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प्रस्तावना
द्वितीय खण्ड
२ खुद्दाबन्ध ( क्षुद्रबन्ध )
षट्खण्डागमके इस दूसरे खण्ड में कर्म-बन्धक के रूपमें जीवकी प्ररूपणा जिन ग्यारह अनुयोगद्वारोंके द्वारा की गई है, उनके नाम इस प्रकार हैं- १ एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, २ एक जीवकी अपेक्षा काल, ३ एक जीवकी अपेक्षा अन्तर, ४ नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, ५ द्रव्यप्रमाणानुगम, ६ क्षेत्रानुगम, ७ स्पर्शनानुगम, ८ नाना जीवोंकी अपेक्षा काल, ९ नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर, १० भागाभागानुगम और ११ अल्पबहुत्वानुगम । इन अनुयोगद्वारोंके प्रारम्भमें भूमिकाके रूपमें बन्धकोंके सत्त्वकी प्ररूपणा की गई है और अन्तमें सभी अनुयोगद्वारोंकी चूलिकारूपसे अल्पबहुत्व - महादण्डक दिया गया 1
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कर्मोका बन्ध करनेवाले जीवोंको बन्धक कहते हैं । इन बन्धक जीवोंकी प्ररूपणा चौदह मार्गणाओंके आश्रयसे की गई है कि किस गति आदि मार्गणाके कौन-कौनसे जीव कर्मका बन्ध करते हैं और कौन-कौनसे नहीं ? जैसे गतिमार्गणाकी अपेक्षा सभी नारकी, तिर्यंच और देव कर्मों के बन्धक हैं । किन्तु मनुष्य कर्मोंके बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं । इसका अभिप्राय यह हैं कि तेरहवें गुणस्थान तक योगका सद्भाव होनेसे कार्मणवर्गणाका आना होता है, उनका बन्ध भले ही एक समयकी स्थितिका क्यों न हो, पर आगमकी व्यवस्थासे वे भी बन्धक कहलाते है । किन्तु अयोगिकेवली भगवान् के योगका सर्वथा अभाव हो जाता है, इससे न उनके कार्मणवर्गणाओंका आश्रव है और न बन्ध ही है, अतः वे अबन्धक हैं । इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तकके सभी जीव बन्धक हैं । पंचेन्द्रिय जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं । किन्तु अनिन्द्रिय या अतीन्द्रिय सिद्ध जीव अबन्धक ही हैं । इस प्रकार सभी मार्गणाओं में बन्धक - अबन्धक जीवोंका विचार किया गया है ।
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तत्पश्चात् एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वका विचार करते हुए बतलाया गया हैं किस मार्गणाके कौनसे गुण या पर्याय जीवके किन भावोंसे उत्पन्न होते हैं । इनमें सिद्धगति, अनिन्द्रियत्व, अकायत्व, अलेश्यत्व, अयोगत्व, क्षायिकसम्यक्त्व, केवलज्ञान और केवलदर्शन तो क्षायिकलब्धिसे उत्पन्न होते हैं । एकेन्द्रियादि पांचों जातियां, मन, वचन, काय ये तीनों योग, मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यय ये चारों ज्ञान; तीनों अज्ञान परिहारविशुद्धिसंयम, चक्षु, अचक्षु और अवधिदर्शन, वेदकसम्यक्त्व सम्यग्मिथ्यादृष्टित्व और संज्ञित्वभाव ये क्षायोपशमिकलब्धिसे उत्पन्न होते हैं । अपगतवेद, अकषाय, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यातसंयम ये औपशमिक तथा क्षायिकलब्धिसे उत्पन्न होते हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनासंयम औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धिसे उत्पन्न होते हैं । औपशमिक सम्यग्दर्शन औपशमिक लब्धिसे उत्पन्न होता है । भव्यत्व,
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