक्किणो खित्तं॥
दोनों का ऊर्ध्व अवग्रह है-पर्वत, गृहध्वज और वृक्ष। जम्बूद्वीपापरविदेहवर्त्तिनलिनावती-वप्राभिधान
साधर्मिक का उत्कृष्ट क्षेत्रावग्रह बृहद्भाष्य में अभिहित विजययुगलसमुद्भवा योजनसहस्रोद्वेधाः समयप्रसिद्धा
है-छहों दिशाओं यावत् एक दिशा में सक्रोश योजन (पांच येऽधोलोकग्रामास्तेषु ये चक्रवर्तिनः समुत्पद्यन्ते तेषां त कोस) तथा मडंब. ग्राम आदि का उद्यान पर्यंत क्षेत्र। एवाधः क्षेत्रावग्रहः, तदपरेषां तुग"-कूप-भूमिगृहादिकम्। से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा कप्पइ निग्गंथाण
_ (बृभा ६७५ वृ) वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं ओग्गहं चक्रवर्ती के बाण का जितना विषय है, वह चक्रवर्ती ओगिण्हित्ताणं चिट्ठित्तए परिहरित्तए॥ (क ३/३४)
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