________________
आगम विषय कोश-२
४३
अवग्रह
मूलग्रामादेकैकस्यां दिशि योजनार्द्धमर्द्धक्रोशेन अहावरा पंचमा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं समधिकं तावदवग्रहो भवति, स च पूर्वा-ऽपराभ्यां भवइ "अहं च खलु अप्पणो अट्ठाए ओग्गहं ओगिहिदक्षिणोत्तराभ्यां वा कृत्वा सक्रोशं योजनं भवति, यद्वा स्सामि".... गतिप्रत्यागतिभ्यामेकस्यामपि दिशि (सक्रोश ) योजनं अहावरा छट्ठा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी मन्तव्यम्।
(बृभा ४८४५ की वृ) वा जस्सेव ओग्गहे उवल्लिएज्जा, जे तत्थ अहासमण्णा
गए"तणे वा, कुसे वा, कुच्चगेवा, पिप्पले वा, पलाले ___साधु और साध्वियां ग्राम यावत् सन्निवेश में सब
वा। तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा, दिशाओं तथा चारों विदिशाओं में सक्रोश योजन (पांच
णेसज्जिए वा विहरेज्जा कोस) अवग्रह ग्रहण कर रह सकते हैं, उसका उपयोग
अहावरा सत्तमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी कर सकते हैं।
वाअहासंथडमेव ओग्गहंजाएज्जा, तंजहा-पुढविसिलवा, मूल ग्राम से एक-एक दिशा में ढाई कोस का अवग्रह होता है। वह पूर्व-पश्चिम अथवा दक्षिण-उत्तर में पांच कोस
कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स
अलाभे उक्कुडुओ वा, णेसज्जिओ वा विहरेज्जा..। का हो जाता है।
एवंभूतः प्रतिश्रयो मया ग्राह्यो नान्यथाभूतः"प्रथमा अथवा गति-प्रत्यागति में (जाकर पनः आने पर)
प्रतिमा सामान्येन द्वितीयाः गच्छान्तरगतानां साधूनां एक दिशा में भी पांच कोस का अवग्रह मानना चाहिए।
साम्भोगिकानामसांभोगिकानां चोद्युक्तविहारिणां...। ८. सात अवग्रह-प्रतिमाएं
ततीया..."अहालन्दिकानां, यतस्ते सत्रार्थविशेषमाचार्याअह भिक्खूजाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं दभिकांक्षन्त आचार्यार्थ याचन्ते।चतुर्थी "गच्छएवाभ्युद्यतओगिण्हित्तए॥
विहारिणां जिनकल्पाद्यर्थं परिकर्म कुर्वताम्। पंचमी.. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से आगंतारेसु वा,
जिनकल्पिकस्य।षष्ठी"जिनकल्पिकादेः। सप्तमी-एषैव आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा
पूर्वोक्ता।
(आचूला ७/४८-५५ वृ) अणुवीइओग्गहंजाएज्जा-जेतत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिलाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो! अहालंदं
___ भिक्षु इन सात प्रतिमाओं-अभिग्रहविशेष से अवग्रहअहापरिणायंवसामो "तेण परंविहरिस्सामो-पढमा पडिमा।
ग्रहण करे। अहावरा दोच्चा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं
उनमें यह पहली प्रतिमा-वह अतिथिगृह, आरामगृह, भवइ "अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं
गृहपतिगृह अथवा मठों में विवेकपूर्वक अवग्रह को जाने-जो ओगिहिस्सामि, अण्णेसिंभिक्खणं ओग्गहे ओग्गहिए वहां का स्वामी या प्रबन्धक (अधिष्ठाता) हो, उसकी अवग्रहउवल्लिस्सामि"......
अनुज्ञा ले। उससे कहे-आयुष्मन् ! जितने काल तक जितने अहावरा तच्चा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं
क्षेत्र में रहने की अनुज्ञा है, उतने काल तक उसमें रहेंगे. भवइ "अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं
तत्पश्चात् विहार करेंगे। ओगिहिस्सामि, अण्णेसिंभिक्खूणंच ओग्गहे ओग्गहिए
दूसरी प्रतिमा-जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता णो उवल्लिस्सामि".......
है- 'मैं अन्य भिक्षुओं के लिए अवग्रह ग्रहण (स्थान की ___ अहावरा चउत्था पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं
याचना) करूंगा, अन्य भिक्षुओं के अवग्रह ग्रहण करने पर भवइ "अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं
रहूंगा।' णो ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च ओग्गहे ओग्गहिए
__तीसरी प्रतिमा-जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता हैउवल्लिस्सामि'"...
'मैं दूसरे भिक्षुओं के लिए अवग्रह ग्रहण करूंगा, किन्तु दूसरों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org