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सूत्रकृताङ्गस्त्रे मोहपाशकूपपातकाः बान्धवाः पूर्वोक्तरीत्या साधुं तमामुशिक्षयंति, यथा तेषां संगेन बद्ध इव विभ्रान्तः गुरुकर्मा साधुः मोक्षदायिनीमपि पव्रज्यां परित्यज्य गृहपाशे एवाऽनुबध्नात्यात्मानम् । इति भावः ॥९॥ मूलम्-जहां रुक्खं वणे जायं मालुया पडिबंधई।
एवं णं पडिबंधति णातओ असमाहिणा ॥१०॥ ... छाया-यथा वृक्षं वने जातं मालुका प्रतिबध्नाति ।
एवं ते प्रतिबध्नन्ति ज्ञातयो असमाधिना ॥१०॥ रस्सी से बंधे पशु को रस्सी पकडने वाला पुरुष इच्छानुसार ले जाता है, उसी प्रकार बन्धुषान्धवों के विलापरूपी मोहपाश में आयद्ध सत्व हीन साधु घर ले जाया जाता है। ... आशय यह है कि मोह के कूप में पटकने वाले धान्धवजन पूर्वोक्त प्रकार से साधु को इस प्रकार सीख देते हैं जिससे उनके संग से बद्ध जैसा भ्रान्त गुरुकर्मा साधु मोक्षदायिनी दीक्षा को भी त्याग कर गृह के बन्धन में बंध जाता है ।।९॥
शब्दार्थ-'जहा-यथा' जैसे 'वणे जायं-बने जातम्' वन में उत्पन्न हुवा 'रुक्खं-वृक्षम्' वृक्ष को 'मालुया-मालुका' लता-वेल 'पडिबंधा-प्रतिबध्नाति' वेष्टित हो जाती है 'ण-खलु' निश्चय एवं-एवम्' इसी प्रकार 'णातयो ज्ञातयः ज्ञातियाले अर्थात् कुटुंबिजन 'असमाहिणा-असमाधिना' अल्प सत्व वाले उस साधु को 'पडिबंधति-प्रतिबध्नति' बांध लेते हैं।॥१०॥ વડે બાંધેલા પશુને દેરડું પકડનાર માણસ પોતાની ઈચ્છાનુસાર દેરી જાય છે, એ જ પ્રમાણે સમાં-સ્નેહીઓના વિલાપ રૂપ મોહપાશથી જકડાયેલા સવહીન સાધુને, તેઓ ઘેર લઈ જવામાં સફળ થાય છે.
આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે મોહરૂપ કૂવામાં હડસેલનારા બધુજને તે નવદીક્ષિત સાધુને એવી રીતે સમજાવે છે કે તે બ્રાન, ગુરુકમ સાધુને મોક્ષદાયિની પ્રવજ્યાને પણ ત્યાગ કરીને ગૃડના બન્ધનમાં બંધાઈ જાય છે. છેલ્લા
Avai --'जहा-यथा' वी शते 'वणे जायं-वने जातम्' Twi S५-न यये 'रुक्ख-वृक्षम्' उने 'मालुया-मालुका' सा- 'पडिबंधइ-प्रतिबध्नाति' पी25. Mय छे. 'णं-खलु' निश्चय एवं-एवम्' 20 प्रभार 'णातयो-ज्ञातयः' शातिवा! अर्थातू मिशन 'असमाहिणा-असमाधिना' असrain ते साधुने 'पडिबंधंति-प्रतिबध्नन्ति' गांधी से . ॥१०॥
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